बढ़ती हत्याओं से दांव पर नीतीश कुमार का सुशासन

उमेश चतुर्वेदी
नीतीश की अगुआई में चले दस साल के सुशासन के बाद बिहार जिस तरह पटरी पर आया था, उसके विकास दर की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी थी, उससे राज्य की नई छवि बनी थी।
नब्बे के दशक में लालू राज के दौरान जिस तरह राज्य से शासन व्यवस्था चरमरा गई थी, शाम होते ही बाहर निकलना मुश्किल हो गया था, छिनैती, लूट और अपहरण की घटनाएं बढ़ गई थीं, उससे निश्चित तौर पर 2005 में आए नीतीश राज ने राहत दिलाई थी। लालू राज के दौरान राज्य के विकास की गाड़ी बिल्कुल ही बेपटरी हो गई थी।
 
लेकिन अपने बेहतर शासन व्यवस्था के दम पर जिस तरह नीतीश कुमार ने अपनी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के साथ बिहार में नई बयार बहाई, उससे उन्हें सुशासन बाबू ही कहा जाने लगा था। लेकिन बीजेपी का साथ छोड़कर नवंबर 2015 में उन्होंने जिस तरह बीजेपी का साथ छोड़ नए साथी के साथ राजपाट संभाला, उसी दिन राज्य और उसके बाहर के लोगों को आशंका सताने लगी थी कि शायद ही अब बिहार में सबकुछ ठीक रह पाए।
 
यह आशंका जल्द ही सही साबित हो गई, जब दरभंगा में दो इंजीनियरों की सरेआम हत्या कर दी गई। तब से नीतीश सरकार और अपराधियों के बीच खींचतान जारी है और इसमें अपराधी ही भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। ताजा मामला गया का है, जहां सत्ताधारी जनता दल यू की ही विधान परिषद सदस्य मनोरमा देवी के बेटे ने एक मासूम छात्र को सिर्फ इसलिए गोली मार दी, क्योंकि उसने विधायक के बेटे की गाड़ी को रास्ता नहीं दिया था। हैरत की बात यह है कि घटना के वक्त विधायक का गनर विधायक के बेटे के साथ था यानी पुलिस वाले के सामने ही हत्या हो गई और उसने रोकने की कोशिश तक नहीं की। 
 
लालू राज में प्रशासन का मनोबल कमजोर हो गया था। चूंकि अपराधियों को सीधे-सीधे राजनीतिक संरक्षण मिल रहा था, लिहाजा पुलिस और प्रशासन अपराधियों के खिलाफ कदम उठाने से हिचकता था। नीतीश ने दस साल के शासन में उनका मनोबल बढ़ाकर अपराधियों पर लगाम लगाने में कामयाबी हासिल की थी। लेकिन अब उसी लालू यादव का दल नीतीश के साथ है। भले नीतीश मुख्यमंत्री हों, लेकिन हकीकत में उनकी पार्टी गठबंधन में दूसरे नंबर की पार्टी है। कहीं न कहीं इसका असर एक बार फिर प्रशासन पर पड़ने लगा है।
 
यही वजह है कि सत्ताधारी दल के नेता और उनके परिवार वालों को भी आपराधिक काम करने से हिचक नहीं हो रही है। मार्च में एक विधायक ने ही किशोरी का रेप कर दिया और वह कई दिनों तक फरार रहा। उसे पकड़ने के लिए पुलिस को नाकों चने चबाने पड़े। नीतीश के सुशासन पर इसे लेकर सवाल भी उठे। उसके पहले आरा जिले में भारतीय जनता पार्टी के राज्य के उपाध्यक्ष विश्वेश्वर ओझा की सरेआम हत्या कर दी गई। उसी दौरान लोक जनशक्ति पार्टी के एक नेता को भी गोलियों से अपराधियों ने भून दिया। तब भी विपक्षी दलों ने सत्ताधारी गठबंधन पर सवाल उठाए थे।
 
इस बार तो जनता दल यू के विधायक के बेटे ने ही हत्या कर डाली और उसे फरार कराने में खुद विधायक ने ही भूमिका निभाई है। इसलिए सवालों के घेरे में नीतीश ही ज्यादा हैं। इसलिए नीतीश पर दबाव भी है कि अपने ही विधायक पर कार्रवाई करें।
 
इन हत्याओं ने बिहार के विपक्षी दलों को नीतीश की आलोचना करने का मौका दे दिया है। लोकजनशक्ति पार्टी के सांसद चिराग पासवान तो इसे जंगलराज पार्ट दो कहने से नहीं हिचक रहे हैं तो दूसरे दलों का आरोप है कि नीतीश चूंकि प्रधानमंत्री बनने की राजनीति में जुट गए हैं, इसलिए वे बिहार के प्रशासन पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। 
 
जाहिर है कि विपक्षी राजनीति की धुरी बनने की कोशिश में जुटे नीतीश के लिए शासन व्यवस्था पर मजबूत पकड़ बनाना और बिहार में सुशासन कायम रखना ही मददगार साबित होगा। लिहाजा उन्हें कड़े कदम उठाने ही होंगे। अपने ही विधायक को उन्हें जेल भेजना पड़े तो भेजना ही होगा। 
 
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