पुतिन की यात्रा में निहित भारत के दीर्घकालीन हित

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रूस के राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के दौरान मात्र चौबीस घंटों में भारत और रूस के बीच कोई बीस महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। सौ अरब डॉलर के इन समझौतों में 40 अरब डॉलर के तो केवल परमाणु ऊर्जा से सम्बंधित समझौते हुए जिसके तहत रूस भारत में बारह नए परमाणु ऊर्जा घरों का निर्माण करेगा। स्मरण रहे कि क्रीमिया को लेकर राष्ट्रपति पुतिन का इस समय अंतर्राष्ट्रीय कद्दावर नेताओं ने बहिष्कार कर रखा है। रूस पर अनेक प्रतिबंध भी लगा रखे हैं। ऐसे में भारत द्वारा रूस के साथ समझौतों की घोषणा कई राष्ट्रों विशेषकर अमेरिका को नाखुश करने वाली हैं। हुआ भी यही, अमेरिकी प्रशासन ने समझौतों की घोषणा के तुरंत बाद अपनी अप्रसन्नता जाहिर कर दी। इन वर्तमान सन्दर्भों में भारत रूस के मैत्रीपूर्ण रिश्तों के क्या मायने हैं? आइये इन्हें समझने की चेष्टा करते हैं।
 
क्रीमिया को लेकर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने पुतिन को खलनायक बनाने की भरपूर कोशिश की थी किन्तु वे पूरी तरह सफल नहीं हो सके। यूक्रेन में घुस जाने के बाद पश्चिमी देशों के नेताओं ने पुतिन पर देश की सीमाओं के एकतरफा पुनर्निर्धारण के आरोप लगाये और रूस के विरुद्ध प्रतिबंधों की घोषणा की तो रूस के भीतर अपनी लोकप्रियता से जूझ रहे पुतिन को मानो नया जन्म मिल गया। उनकी लोकप्रियता अपने राष्ट्र में पुनः शीर्ष पर पहुँच गई। बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के बावजूद हाल ही के एक सर्वेक्षण में पुतिन को अस्सी फीसदी लोगों का समर्थन मिला। जब कोई राजनेता अपने घर में मजबूत हो जाता है तो उसकी अनदेखी विश्व मंच पर नहीं की जा सकती।
 
इसमें कोई शक नहीं कि पुतिन की सोच पश्चिमी राष्ट्रों की सोच से भिन्न है। इससे पहले भी पुतिन अकेले ऐसे राष्ट्रपति थे जो सीरिया और ईरान के समर्थन में खड़े थे जब लगभग पूरा विश्व उनके विरोध में था।  इस समर्थन को लेकर विश्व के नेताओं ने पुतिन को पहले भी बहुत खरी खोटी सुनाई थी किन्तु पुतिन थे कि वे अपनी जगह अड़े रहे। आज वही नेता सीरिया के राष्ट्रपति बशर को बनाये रखना चाहते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में आतंकी संगठन ईसिस के विस्तार का प्रतिरोध बशर ही कर पा रहे हैं। 
 
पुतिन को हलके में लेना वैश्विक नेताओं की नादानी ही कही जाएगी क्योंकि आज भी वे विश्व की एक महाशक्ति के राष्ट्रपति हैं। जो दूसरी गलती विश्व के नेता कर रहे हैं वह है रूस पर प्रतिबंध थोपने की। इन प्रतिबंधों के चलते चीन तथा रूस के सम्बन्धों में गरमाहट आने लगी है और यदि ऐसा होता है यह युति विश्व को अधिक परेशानी में डालेगी। चीन ने रूस के साथ हाल ही में 400 अरब डॉलर के ऊर्जा निर्यात के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जो आगामी तीस वर्षों तक जारी रहेगा। इन परिस्थितियों में भारत के लिए आवश्यक है कि रूस के  साथ संबंधों में गरमाहट बनी रहे ताकि रूस का झुकाव चीन की ओर अधिक न हो। 
 
अमेरिका चाहता है कि भारत, रूस के साथ सहयोग न करे, किन्तु अमेरिका का पाकिस्तानी झुकाव भारत को कभी रूस से अलग होने की आजादी नहीं देगा। रूस अकेली ऐसी महाशक्ति है जिसने भारत का हर मुश्किल समय में साथ दिया है। अमेरिका का साथ आज है तो कल नहीं। अमेरिका को जब जरुरत है भारत की तो भारत एक मित्र देश बन जाता है और जब पाकिस्तान की जरुरत है तब पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण सहयोगी हो जाता है। अमेरिका ने अपनी नीतियों में कभी ठहराव नहीं दिखया है जबकि रूस की विदेश नीति में ठहराव है। भारत को चाहिए एक विश्वसनीय साथी जिसकी कमी रूस पूर्ण करता है अमेरिका नहीं।  
 
मोदीजी इस समय स्वयं विदेश नीति को देख रहे हैं क्योकिं वे जानते हैं कि यदि राष्ट्र की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करना है तो विदेशी तकनीक भी चाहिए और विदेशी पूंजी भी। ' मेक इन इंडिया' के  उनके  कार्यक्रम की सफलता ही भारत को आर्थिक सफलता के अगले पायदान पर ले  जा सकती है। 
 
इसी कड़ी में हुआ बहु-भूमिका निभा सकने वाले आधुनिक रुसी हेलीकाप्टरों को  भारत में बनाने का फैसला। भारत न केवल इन्हें बना ही सकेगा  अपितु अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेचने के लिए भी स्वतंत्र रहेगा। पश्चिमी देशों द्वारा रूस का बहिष्कार, रूस को चीन और भारत के और भी करीब लेकर आएगा। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल के भाव गिरने से रूस अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा है क्योंकि रूस के निर्यात का बावन प्रतिशत भाग ऊर्जा का निर्यात है, यही वजह है कि कच्चे तेल के साथ साथ रुसी मुद्रा रूबल भी तेजी से नीचे गिर रही है।
 
प्रतिबंधों के कारण विश्व बैंक या पश्चिमी देशों के बैंकों से रूस को कर्ज़ तो मिलने से रहा। इन परिस्थितियों में  रूस को भारत के  साथ की अत्यंत जरुरत है। राजनीतिक मित्रता भावनाओं पर नहीं टिकी होती। दोनों देशों को  एक दूसरे के पूरक बने रहना चाहिए। रूस के पास भारत से अनुबंध करने के आलावा कोई विकल्प  नहीं और भारत को अपने "मेक इन इंडिया " कार्यक्रम के लिए रूस से अच्छा सहयोगी नहीं। इसलिए पुतिन की यह यात्रा कई दृष्टिकोणों में ऐतिहासिक थी जिसमें संपन्न हुए समझौते भविष्य में होने वाली भारत की आर्थिक प्रगति के दस्तावेज़ सिद्ध होंगें। इस प्रकार हमारे विशेलषण के अनुसार मोदीजी द्वारा रूस की मैत्री को अधिक सुदृढ़ बनाना एक अत्यंत समीचीन और दूरदृष्टिपूर्ण कदम है।
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