शिवसेना की मप्र में आहट, भाजपा के लिए खतरा

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-वेबदुनिया
मध्यप्रदेश के झाबुआ-रतलाम संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में करारी शिकस्त से सत्तारूढ़ भाजपा अभी सदमे में है। इसी बीच, राज्य में शिवसेना की आहट ने भाजपा की नींद उड़ा दी है। दरअसल, शिवसेना सांसद संजय राउत के इंदौर दौरे को राज्य में शिवसेना की भावी सक्रियता से जोड़कर देखा जा रहा है। भाजपा के लिए खतरे की घंटी इसलिए भी है क्योंकि दोनों ही पार्टियों का वोट बैंक एक ही है।
मध्यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान अपनी ताजपोशी  के 10 साल का जश्न मना रहे हैं, लेकिन झाबुआ-रतलाम की हार की कसक कहीं न कहीं पार्टी में नजर आ रही है। दूसरी ओर देवास विधानसभा सीट की जीत का कम अंतर भी पार्टी को रास नहीं आ रहा है। ऐसे में शिवसेना की आमद पार्टी के लिए 2018 में खतरे का सबब बन सकती है। 
 
राउत ने इंदौर में भवरकुआं क्षेत्र के एक गार्डन में हाल ही में शिवसेना कार्यकर्ताओं की बैठक ली तथा बाद में शहर के कुछ संभ्रांत नागरिकों और पत्रकारों से भी मुलाकात की थी। इसके माध्यम से मध्यप्रदेश खासकर मालवा क्षेत्र में शिवसेना ने अपने जनाधार को टटोलने की कोशिश की है। दरअसल, महाराष्ट्र में वर्षों पुराना गठबंधन टूटने और भाजपा-शिवसेना की कटुता के चलते शिवसेना ने ठान लिया है कि अब वह हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में नहीं होने देगी।
 
राउत की बैठक में बातचीत के दौरान यह भी सामने आया कि यदि शिवसेना बिहार में चुनाव नहीं लड़ती तो 10 से 15 सीटों पर एनडीए के उम्मीदवार चुनाव जीत सकते थे। इसलिए अब शिवसेना ने महाराष्ट्र के बाहर भी भाजपा के वोटों में सेंध लगाने की शुरुआत बिहार से कर दी है। पार्टी आगामी उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी कर रही है। 
 
मध्यप्रदेश भाजपा के लिए शिवसेना की आहट इसलिए भी चिंता का कारण है क्योंकि मालवा क्षेत्र में मराठी वोटर काफी तादाद में हैं, जो कि भाजपा के प्रतिबद्ध वोटर माने जाते हैं। ऐसे में शिवसेना की उपस्थिति भाजपा के इन वोटों में सेंध लगा सकती है। हालांकि शिवसेना के उम्मीदवार मालवा क्षेत्र में पहले भी छिटपुट रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। तब इस भगवा पार्टी की कमान कुछ गुंडा टाइप के लोगों के हाथ में थी, लेकिन अब पार्टी ने वास्तविक धरातल पर होमवर्क शुरू कर दिया है। राउत के दौरे को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। 
 
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा ने इस संभावित खतरे को भांपकर यदि समय रहते काम शुरू नहीं किया तो अगले विधानसभा चुनाव में उसे मुंह की खानी पड़ सकती है क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव ‍परिणाम और उपचुनाव के नतीजों ने कांग्रेस का मनोबल भी बढ़ा दिया है। 
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