भारत आतंकवाद के खिलाफ है, किसी देश के नहीं

डॉ. नीलम महेंद्र
'वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां, 
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।
 
29 सितंबर। रात 12.30 बजे।
 
भारत के स्पेशल कमांडो फोर्स के जवान, जो कि विश्व का सबसे बेहतरीन फोर्स है, Ml-17 हेलीकॉप्टरों से LOC पार पाक सीमा के भीतर उतरते हैं। 3 किमी के दायरे में घुसकर भिंबर, हांट स्प्रिंग, केल और लीपा सेक्टरों में 'सर्जिकल स्ट्राइक' करके 8 आतंकवादी शिविरों को नष्ट करते हैं।
 
इस हमले में न सिर्फ वहां स्थित सभी आतंकवादी शिविर और उसमें रहने वाले आतंकी नष्ट होते हैं बल्कि उन्हें बचाने की कोशिश में पाकिस्तान सेना के 2 जवानों की भी मौत हो जाती है और 9 जवान घायल हो जाते हैं। सभी भारतीय जवान इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम देकर कुशलतापूर्वक भारतीय सीमा में लौट आते हैं।
 
भारतीय सेना की ओर से पाक डीजीएनओ को इस बारे में सूचित किया जाता है। पाकिस्तानी सेना का बयान आता है कि भारत की ओर से कोई 'सर्जिकल स्ट्राइक' नहीं हुई है, यह सीमा पार से फायरिंग थी, जो पहले भी होती रही है।
इससे बड़ी सफलता किसी देश के लिए क्या होगी कि वह छाती ठोंककर हमला करके सामने वाले देश को आधिकारिक तौर पर संपूर्ण विश्व के सामने स्वीकार कर रहा है कि 'हां, हमने तुम्हारी सीमा में 3 किमी तक घुसकर हमला किया है और अपने काम को अंजाम देने के बाद चुपचाप वापस आ गए हैं।'
 
लेकिन सामने वाला देश हमले से ही इंकार कर रहा है। यह पाक के लिए कितनी बड़ी विडंबना है कि बेचारा जब स्वयं आतंकवादियों द्वारा हमला करता है तो भी इंकार करता है और जब हम बदला लेने के लिए उस पर हमला करते हैं तो भी उसे इंकार करना पड़ता है।
 
जब पूरा देश चैन की नींद सो रहा था तो भारतीय फौज ने वह काम कर दिखाया जिसकी प्रतीक्षा पूरा भारत 18 सितंबर से कर रहा था। यह एक बहुप्रतीक्षित कदम था। जैसा कि हमारी सेना ने पहले ही कहा था कि हमारे सैनिकों के बलिदान का बदला अवश्य लिया जाएगा लेकिन समय, स्थान और तरीका हम तय करेंगे। और वह उन्होंने किया। 
 
किसी भी देश के लिए इस प्रकार के हमलों का सबसे कठिन पहलू होता है अंतरराष्ट्रीय दबाव, लेकिन भारत ने यहां भी बाजी मार ली है। अपने प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मोदीजी ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए जो कदम उठाए थे और जिस प्रकार की सहनशीलता का परिचय उन्होंने दिया था, आज उनकी यही कूटनीति अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारत का साथ देने के लिए विवश कर रही है। यह प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति, राजनीति और कूटनीति की सफलता ही है कि आज विश्व भारत के साथ है और पाकिस्तान अलग-थलग पड़ चुका है।
 
अमेरिकी अखबार 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने लिखा है- 'मोदी संयम बरत रहे हैं, पाक इसे हल्के में न ले। पाक सहयोग नहीं करता है तो अलग-थलग पड़ जाएगा। अगर पाकिस्तानी सेना सीमापार हथियार और आतंकी भेजना जारी रखती है तो भारत के पास कार्रवाई करने के लिए मजबूत आधार होगा।'
 
यह मोदी की ही विशेषता है कि उन्होंने पाक को घेरने के लिए केवल सैन्य कार्रवाई का सहारा ही नहीं लिया बल्कि उसे चारों ओर से घेर लिया है। 
 
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक तरफ इसी महीने पाक में होने वाला सार्क सम्मेलन निरस्त होने की कगार पर है। चूंकि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस सम्मेलन में भाग लेने से इंकार करने के बाद बांग्लादेश, अफगानिस्तान और भूटान ने भी इंकार कर दिया है वहीं दूसरी ओर हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यूएन में पाक को दो-टूक सुनाते हुए उसे सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेनकाब किया और संपूर्ण विश्व को आतंकवाद पर एकसाथ होने का आह्वान करते हुए पाक को अलग-थलग करने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
 
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अमेरिका और ब्रिटेन को भारत के इस कदम की पूर्व जानकारी थी। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की 28 सितंबर को अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार सुसेन राइस से फोन पर लंबी बातचीत हुई थी और उन्होंने उड़ी हमले का विरोध किया था। 
 
इससे पहले 'यूएस सेक्रेटरीज ऑफ स्टेट' जॉन कैरी की भी भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से 2 दिन में 2 बार बात हुई थी। ये सभी बातें इशारा कर रही हैं कि जो अमेरिका कभी पाकिस्तान के साथ खड़ा था, आज वह आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में कम से कम पाक के साथ तो नहीं है और यूएन के ताजा घटनाक्रम ने पाकिस्तान और आतंकवाद के बीच की धुंधली लकीर भी मिटा दी है।
 
संपूर्ण विश्व आज जब आतंकवाद के दंश की जड़ों को तलाशता है तो चाहे 9/11 हो, चाहे ब्रुसेल्स हो या फिर अफगानिस्तान, सीरिया या इराक ही क्यों न हों, हमलावर लश्कर, जैश, हिजबुल या तालिबान या कोई भी हों, उसके तार कहीं-न-कहीं पाकिस्तान से जुड़ ही जाते हैं। आखिर विश्व इस बात को भूला नहीं है कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान की धरती पर ही मारा गया था। भारत के मोस्ट वांटेड अपराधी दाऊद को भी पाक में ही पनाह मिली हुई है। 
 
आज यह भारत की उपलब्धि है कि वह विश्व को यह भरोसा दिलाने में कामयाब हुआ है कि इस प्रकार की सैन्य कार्रवाई किसी देश के खिलाफ न होकर केवल आतंकवाद के खिलाफ है। जो बात आजादी के 57 सालों में हम दुनिया को नहीं समझा पाए, वह इन 2.5 सालों में हमने न सिर्फ समझा दी, बल्कि करके भी दिखा दी।
 
इतना ही नहीं, द्विपक्षीय स्तर पर भी भारत ने सिन्धु जल संधि पर आक्रामक रुख दिखाया है और साथ ही उससे एमएफ स्टेट अर्थात व्यापार करने के लिए मोस्ट फेवरेबल स्टेट के दर्जे पर भी पुनर्विचार करने का मन बना लिया है। इस प्रकार चारों ओर से घिरे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अकेले पड़ चुके पाक को इससे बेहतरीन जवाब दिया भी नहीं जा सकता था। 
 
हम सभी भारतवासियों की ओर से भारतीय सेना को बहुत-बहुत बधाई! आज एक बार फिर हमारी सेना ने संपूर्ण विश्व के सामने भारत का मान बढ़ा दिया है, जैसे हमारा हर सैनिक कह रहा हो-
 
'है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर, 
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर।'
 
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