थाईलैंड का अजीबोगरीब राजनीतिक पशोपेश

शरद सिंगी
तेरह अक्टूबर को थाईलैंड के सम्राट भूमिबोल अतुल्यतेज (अदुल्यदेज) का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। थाईलैंड की राजगद्दी पर 70 वर्षों तक राज करने वाले इस सम्राट को थाईलैंड की जनता ने अश्रुपूरित बिदाई दी। यह सम्राट की बिदाई ही नहीं एक युग की बिदाई थी। किसी सम्राट का सात दशकों तक निरंतर जनता का सम्मान पाना कोई आसान काम नहीं है। 
इस सम्राट ने अपना पूरा जीवन जनता के कल्याण और राष्ट्र की प्रगति में खर्च कर दिया। एक पिछड़े हुए राष्ट्र को विकासशील राष्ट्रों  की अग्रिम पंक्ति में लाकर  खड़ा किया।  सारी सुख सुविधाएँ उपलब्ध होने के बावजूद कड़ी मेहनत की और  स्वयं ने बहुत ही सादा जीवन व्यतीत किया। अपने देश और  जनता से मुहब्बत की तथा प्रजा की क्षमता पर विश्वास किया। उन्होंने देश का नेतृत्व उस समय प्रभावशाली ढंग से किया जब सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में  साम्यवाद की लहर चल रही थी किन्तु भूमिबोल के प्रयत्नों से थाईलैंड में साम्यवाद का प्रसार नहीं हो पाया। वे जनता के साथ सीधे जुड़े रहे और जनता ने बदले में उनको बेपनाह स्नेह दिया। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी मृत्यु के पश्चात् थाईलैंड में एक वर्ष का राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया गया है। 
सम्राट भूमिबोल की शख्सियत का  दूसरा पहलू भी है।  देश में राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक साम्य लाने में वे  विफल रहे।  विकास के फल गरीब ग्रामीणों तक नहीं पहुँच पाए। गरीब और अमीर के बीच खाई बढ़ती गई। आलोचक उन पर  आरोप लगाते हैं कि चुनी हुई सरकार का तख्तापलट करने के लिए उन्होंने  बार-बार सेना का उपयोग किया। सन् 1932 से अब तक कोई 19 बार सेना द्वारा तख्ता पलट के सफल और कुछ विफल प्रयास हो चुके हैं। वर्तमान में भी वहाँ सैन्य सरकार का ही शासन है। आलोचकों का आरोप है कि जब  भी कोई चुनी हुई सरकार जनता के बीच अलोकप्रिय हुई  या राजशाही से टकराव लेती दिखाई देने लगी तो सेना द्वारा उसका तख्तापलट करवा दिया गया। तीन वर्ष पूर्व मैंने इसी कॉलम में थाईलैंड के राजनीतिक परिदृश्य  में लाल शर्ट और पीली शर्ट में बंटे दो दलों की विस्तृत चर्चा की। 
 
सन् 1998 में थाईलैंड के एक अरबपति उद्योगपति थाकसिन शिनवत्रा जिनका मोबाइल और दूरसंचार के क्षेत्र में एकाधिकार था, ने फियू नामक एक  लाल शर्ट वाली राजनीतिक पार्टी बनाई थी। यह पार्टी ग्रामीण क्षेत्रों में इतनी लोकप्रिय हुई कि थाकसिन शीघ्र ही सत्ता में आ गए। कई वर्षों तक  प्रधानमंत्री रहे किन्तु उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। थाईलैंड की  कोर्ट ने थाकसिन को  भ्रष्टाचार का अपराधी घोषित कर दिया था  इसलिए वे गिरफ्तारी के डर से  थाईलैंड से भागकर यहाँ दुबई में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 
 
सत्ता से दूर रहकर भी थाकसिन शिनवात्रा की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। थाकसिन परिवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं किन्तु गरीब ग्रामीण जनता में इनकी पकड़ बहुत मजबूत होने से जब भी चुनाव होते हैं इस परिवार के लोग सत्ता में आ जाते हैं। इसलिए जनता भ्रष्ट सरकार चुने जाने के भय से थाईलैंड में चुनाव ही नहीं चाहती और यही कारण है कि सैन्य सरकार होने के बावजूद वहां की जनता में कोई असंतोष नहीं है। 
 
सम्राट भूमिबोल अपने अकेले  बेटे वजीरालोंगकोर्न को पहले ही युवराज घोषित कर चुके थे। वे ही अब राजगद्दी के उत्तराधिकारी होंगे। इनकी छवि एक बिगड़ैल शहजादे की है और विदेशों में उनके धन उड़ाऊ कारनामों से वे सदैव चर्चा में रहते हैं। यद्यपि शोक के एक वर्ष के दौरान  उनका राजतिलक नहीं होगा किन्तु विशेषज्ञ उनकी योग्यता पर प्रश्न उठा रहे हैं। जाहिर है आने वाले दिन राजनीतिक अस्थिरता के ही रहेंगे क्योंकि न तो अब कोई सर्वमान्य नेता है और न ही लोकप्रिय सम्राट। 
 
आधुनिक युग में राजशाही का कोई स्थान नहीं है। पश्चिमी देशों में  राजशाही निष्प्रयोजन होकर  अब मात्र एक सजावट की वस्तु  बन चुकी हैं। वे दिन बीत चुके जब जनता में राजा के प्रति एक देवता का भाव होता था। शाही खून को सामान्य खून से अलग तथा ऊपर माना जाता था।  जहाँ योग्यता के  कोई मायने नहीं होते थे। आस्थाएं प्रजा को शाही खून से जोड़ती थीं इसलिए  शाही खानदान के सदस्य  पर कोई प्रश्न नहीं किया जा सकता था। हर राजकीय आदेश शिरोधार्य होता था। किन्तु शिक्षा के विकास के साथ राजशाही भी कटघरे में चली गई।  आने वाले दिन राजशाही के लिए और अधिक चुनौतीपूर्ण होते जायेंगे।  जाहिर है भूमिबोल के उद्दंड उत्तराधिकारी के लिए यह ताज काँटों का रहेगा। 
 
वर्तमान सैनिक सरकार ने अगले  वर्ष  चुनाव करवाने की घोषणा तो की है किन्तु थाईलैंड में  प्रजातंत्र को लाना याने भ्रष्ट थाकसिन परिवार की वापसी।  थाईलैंड की जनता के सामने एक ओर कुंआ तो दूसरी ओर खाई।  लगता नहीं इन परिस्थितियों में चुनाव कोई हल है। ऐसे में थाईलैंड की जनता के पास वक्त के इंतज़ार के अतिरिक्त फिलहाल कोई मार्ग नहीं। कैसी विडम्बना है कि एक ओर  संसार के कई राष्ट्रों में   जनता प्रजातंत्र पाने के लिए अपनी जान पर खेल रही है तो थाईलैंड में  प्रजातंत्र को दूर रखने के लिए जनता को जद्दोजहद करनी पड़ रही है। राजनीति शास्त्र के छात्रों के लिए यह शोध का एक रोचक विषय हो सकता है।
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