कैसे संभव है प्रमोशन में आरक्षण???

स्मृति आदित्य

Webdunia
आरक्षण। इस शब्द ने देश में कई बार तूफान मचाया है। संसद में पेश 'प्रमोशन में आरक्षण' बिल स्वीकार्य नहीं है। हो भी नहीं सकता। होना भ‍ी नहीं चाहिए। आरक्षण के नाम पर हर क्षेत्र में मिल रही सुविधा और विशेषाधिकार से आपत्ति नहीं है लेकिन आरक्षण का यह 'एक्सटेंशन' कतई सहन नहीं किया जा सकता।

नौकरी में काबिलियत, दक्षता, मेहनत और ईमानदारी जैसे गुणों के साथ काम करने वाले कर्मचारी का यह नैसर्गिक अधिकार है कि उसे अपने काम के बदले सही वक्त पर सही रूप में पदोन्नति मिले लेकिन अगर यहां भी 'आरक्षण का बताशा' उसकी जिंदगी में जहर घोले तो यह कैसे स्वीकार हो सकता है?

महज इसलिए कि उसने एक ऐसी जाति में जन्म लिया है जो प्रचलित नियमों के अनुसार अगड़ी और सक्षम मानी जाती है। चाहे वरिष्ठता के मान से उसके अवसर प्रबल हो चाहे योग्यता के लिहाज से उसकी उम्मीद उजली हो लेकिन एकमात्र आरक्षण जैसे शब्द के कारण उसके आगे बढ़ने के मौके निर्ममता से कुचले जाएंगे और उसी के सामने कम योग्य, उससे कनिष्ठ या निहायत ही मक्कार को भी प्रमोशन मिल सकता है। स्वाभाविक सी बात है यह बिल उसके मनोबल को ना सिर्फ दुर्बल करेगा बल्कि खत्म ही कर देगा।

नौकरी के प्रति उसके चाव को ही नहीं मुरझाएगा अपितु जीवन के प्रति भी नैराश्य से भर देगा। देश को अच्छे और सच्चे कर्मचारियों की सख्त जरूरत है। भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रकरण और पद के दुरुपयोग के फैलते किस्सों के मद्देनजर आवश्यक है कि इस बिल पर पुनर्विचार किया जाए वरना मंडल कमीशन की लगाई आग की चिंगारी अब भी कहीं सुलग रही है। यह भड़क गई तो देश को कई होनहार युवाओं से असमय वंचित होना पड़ सकता है। (वेबदुनिया फीचर डेस्क)

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