ज्‍यादा तीखा लिखने के लिए ब्‍लॉग बेहतर मंच

प्रसिद्ध ब्‍लॉगर और पत्रकार दिलीप मंडल से वेबदुनिया की बातचीत

Webdunia
आप कब से ब्‍लॉगिंग की दुनिया मे ं सक्रिय हैं। हिंदी में ब्‍लॉग शुरू करने का ख्‍याल कैसे आया ।

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ब्लॉग क ी दुनिया से परिचय तो पुराना था, लेकिन इंग्लिश ब्लॉग के जरिए। हिंदी में ब्लॉगिंग ह ो रही ह ै, ये तो पिछले दो साल से मालूम थ ा, लेकिन दूर से ही उन्हें देख रहा था । दिलचस्पी 2007 के बीच वाले महीनों में बढ़ी। जुला ई, 2007 में मोहल्ला पर "कामयाब लोगों का अलगाववाद" मेरी पहली पोस्ट थी। मेल के जरिए मोहल्ला के मॉडरेटर अविनाश क ो भेजी और उन्होंने धूमधाम से छाप दी। अगली पोस्ट थी, "कब था पत्रकारिता का स्वर्णकाल" । उस पर प्रतिक्रियाओं का लंबा सिलसिला चला (कई-कई हजार शब्द लिख डाले गए होंगे)। कु छ दिन तक तो मोहल्ला के लिए लिखता रह ा, फिर ख्याल आया कि अपना भी एक मंच बना ही लिय ा जाए ।

इस विधा के बारे में आपकी शुरुआती प्रतिक्रिया क्‍या थी ।

ब्लॉग को लेकर ये तो मालूम था कि अभी इससे पैसे नहीं आने वाले हैं। चूँकि मेरा लगभ ग सारा लेखन प्रिंट और रेडियो के लिए रहा है तो बिना पैसे का लेखन कुछ जमा नहीं । लेकिन ये एहसास हमेशा था कि शुरुआती दौर होने के बावजूद ब्लॉग एक ताकतवर माध्यम है । इसकी दूसरी बड़ी ताकत है कि ये पाठक को सक्रिय होने की आजादी देता है। कहने को तो ये आजादी अखबारों और पत्रिकाओं में भी है। लेकिन पाठकों की सक्रियता ज्याद ा मूर्त रूप में ब्लॉग में ही दिखती है। साथ ही प्रिंट काफी हद तक एकालाप ह ै, जबक ि ब्लॉग संवाद है ।

आपके कौन-कौन से ब्‍लॉग हैं ।

प्रण व प्रियदर्श ी, अनुराधा और मै ं, हम तीनों मिलकर रिजेक्ट माल नाम का ब्लॉग चलाते हैं। इसे अगस्त 2007 में बनाया गया है और नियमित न होने पर भी इसे हजारों पाठक मिले हैं । इसके अलावा मैं मोहल्ल ा, इयत्ता और कबाड़खाना - इन तीन ब्लॉग से जुड़ा हूँ, लेखक क ी हैसियत से ।

ब्‍लॉग पर लिखते हुए आप किन्‍हीं खास विषयों पर ही लिखत े हैं। आप अपने विषय का चुनाव किस आधार पर करते हैं ।

ब्लॉग पर लिखते समय क ई बार मैं वो विषय चुनता हू ँ, जिनके लिए प्रिंट में जगह निकालना मुश्किल होता है । जाति-व्यवस्था और पत्रकारिता पर मेरे लेख उसी श्रेणी में हैं। जाति पर मैं प्रिं ट में लिखता रहा हू ँ, लेकिन ज्यादा तीखा लिखने के लिए ब्लॉग बेहतर मंच लगा। वैस े उनमें से कुछ लेख बाद में प्रिंट में भी छपे। इसके अलावा कई बार कुछ विषयों प र मीडिया में अश्लील किस्म की आम सहमति बन जाती है। वैसे समय में ब्लॉग का प्रयोग करना चाहता हूँ ।

आपके पसंदीदा हिंदी ब्‍लॉग कौन-से हैं ।

मोहल्ला मुझे पसंद है, क्योंकि वहाँ लोकतांत्रिक स्पेस है। शब्दों क ा सफर मैं नियमित नहीं देख पात ा, लेकिन चाहता हूँ कि ये ब्लॉग सफल हो। सस्ता शेर औ र टूटी बिखरी स ी, रवि रतलामी का हिंदी ब्लॉ ग, सारथ ी, भड़ास जैसे ब्लॉग पर नियमित नज र रहती है। हाशिय ा, पहलू जैसे ब्लॉग से सीखता रहता हूँ ।

हिंदी ब्‍लॉगिं ग की वर्तमान स्थिति के बारे में आप क्‍या सोचते हैं ।

हिंदी ब्लॉग की अभी शुरुआत हुई है। अभी जिस तरह की ब्लॉगिंग हो रही है, उससे मुझे लगता है रंगमंच प र असली नायक और नायिकाओं का आना बाकी है। हिंदी ब्लॉग जगत में एक बड़ा विस्फोट होन े वाला है। ऐसा मुझे लगता है और इसकी कामना भी है। खेल अभी शुरू होना है। अभ ी साइड लाइन की हलचल ह ै, जिस कुछ लोग टूर्नामेंट मान बैठे हैं। वैसे शुरुआती दिनों मे ं जो लोग जुटे और जुड़े है ं, उनका योगदान महत्वपूर्ण है ।

एक माध्‍यम क े रूप में ब्‍लॉग अन्‍य माध्‍यमों (टीवी और प्रिंट) से किस तरह अलग है ।

ब्लॉग की ताकत है उसकी इंटरेक्टिविटी। इस मायने में वो बाकी सभी संचार माध्यमों स े अलग है। इसे आप ब्लॉग की बढ़त के तौर पर देख सकते हैँ ।

क्‍या आप मानत े हैं कि ब्‍लॉगिंग भविष्‍य की विधा है ।

हिंदी में ब्लॉगिंग को लेकर म ै आशावान तो हू ँ, लेकिन कुछ किंतु-परंतु भी हैं। दरअसल हिंदी में ब्लॉगिंग का भविष्य इस पर टिका है कि हिंदी का भविष्य कैसा है। खासकर कंप्यूटर के इस्तेमाल के संदर् भ में अगर हिंदी की ताकत बढ़ती ह ै, तो इसका फायदा हिंदी ब्लॉगिंग को मिलेगा। मनोरंजन और दिल बहलाने के माध्यम के तौर पर हिंदी ब्लॉग के सफल होने की संभावना ज्यादा है । लेकिन यही बात ज्ञान-विज्ञान के बारे में नहीं कह सकते। दरअसल ब्लॉगिंग को समाज में हिंदी की स्थिति से अलग करके नहीं देखा जा सकता। साथ ही ये देखना होगा कि हिंद ी बोलने वाली पट्टी में कंप्यूटर और इंटरनेट कितनी मजबूती से पैर जमाते हैं। इंटरने ट सस्ता होता है तो इसका फायदा भी हिंदी और हिंदी ब्लॉगिंग को होगा। इसमें ब्रॉडबैं ड के विस्तार का भी महत्व है ।

आने वाले समय में ब्‍लॉगिंग किस रूप मे ं हमसे मुखातिब होगी ।

हजारों तरह के लाखों ब्लॉग होंगे। एक्साइटमेंट के लि ए सीट बेल्ट बाँधकर तैयार रहिए ।

क्‍या ब्‍लॉगिंग पत्रकारिता पर भी अस र डालेगी ।
ब्लॉग के असर से कोई भी विधा अछूती नहीं रहेगी। पत्रकारित ा, साहित् य, गी त, संगी त, नाटक हर जगह इसका प्रभाव दिखेगा। वाटर टाइट कंपार्टमेंट में सुरक्षित और अलग-थलग रहने की कल्पना करने वालों को झटका लगने वाला है ।


क्‍या आने वाले समय में इंटरनेट और ब्‍लॉगिंग इलेक्‍ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर भारी पड़ सकते हैं ।

इसकी भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाजी है। पश्चिम का अनुभ व तो यही कह रहा है कि मास मीडिया में इंटरनेट का हिस्सा तेजी से बढ़ेगा। पश्चिम के कई मीडया हाउस के कुल राजस्‍व का एक तिहाई से ज्यादा इंटरनेट से आ रहा है और य े हिस्सा बढ़ रहा है। भारत में भी ऐसा हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। लेकिन हिंद ी में ऐसा होगा या नही ं, ये पक्के तौर पर कह पाना खतरनाक है। हिंदी समाज में इंटरने ट और हिंदी में इटरनेट जैसे विषय पर प्रवृत्तियाँ अभी साफ नहीं है ।

क्‍य ा आपको लगता है कि ब्‍लॉगिंग से हिंदी भाषा का विकास होगा ।

ब्लॉग और इंटरनेट प र हिंदी का आना शुभ है। अभी तक पाँच सौ से एक हजार के प्रिंट ऑर्डर में फँसे हिंद ी साहित्य के लिए ये पहली नजर में खतरे की बात लग सकती है। लेकिन साहित्य और इंटरने ट का रिश्ता बनता ह ै तो पाठक न होने की समस्या दूर हो जाएगी। इस मामले में कुछ रोच क होने की उम्मीद है। ब्लॉग हिंदी भाषा को व्याकरण की जकड़न से मुक्त कर रहा है। क ई ऐसे लेखक बन रहे है ं, जिन्हें प्रिंट में अछूत मान लिया जाता है। भाषा क ो लोकतांत्रिक होने की ताकत देगा ब्लॉग। भाषाई शुद्धता के प्रचारकों को गहरी चोट लगन े वाली है।
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