' उसकी' बुलंदी को सलाम करते हुए समूची नारी जाति के लिए युवा मर्मस्पर्शी शपथ ले रहे हैं।
पारिवारिक सूत्र बताते हैं कि दामिनी शुरू से ही साहसी और खिलखिलाने वाली लड़की रही है। हर बात की शौकीन लेकिन अपनी मर्यादा से परिचित। उसकी सकारात्मक सोच का विलक्षण उदाहरण है उसका कलेजे को बेध देने वाला यह वाक्य '' मां, मैं जीना चाहती हूं। फिर उसने पूछा - क्या वे (दरिंदे) पकड़े गए? फिर मित्र की खैरियत पूछी उससे मिलकर जाना देश के हालात को...
उसकी हर बात तब भी निराली थी जब वह दिल्ली नहीं आई थी और इस हादसे के बाद भी उसकी हर बात अनूठी है। देश को ऐसी ही कन्यारत्न की जरूरत है।
अब वक्त नहीं रहा सुबकने का, खुद को अवांछित मान अपने आप से हार मान लेने का, जिंदगी को खत्म कर देने का। जिंदगी की जंग लड़ते हुए भी 'दामिनी' समूची स्त्री जाति के लिए एक सशक्त उदाहरण बन कर उभरी है। आज उसने देश की हर आम और खास महिला को अपने 'दर्द' से उनकी अपनी अस्मिता के प्रति सचेत किया है।
दामिनी, तुम्हें चमकना होगा.. . अपने लिए नहीं, इस देश के लिए... इस देश के युवाओं के लिए, उन करोड़ों की संख्या में उलझती-बिलखती नारियों के लिए... हमे ं तुम जैसी बहादूर बाला हर घर में चाहि ए...तुम सुन रही हो ना...