केंद्री य वित् त मंत्र ी प्रण ब मुखर्ज ी क े पिटार े स े ' झमाझ म बारि श' क ी उम्मी द क ी ज ा रह ी थ ी लेकि न इसमे ं स े त ो रिमझि म फुहारे ं भ ी नही ं निकलीं । दाद ा क ी माने ं त ो लंब े सम य क े लि ए इस े आश्वास न जरू र मान ा ज ा सकत ा है । लेकि न जनत ा ज ो केव ल वर्तमा न मे ं विश्वा स करत ी ह ै उस े निराश ा ह ी हा थ लगी ।
उम्मीदो ं क े अनुरू प न होने पर सेंसेक्स में 870 अंकों की गिरावट दर्ज की गई। वर्ष 2009-10 क े बज ट मे ं आयकर में भी कुछ खास राहत केंद्री य वित्तमंत्र ी प्रणब मुखर्ज ी ने नहीं दी। कमोडिटी ट्रांजिक्शन टैक्स (सीटीटी) हटाना शायद इशारा करता है कि ऐसे उद्योगपति और व्यापारी ही हमारे लिए चुनावी चंदा जुटाने के मुख्य स्रोतों में से एक है और चुनावी चंदे को भी 100 फीसदी कर मुक्त रखा गया है।
इस बजट से एक बार फिर केंद्र सरकार ने बता दिया है कि जनता को राहत हम केवल चुनाव वर्ष में ही दे पाएँगे बाकी तो जनता के गले का उपयोग तो हम 'कसाइयों' की भाँति ही करेंगे और यही हमारा 'नैतिक धर्म' है।
आयकर में राहत आटे में नमक के बराबर दी गई है वहीं पेंशन मैच्योरिटी स्कीम के तहत जमा रकम निकालने पर टैक्स लगेगा। समानता के सिद्धांत के अनुसार जहाँ अमीरों पर कर और गरीबों को राहत की बात होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने उलट गरीबों पर छुरी चलाई है और अमीरों को और अमीर होने की छूट दी है। सोना जहाँ पहले से ही महँगा है उस पर कस्टम ड्यूटी और लाद दी गई है।
मध्यमवर्गीय परिवार, नौकरीपेशा व्यक्ति जहाँ आयकर ईमानदारी से भरता है (चाहकर भी चोरी नहीं कर सकता), यदि पेंशन के लिए कुछ जोड़ना भी चाहे तो उसकी मैच्योरिटी पर उसे टैक्स भरना होगा जबकि सीटीटी हटाकर कारोबारियों को बेजा फायदा पहुँचाने का प्रयास किया गया है। समय की माँग को देखते हुए जिस बजट की उम्मीद जनता ने की थी। इससे बदतर बजट शायद ही कोई सरकार बना पाती।
कृषकों को सीधे खाद्य सब्सिडी, फसलों के लिए ऋण पर ब्याज दरों में कमी। ग्रामीण सड़कों, बिजली और मकानों के लिए कुल 21 हजार करोड़ रुपए की योजना जरूर काबिलेतारीफ है। खाद्य सुरक्षा बिल भविष्य में लाने की योजना की भी जितनी सराहना की जाए कम है।
सामंती व्यवस्था का रूप इस बजट में देखने को मिला जोकि बस जनता को कर के बोझ तले दबाना चाहती है चाहे वह कहीं से भी लाए। मंदी और महँगाई के दौर में कैसे आदमी को राहत मिलेगी कहना मुश्किल है। सस्ते करने के नाम पर एलसीडीटीवी, मोबाइल और कंप्यूटर हुए हैं।
प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही बताया कि हमारी सरकार को देश के विकास के लिए जनादेश मिला है। इस 'जनादेश' की आड़ में कहीं न कहीं देश की जनता को बताना चाह रहे हैं कि हम जैसे चाहेंगे सरकार को पाँच साल वैसे ही चलाएँगे।
महँगाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं विगत लगभग 2-3 वर्षों से लगातार बढ़ती महँगाई की मार सहने के बावजूद पुरानी सरकार को ही सत्तासीन किया था। इसलिए इस सरकार से महँगाई में राहत की अपेक्षा करने का भी कोई तुक नजर नहीं आ रहा था। और वही वित्त मंत्री ने किया भी। तेल, दाल, शकर आदि की दिन-ब-दिन बढ़ रही महँगाई पर नियंत्रण के लिए बजट में बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया। मोबाइल, एलसीडी, कंप्यूटर सस्ते करके आप देश के किस वर्ग को राहत देना चाहते हैं जोकि इन्हें वहन कर सकता है।
मंदी से निपटने के प्रभावी उपाय नहीं
इस सरकार का स्वागत तो शेयर बाजार में बखूबी झूमकर किया था लेकिन आज की निराशा बता गई कि इस सरकार से उम्मीद करना हमारी भूल थी।
प्रणब दा ने यह तो बताया कि देश पर मंदी का असर पड़ा है। विश्व में आर्थिक मंदी छाई है। (जो कमोबेश देश और विश्व का हर नागरिक जानता है) लेकिन इससे निपटने के क्या उपाय उन्होंने किए वह नहीं बता पाए। न ही वे आम जनता की जेब में पैसा कहाँ से आएगा इसकी व्यवस्था कर पाए और न ही जो जेब में है वह कैसे जेब में ही बना रहे इसके लिए कदम उठा पाए। जोकि मंदी से निपटने के लिए प्राथमिकता होना चाहिए थी।
आज जब देश में 70 करोड़ से अधिक लोग 20 रुपए रोज पर गुजारा कर रहे हैं। ऐसी हालत में भी उनकी पूरी तरह से अनदेखी बजट में की गई है। इस सरकार का स्वागत तो शेयर बाजार में बखूबी झूमकर किया था लेकिन आज की निराशा बता गई कि इस सरकार से उम्मीद करना हमारी भूल थी।
प्रणब दा को इस बजट के लिए पासिंग मार्क्स भी मिलना मुश्किल हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के साथ मिलकर तत्कालीन वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक विकास की नींव रखने और उसे गति देने वाले मनमोहन सिंह को भी क्या इस बार बजट में हस्तक्षेप की अनुमति '10 जनपथ' से नहीं मिली? देखना दिलचस्प होगा कि यदि वित्त मंत्री सही हैं तो देश की जनता उनके प्रयासों से आखिर कब लाभान्वित होगी?