नई दिल्ली। केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए दिल्ली एक बार फिर 'दूर' ही रही। लाख कोशिशों के बाद भगवा पार्टी 'सत्ता के कुरुक्षेत्र' में केजरीवाल को शिकस्त नहीं दे पाई। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भले ही पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई, लेकिन डंके की चोट पर सत्ता में वापसी की।
सबसे खास बात यह रही है कि दिल्ली चुनाव के लिए न सिर्फ अमित शाह बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी रैलियां की थीं, लेकिन उनकी रैलियों में जुटी भीड़ वोटों में तब्दील नहीं हो पाई।
दिल्ली की हार को देखकर ऐसा लगता है कि भाजपा ने महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की हार से कोई सबक नहीं सीखा। यही कारण है कि अब भाजपा नीत एनडीए की सिर्फ 16 राज्यों में ही सरकारें हैं।
दरअसल, दिल्ली चुनाव में भाजपा ने जिस तरह से अरविन्द केजरीवाल पर व्यक्तिगत हमले किए थे, उससे अरविन्द केजरीवाल को ही ज्यादा फायदा मिला। उन्हें आतंकवादी तक कहा गया, इससे उन्हें लोगों की सहानुभूति ही मिली। इसका असर वोटिंग मशीन में पड़े वोटों पर भी दिखाई दिया।
गुजरात चुनाव में 'मौत का सौदागर' वाला बयान कांग्रेस के लिए भारी पड़ा था। कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी के लिए इस शब्द का प्रयोग किया था। इस बयान ने मोदी को ही फायदा पहुंचाया था।
दिसंबर 2017 में भाजपा नीत एनडीए की 21 राज्यों में सरकार थी। 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार गई। 2019 के अंत में भाजपा ने महाराष्ट्र और झारखंड में भी सत्ता गंवा दी। अब भाजपा नीत एनडीए की सिर्फ 16 राज्यों में सरकारें हैं।
दिल्ली चुनाव में भाजपा द्वारा किसी नेता मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट नहीं किया जाना भी हार की एक बड़ी वजह रही, क्योंकि आम आदमी की तरफ से केजरीवाल मुख्यमंत्री पद के लिए स्वाभाविक उम्मीदवार थे।
जनता ने वोट भी इसी आधार पर दिया। यदि भाजपा मुख्यमंत्री पद के दावेदार का ऐलान कर देती तो शायद यह स्थिति नहीं होती।