ध्यान की शुरुआत

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
विचार हमारा शत्रु है- यूजी कृष्णमूर्ति
ध्यान की शुरुआत के पूर्व की क्रिया- 'मैं क्यों सोच रहा हूं' इस पर ध्यान दें।' हमारा 'विचार' भविष्य और अतीत की हरकत है। विचार एक प्रकार का विकार है। वर्तमान में जीने से ही जागरूकता जन्मती है। भविष्य की कल्पनाओं और अतीत के सुख-दुख में जीना ध्यान विरूद्ध है।

स्टेप- 1 : ओशो के अनुसार ध्यान शुरू करने से पहले आपका रेचन हो जाना जरूरी है अर्थात आपकी चेतना (होश) पर छाई धूल हट जानी जरूरी है। इसके लिए चाहें तो कैथार्सिस या योग का भस्त्रिका, कपालभाति प्राणायाम कर लें। आप इसके अलावा अपने शरीर को थकाने के लिए और कुछ भी कर सकते हैं।

स्टेप 1 : शुरुआत में शरीर की सभी हलचलों पर ध्यान दें और उसका निरीक्षण करें। बाहर की आवाज सुनें। आपके आस-पास जो भी घटित हो रहा है उस पर गौर करें। उसे ध्यान से सुनें।

स्टेप 3 : फिर धीरे-धीरे मन को भीतर की ओर मोड़े। विचारों के क्रिया-कलापों पर और भावों पर चुपचाप गौर करें। इस गौर करने या ध्यान देने के जरा से प्रयास से ही चित्त स्थिर होकर शांत होने लगेगा। भीतर से मौन होना ध्यान की शुरुआत के लिए जरूरी है।

स्टेप 4 : अब आप सिर्फ देखने और महसूस करने के लिए तैयार हैं। जैसे-जैसे देखना और सुनना गहराएगा आप ध्यान में उतरते जाएंगे।

ध्यान की शुरुआती विधि : प्रारंभ में सिद्धासन में बैठकर आंखें बंद कर लें और दाएं हाथ को दाएं घुटने पर तथा बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखकर, रीढ़ सीधी रखते हुए गहरी श्वास लें और छोड़ें। सिर्फ पांच मिनट श्वासों के इस आवागमन पर ध्यान दें कि कैसे यह श्वास भीतर कहां तक जाती है और फिर कैसे यह श्वास बाहर कहां तक आती है।

पूर्णत: भीतर कर मौन का मजा लें। मौन जब घटित होता है तो व्यक्ति में साक्षी भाव का उदय होता है। सोचना शरीर की व्यर्थ क्रिया है और बोध करना मन का स्वभाव है।

ध्यान की अवधि : उपरोक्त ध्यान विधि को नियमित 30 दिनों तक करते रहें। 30 दिनों बाद इसकी समय अवधि 5 मिनट से बढ़ाकर अगले 30 दिनों के लिए 10 मिनट और फिर अगले 30 दिनों के लिए 20 मिनट कर दें। शक्ति को संवरक्षित करने के लिए 90 दिन काफी है। इसे जारी रखें।

सावधानी : ध्यान किसी स्वच्छ और शांत वातावरण में करें। ध्यान करते वक्त सोना मना है। ध्यान करते वक्त सोचना बहुत होता है। लेकिन यह सोचने पर कि 'मैं क्यों सोच रहा हूं' कुछ देर के लिए सोच रुक जाती है। सिर्फ श्वास पर ही ध्यान दें और संकल्प कर लें कि 20 मिनट के लिए मैं अपने दिमाग को शून्य कर देना चाहता हूं।

अंतत: ध्यान का अर्थ ध्यान देना, हर उस बात पर जो हमारे जीवन से जुड़ी है। शरीर पर, मन पर और आस-पास जो भी घटित हो रहा है उस पर। विचारों के क्रिया-कलापों पर और भावों पर। इस ध्यान देने के जारा से प्रयास से ही हम अमृत की ओर एक-एक कदम बढ़ सकते है।

ध्यान और विचार : जब आंखें बंद करके बैठते हैं तो अक्सर यह शिकायत रहती है कि जमाने भर के विचार उसी वक्त आते हैं। अतीत की बातें या भविष्य की योजनाएं, कल्पनाएं आदि सभी विचार मक्खियों की तरह मस्तिष्क के आसपास भिनभिनाते रहते हैं। इससे कैसे निजात पाएं? माना जाता है कि जब तक विचार है तब तक ध्यान घटित नहीं हो सकता।

अब कोई मानने को भी तैयार नहीं होता कि निर्विचार भी हुआ जा सकता है। कोशिश करके देखने में क्या बुराई है। ओशो कहते हैं कि ध्यान विचारों की मृत्यु है। आप तो बस ध्यान करना शुरू कर दें। जहां पहले 24 घंटे में चिंता और चिंतन के 30-40 हजार विचार होते थे वहीं अब उनकी संख्या घटने लगेगी। जब पूरी घट जाए तो बहुत बड़ी घटना घट सकती है।
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