पड़वा अर्थात 'गोवर्धन' उत्सव

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- शताय ु
दीपावली के पाँच दिनी उत्सवों में दीपावली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट और पड़वा के नाम से भी जानते हैं। हर प्रांत में इस त्योहार को मनाने की परम्परा भिन्न है। यह त्योहार भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व रखता है। खासकर ग्रामीण इलाकों में इस पूजा का बहुत महत्व है।

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परम्परा : कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अर्थात दीपावली के अगले दिन अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। इस दिन गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके समीप विराजमान कृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों की पूजा भी की जाती है।

गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही गोर्वधन की पूजा की जाती है। भोग और मोक्ष की प्राप्ति हेतु पकाए हुए चावलों अथवा गायों के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजन किया जाता है। गायों के अलावा घर में अन्य पालतू पशु बैल आदि को सजाकर उन्हें घास व अन्न प्रदान कर गोवर्धन पूजन हेतु आमंत्रित किया जाता है।

धार्मिक महत्व : वैसे तो इस उत्सव को मनाने के और भी कारण है किंतु यहाँ प्रस्तुत है एक कथा- मूसलधार वर्षा से बचने के लिए कृष्ण ने ब्रजवासियों को सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अँगुली पर उठाकर सातवें दिन नीचे रखा तब हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की उन्होंने आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

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