पारम्परिक गुजरिया कहावतों में सिमटी

Webdunia
- रवि उपाध्याय

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ज्योतिपर्व दीपावली के अवसर पर पारंपरिक रूप से सिर और दोनों हाथों में दीपक लिए मिट्टी से बनी दीपावली की गुजरिया अब कहावत बनकर रह गई है।

गुजरिया दरअसल एक औरत की मूर्ति है जो सिर और अपने दोनों हाथों में दीपक लिए रहती है। पारम्परिक मान्यताओं के अनुरूप इसे लोग लक्ष्मी आने का प्रतीक मानकर दीपावली के मौके पर खरीदते हैं। यह परम्परागत गुजरिया धीरे-धीरे अब बाजारों और घरों से गायब होने लगी है।

इस भौतिकवादी युग में समय के साथ-साथ लोगों की पसन्द और जीवनशैली में भी काफी बदलाव आया है। लोगों की पसन्द भी बदलने लगी है जिसके कारण अब गुजरिया का महत्व और प्रचलन कम होने लगा है।

लक्ष्मी के आने का प्रतीक गुजरिया की माँग अब सिर्फ गरीब तबके तक ही सीमित रह गई है। उन्हें मोमबत्तियों और दीपक के मुकाबले यह सस्ती लगती है। मिट्टी के खिलौने बनाने वाले कुम्हारों ने बताया कि वे अब बहुत कम गुजरिया बनाते हैं क्योंकि इसकी बिक्री काफी कम हो गई है वहीं दूसरी ओर इसकी लागत और मेहनत के अनुरूप पैसा नहीं मिलता।

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एक ओर जहाँ परम्परागत गुजरिया की माँग घट रही है और उन्हें अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड रहा है वहीं दूसरी ओर तरह-तरह की नई डिजाइन वाली रंगीन मोमबत्तियाँ, रंगीन और चाइनीज बल्ब की माँग बाजार में काफी तेजी से बढ़ी है। दीपावली के दौरान बाजार में इन चीजों की भरमार रहती है।

पटनासिटी अनुमंडल के थोक व्यापारी महेश ने बताया कि बाजार में गुजरिया का महत्व अब कम हो गया है और इसके जगह मिट्टी के ही बने नौका तथा पानी में तैरने वाले टिन के बने छोटे-छोटे दीपकों की माँग बढी है। वहीं एक अन्य व्यवसायी कमलजीत सिंह ने बताया कि मोम के दीपक तथा महीन कारीगरी से बने भगवान गणेश और माँ लक्ष्मी की मूर्तियाँ बाजारों में 75 रुपए से लेकर 500 रुपए तक में बिक रही हैं।

व्यवसायी श्री सिंह ने बताया कि इन सामानों को चेन्नई, कोलकाता, पंजाब, हरियाणा तथा चंडीगढ़ से मँगाते हैं लेकिन बाजार में इसकी खपत इतनी है कि माँग पूरी नहीं कर पा रहे हैं। गुजरिया पुराने रूप में फीकी पड़ गई है लेकिन बिजली के बने उसके नए रूप अब बाजार में एक बार फिर खरीददारों की पसंद बनने लगे हैं।

बाजार में गणेश-लक्ष्मी की इलेक्ट्रॉनिक मूर्तियों के कारण कुम्हार भी अब महँगी मूर्तियों की बजाए अधिकतर सामान्य मूर्तियों का ही निर्माण करने लगे हैं क्योंकि आकर्षक मूर्तियों को बनाने में अधिक समय लगने के साथ-साथ इसके निर्माण पर भी ज्यादा खर्च आता है।

इसके साथ ही इन मूर्तियों के दाम अधिक होने से आम लोग इसकी खरीददारी करने की बजाए इलेक्ट्रॉनिक मूर्तियों को ही खरीदना पसंद करते हैं।

चाँदनी चौक मार्केट के एक व्यवसायी ने बताया कि लोग चीन में निर्मित बिजली के छोटे-छोटे रंग-बिरंगे बल्बों से बने सामानों को अधिक पसंद करते हैं क्योंकि यह सस्ता और बढि़या है। इसी तरह धनतेरस की खरीददारी भी अब बर्तनों से कुछ अलग हटकर महँगे जेवरातों और कारों तक पहुँच गई है। कार खरीदने वाले दाम का भुगतान करने के बाद कार की डिलीवरी धनतेरस को लेना पसन्द करते हैं।
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