धनतेरस पर मुक्त हुए थे श्रीहरि विष्णु बाली के बंधन से

अनिरुद्ध जोशी
दक्षिण भारत में राजा महाबली और वामन पूजा का ज्यादा प्रचलन है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी और ओणम पर्व राजा बालि की याद में मनाया जाता है। राजा बली को केरल में 'मावेली' कहा जाता है। यह संस्कृत शब्द 'महाबली' का तद्भव रूप है। कथा के अनुसार राजा महाबली ने स्वर्ग पर विजय प्राप्त करके के बाद 100 अश्वमेध यज्ञों का आयोजन किया। 100वें पर वह अजेय बन जाता यह सोचकर देवता घबरा गए। एक बार फिर देवताओं पर संकट आ गया था। बगैर अमृत पीकर भी राजा बलि इतना मायावी बन बैठा था कि उसको मारने की किसी में शक्ति नहीं थी।
 
 
तब भगवान विष्णु ने ॠषि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से वामन रूप में जन्म लेकर वे महाबली के 100वें यज्ञ के समय दान मांगने पहुंच गए। शुक्राचार्य ने बली के बताया कि यह विष्णु है और छल करने आया है परंतु बली धर्मात्मा था और उसने कहा कि मेरे द्वार पर कोई आए वह खाली हाथ नहीं जा सकता। तब वामनदेव ने दान देने का पहले वचन लेकर संकल्प कराया और तब तीन पग धरती दान में मांगी। बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं सुनी और वामन के दान मांगने पर उनको तीन पग भूमि दान में दे दी। जब जल छोड़कर सब दान कर दिया गया, तब ब्राह्मण वेश में वामन भगवान ने अपना विराट रूप दिखा दिया।
 
एक पग में भूमंडल नाप लिया। दूसरे में स्वर्ग और तीसरे के लिए बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखूं? पूछने पर बलि ने मुस्कराकर कहा- इसमें तो कमी आपके ही संसार बनाने की हुई, मैं क्या करूं भगवान? अब तो मेरा सिर ही बचा है। इस प्रकार विष्णु ने उसके सिर पर तीसरा पैर रख दिया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु ने उस पाताल में रसातल का कलयुग के अंत तक राजा बने रहने का वरदान दे दिया। तब बलि ने विष्णु से एक और वरदान मांगा।
 
राजा बलि ने कहा कि भगवान यदि आप मुझे पाताल लोक का राजा बना ही रहे हैं तो मुझे वरदान दीजिए कि मेरा साम्राज्य शत्रुओं के प्रपंचों से बचा रहे और आप मेरे साथ रहें। अपने भक्त के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प लिया। पातालपुरी में राजा बलि के राज्य में आठों प्रहर भगवान विष्णु सशरीर उपस्थित रह उनकी रक्षा करने लगे और इस तरह बलि निश्चिंत होकर सोता था और संपूर्ण पातालपुरी में शुक्राचार्य के साथ रहकर एक नए धर्म राज्य की व्यवस्था संचालित करता था।
 
इधर वैकुण्ठ में सभी देवी-देवता समेत लक्ष्मीजी अत्यंत चिंतित हो गईं। तब इस कठिन काल में नारदजी ने माता लक्ष्मी को एक युक्ति बताई। उन्होंने कहा कि एक रक्षासूत्र लेकर वे राजा बलि के पास अपरिचित रूप में दीन-हीन दुखियारी बनकर जाएं और राजा बलि को भाई बनाकर दान में प्रभु को मांग लाएं। लक्ष्मीजी राजा बलि के दरबार में उपस्थित हुईं और उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें भाई बनाना चाहती हैं। राजन ने उनका प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया और उनसे रक्षासूत्र बंधवा लिया और कहा कि अपनी इच्छा के अनुरूप कुछ भी उनसे मांग लें। लक्ष्मीजी इसी हेतु तो वहां आई थीं।
 
उन्होंने राजा से कहा कि आप मुझे अपनी सबसे प्रिय वस्तु दे दें। राजन घबरा गए। उन्होंने कहा मेरा सर्वाधिक प्रिय तो मेरा यह प्रहरी है, परंतु इसे देने से पूर्व तो मैं प्राण त्यागना अधिक पसंद करूंगा। तब लक्ष्मीजी ने अपना परिचय उन्हें दिया और बताया कि मैं आपके उसी प्रहरी की पत्नी हूं जिन्हें उन्होंने बहन माना था। उसके सुख-सौभाग्य और गृहस्थी की रक्षा करना भी उन्हीं का दायित्व था और यदि बहन की ओर देखते तो उन्हें अपने प्राणों से भी प्रिय अपने इष्ट का साथ छोडऩा पड़ता, पर राजन भक्त, संत और दानवीर यूं ही तो न थे।
 
उन्होंने अपने स्वार्थ से बहुत ऊपर बहन के सुख को माना और प्रभु को मुक्त कर उनके साथ वैकुण्ठ वास की सहमति दे दी, परंतु इसके साथ ही उन्होंने लक्ष्मीजी से आग्रह किया कि जब बहन-बहनोई उनके घर आ ही गए हैं तो कुछ मास और वहीं ठहर जाएं और उन्हें आतिथ्य का सुअवसर दें। लक्ष्मीजी ने उनका आग्रह मान लिया और श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन) से कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि (धनतेरस) तक विष्णु और लक्ष्मीजी वहीं पाताल लोक में राजा बलि के यहां रहे। धनतेरस के बाद प्रभु जब लौटकर वैकुण्ठ को गए तो अगले दिन पूरे लोक में दीप-पर्व मनाया गया।

माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन से धनतेरस तक विष्णु लक्ष्मी संग राजा बलि के यहां रहते हैं और दीपोत्सव के अन्य कई कारणों संग एक कारण यह भी है। उपरोक्त कथा जनश्रुति पर आधारित है।
 
#
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन को छोटी दिवाली, रूप चौदस और काली चौदस भी कहा जाता है। इस यम पूजा, कृष्ण पूजा और काली पूजा होती है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस दिन वामन पूजा का भी प्रचलन है। कहते हैं कि इस दिन राजा बलि (महाबली) को भगवान विष्णु ने वामन अवतार में हर साल उनके यहां पहुंचने का आशीर्वाद दिया था। इसी कारण से वामन पूजा की जाती है। तीन पग धरती दान में लेने के बाद वामनदेव ने कहा कि वर मांगों तब अनुसरराज बलि बोले, हे भगवन! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त दीपदान करेगा, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें। ऐसे वरदान दीजिए। यह प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! ऐसा ही होगा, तथास्तु। भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ।
 
#
नरक चतुर्दशी के दिन दक्षिण भारत में वामन पूजा का भी प्रचलन है। कहते हैं कि इस दिन राजा बलि (महाबली) को भगवान विष्णु ने वामन अवतार में हर साल उनके यहां पहुंचने का आशीर्वाद दिया था। इसी कारण से वामन पूजा की जाती है।
 
दक्षिण में दिवाली से जुड़ी सबसे अनोखी परंपरा है जिसे 'थलाई दिवाली' कहा जाता है। दक्षिण भारत में राजा बली और मार्गपाली पूजा का प्रचलन है। केरल और इससे जुड़े क्षेत्र में दीपावली का त्योहार राजा बली की कथा से जुड़ा हुआ है, जबकि आंध्र में श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने राक्षस नरकासुर को मार डाला था इसलिए सत्यभामा की विशेष मिट्टी की मूर्तियों की प्रार्थना होती है।
 
कर्नाटक में दिवाली के 2 दिन मुख्य रूप से मनाए जाते हैं- पहला अश्विजा कृष्ण और दूसरा बाली पदयमी जिसे नरक चतुर्दशी कहा जाता है। उसे यहां अश्विजा कृष्ण चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन लोग तेल स्नान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मारने के बाद अपने शरीर से रक्त के धब्बों को मिटाने के लिए तेल से स्नान किया था। तीसरे दिन दिवाली के दिन को बाली पदयमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन महिलाएं घरों में रंगोलियां बनाती हैं और गाय के गोबर से घरों को लीपती भी हैं। इस दिन राजा बालि से जुड़ी कहानियां मनाई जाती हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Weekly Horoscope: 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा सप्ताह, पढ़ें साप्ताहिक राशिफल (18 से 24 नवंबर)

Mokshada ekadashi 2024: मोक्षदा एकादशी कब है, क्या है श्रीकृष्‍ण पूजा का शुभ मुहूर्त?

Shani Margi: शनि का कुंभ राशि में मार्गी भ्रमण, 3 राशियां हो जाएं सतर्क

विवाह पंचमी कब है? क्या है इस दिन का महत्व और कथा

उत्पन्ना एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा?

सभी देखें

धर्म संसार

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

Indian Calendar 2025 : जानें 2025 का वार्षिक कैलेंडर

Vivah muhurat 2025: साल 2025 में कब हो सकती है शादियां? जानिए विवाह के शुभ मुहूर्त

वर्ष 2025 में गृह प्रवेश के शुभ मुहूर्त कौन कौनसे हैं?

अगला लेख