दीपावली के दिन माता लक्ष्मी के इस रूप को ना पूजें

अनिरुद्ध जोशी
माता लक्ष्मी के कई रूप है। उत्तर भारत और दक्षिण भारत में देवी लक्ष्मी को अलग अलग रूप में पूजा जाता है। आओ जानते हैं कि कितने रूप हैं और दिवाली के दिन किस लक्ष्मी को पूजना चाहिए।
 
 
दक्षिण भारत में : दक्षिण भारत में लक्ष्मीजी की अभिव्यक्ति को दो रूपों में देखा जाता है- 1. श्रीरूप और 2. लक्ष्मी रूप। श्रीरूप में वे कमल पर विराजमान हैं और लक्ष्मी रूप में वे भगवान विष्णु के साथ हैं। श्रीरूप को श्रीदेवी कहा जाता है। भूदेवी धरती की देवी हैं और श्रीदेवी स्वर्ग की देवी। पहली उर्वरा से जुड़ी हैं, दूसरी महिमा और शक्ति से। भूदेवी सरल और सहयोगी पत्नी हैं जबकि श्रीदेवी चंचल हैं। विष्णु को हमेशा उन्हें खुश रखने के लिए प्रयास करना पड़ता है। दक्षिण भारत में श्रीदेवी की पूजा का ज्यादा प्रचलन है।
ALSO READ: धनतेरस की शाम 13 दीपक घर के अंदर और 13 दीपक घर के बाहर लगाएं
उत्तर भारत में : उत्तर भारत में लक्ष्मी के 'विष्णुपत्नी लक्ष्मी' एवं 'राज्यलक्ष्मी' दो रूप प्रचलित है। एक भृगु की पुत्री और विष्णु की पत्नी हैं तो दूसरी समुद्र मंथन से उत्पन्न है। महाभारत में भी इसी रूप का उल्लेख मिलता है। उत्तर भारत में दोनों की ही पूजा का प्रचलन है।
 
विष्णुप्रिया लक्ष्मी : ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। म‍हर्षि भृगु विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षियों में स्थान मिला है। राजा दक्ष के भाई भृगु ऋषि थे। इसका मतलब वे राजा द‍क्ष की भतीजी थीं। माता लक्ष्मी के दो भाई दाता और विधाता थे। भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती उनकी (लक्ष्मीजी की) सौतेली बहन थीं। सती राजा दक्ष की पुत्री थीं।
 
ALSO READ: धनतेरस के दिन कुबेर के 3 चमत्कारी मंत्र खोल देंगे खजाना आपके लिए
समुद्र मंथन की लक्ष्मी : समुद्र मंथन की लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है। उनके हाथ में स्वर्ण से भरा कलश है। इस कलश द्वारा लक्ष्मीजी धन की वर्षा करती रहती हैं। उनके वाहन को सफेद हाथी माना गया है। दरअसल, महालक्ष्मीजी के 4 हाथ बताए गए हैं। वे 1 लक्ष्य और 4 प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं और मां महालक्ष्मीजी सभी हाथों से अपने भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा करती हैं।
 
 
अष्टलक्ष्मी : संपूर्ण भारत में लक्ष्मी के आठ रूप भी प्रचलित है। खासकर महाराष्ट्र में इसकी मान्यता ज्यादा है। अष्टलक्ष्मी माता लक्ष्मी के 8 विशेष रूपों को कहा गया है। माता लक्ष्मी के 8 रूप ये हैं- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी। विशेष अवसरों पर उक्त लक्ष्मी रूप की पूजा कर प्रचलन है। इसमें से दीपावली के दिन धनलक्ष्मी की पूजा होती है।
 
ALSO READ: धनतेरस उपाय : जो बर्तन घर पर लाएं उसे खाली न रखें, ये 7 चीजें तुरंत रखें उसमें...
उल्लू और हाथी: एक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू है और धन की देवी महालक्ष्मी का वाहन हाथी है। कुछ के अनुसार उल्लू उनकी बहन अलक्ष्मी का प्रतीक है, जो सदा उनके साथ रहती है। देवी लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी भ्रमण करने आती हैं। परंतु इस मान्यता की पुष्‍टि संभव नहीं है।

माता लक्ष्मी को चित्र में उल्लू, हाथी या कमल पर विराजमान बताया जाता है। उल्लू पर बैठी हुई मां लक्ष्मी का चित्र पूजन में रखने से लक्ष्मी नकारात्मकता लेकर आती है। क्योंकि उल्लू वाहन से आई लक्ष्मी गलत दिशा से आने और जाने वाले धन की ओर इशारा करती हैं। इसलिए उल्लू पर लक्ष्मी का आना उतना शुभ नहीं होता।
 
ALSO READ: दीपावली पर किए जाते हैं यह 10 मंगल कार्य
दीपावली पर किसे पूजे?
देवी लक्ष्मी का घनिष्ठ संबंध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से है। इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के राजा हैं तथा कुबेर देवताओं के खजाने के रक्षक के पद पर आसीन हैं। देवी लक्ष्मी ही इन्द्र तथा कुबेर को इस प्रकार का वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैं। देवी लक्ष्मी जो कमल पर विराजमान है और जिनके आसपास गणेश वा सरस्वती और आसमान ही हाथी सुंड उठाए हों ऐसी लक्ष्मी की पूजा का प्रचलन रहा है या हाथी पर विराजमान लक्ष्मी या विष्णुजी के साथ गरूढ़ पर विराजमान लक्ष्मी की पूजा की जाती है। उल्लू पर विराजमान लक्ष्मी की पूजा नहीं की जाती है। दीपावली के दिन धनलक्ष्मी की पूजा होती है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

क्या कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है या अगले जन्म में?

वैशाख अमावस्या का पौराणिक महत्व क्या है?

शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि में होंगे वक्री, इन राशियों की चमक जाएगी किस्मत

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से शुरू होंगे इन 4 राशियों के शुभ दिन, चमक जाएगा भाग्य

Lok Sabha Elections 2024: चुनाव में वोट देकर सुधारें अपने ग्रह नक्षत्रों को, जानें मतदान देने का तरीका

धरती पर कब आएगा सौर तूफान, हो सकते हैं 10 बड़े भयानक नुकसान

घर के पूजा घर में सुबह और शाम को कितने बजे तक दीया जलाना चाहिए?

Astrology : एक पर एक पैर चढ़ा कर बैठना चाहिए या नहीं?

100 साल के बाद शश और गजकेसरी योग, 3 राशियों के लिए राजयोग की शुरुआत

Varuthini ekadashi 2024: वरुथिनी व्रत का क्या होता है अर्थ और क्या है महत्व

अगला लेख