आओ तम को दूर भगाएं...

Webdunia
कैलाश यादव 'सनातन'


 
अमावस को हम कर दें पूनम, आओ झिलमिल दीप जलाएं।
कोना-कोना कर दें रोशन, आओ तम को दूर भगाएं।।
 
दीन-हीन जितने दुनिया में, आओ सबको गले लगाएं,
घर-घर जाकर मिलें-जुलें हम, आओ समता-भाव जगाएं।
 
कोना-कोना कर दें रोशन, आओ तम को दूर भगाएं।।
 
किसी के घर में दीप नहीं है, किसी के घर में तेल नहीं,
ऐसे जग में स्वर्ग नहीं है, जहां पे जग में मेल नहीं।
 
जिनकी आंखों बसा अंधेरा, उनके दिल में दीप जलाएं।
कोना-कोना कर दें रोशन, आओ तम को दूर भगाएं।।
 
यहां पे घर-घर छटा निराली, हर ओर छाई दिवाली,
कहीं पड़ोसी मुस्लिम भाई, कहीं सिख और कहीं ईसाई,
 
कोई कोना छूट न जाए, कोई पड़ोसी रूठ न जाए,
दीप जलाना रंग-बिरंगे, कोई रिश्ता टूट न जाए,
 
दीप-दान घर-घर में कर दें, आओ ज्योति पर्व मनाएं।
कोना-कोना कर दें रोशन, आओ तम को दूर भगाएं।।
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