आओ मिलकर मनाएँ दिवाली

धनतेरस विशेष मुहूर्त

Webdunia
- सिकन्दर हमीद इरफ़ान

ND
दीप यादों के झिलमिलाते हैं
भूले बिसरे भी याद आते हैं
और चुपके से मुस्कुराते हैं
लेके दीपों की हाथ में थाली
आओ मिलकर मनाएँ दिवाली

हर तरफ़ रंग-ओ-नूर की बारिश
हो रही है सरूर की बारिश
सोच की हद से दूर की बारिश
पेड़ पर झूमती है हर डाली
आओ मिलकर मनाएँ दिवाली

लम्हा लम्हा शबाब का आलम
जैसे रंगीन ख़्वाब का आलम
इन चराग़ों की ताब का आलम
शब ने पहनी है नूर की बाली
आओ मिलकर मनाएँ दीवाली

दोस्त-दुश्मन को ये मिलाती है
सबको अपना सदा बनाती है
और अँधेरों को ये मिटाती है
रोशनी है अजब ये मतवाली
आओ मिलकर मनाएँ दिवाली

अपनी पलकों से पोंछ लो आँसू
आज तो दीप बन गए जुगनू
इस फ़िज़ा में बिखेर दो ख़ुशबू
जा चुकी ग़म की रात वो काली
आओ मिलकर मनाएँ दिवाली

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