दीपावली : भारतीय संस्कृति का अनूठा त्योहार

- दाती मदन महाराज

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यम चतुर्दशी: कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को यम पूजन भी करते हैं। यमराज से निवारण के लिए लोग रसोईघर, दरवाजे, जलाशय आदि स्थानों पर दीपक जलाते हैं। शास्त्र के अनुसार चंद्रोदय के बाद तिल का तेल लगाकर स्नान करने से रोगों का नाश होता है। सायं चौमुख दीपक जलाने चाहिए। यद्यपि यह भी प्रसंग है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार, स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में स्वयं भगवान शिवजी ने अंजना के गर्भ से अवतार लिया है जिन्हें हनुमानजी कहते हैं। इसीलिए यह चतुर्दशी हनुमज्जयंती के रूप में भी मनाई जाती है।

महालक्ष्मी पूजन : तीसरा दिन महालक्ष्मी पूजन यानी दीपावली का दिन है। सजावटों के साथ महालक्ष्मी की पूजा प्रधान मानी जाती है। व्यावसायिक वर्ग दुकान, ऑफिस, फैक्टरी और वाहनों की पूजा करते हैं। लक्ष्मी पूजन संपूर्ण देश में गरीब से अमीर तक अपने वैभवानुसार उत्साह और उमंग के साथ करते हैं और मनाते हैं। मध्यरात्रि में श्रीकाली की पूजा होती है। जहाँ कालीजी स्थायी धातु की मूर्ति नहीं है वहाँ सपरिवार कालीजी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है।

आजकल दीपावली और लक्ष्मी पूजन के साथ एक विशेष कार्यक्रम भी होता है जिसे पटाखेबाजी या आतिशबाजी कहते हैं। यह आतिशबाजी की होड़ आज मानों अभिशाप बनती जा रही है। पैसों का दुरुपयोग तो होता ही है, साथ ही इस आतिशबाजी में असावधानी के कारण लोगों के अंगभंग के साथ मकानों में भी आग लग जाती है। अतः इसकी रोकथाम आवश्यक है।

गोवर्धन पूजा : दीपावली के प्रातःकाल गृहस्थों के लिए गोवर्धन पूजन बहुत ही महत्व का पर्व है। गृहस्थों के यहाँ प्रातःकाल ही गाय, बैल और भैसों के गोबर से गोवर्धन बनाकर पुष्पों से सजाकर उस पर दूध, दही डालकर बड़े उत्साह के साथ पूजन करते हैं। इसी दिन गृहस्थ के यहाँ जितने भी पशु हैं उन्हें विशेष प्रकार का भोजन देकर चित्र-विचित्र रंगों से सजावट करते हैं। राजस्थान में यह प्रथा सायंकाल के समय में बड़े उत्साह से मनाई जाती है।

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भैया दूज : द्वितीया तिथि को भ्रातृ द्वितीया भाई-बहन का पर्व माना जाता है। उस दिन भाई बहन के यहाँ जाकर बहन के हाथ का भोजन करना श्रेयस्कर मानते हैं। सूर्य का पुत्र यमराज और पुत्री यमुना दोनों भाई-बहन हैं। किवदंती है कि यमुना के प्रार्थना पर ही यमराज ने यमुना से कहा- आज के दिन जो भाई अपनी बहन के यहाँ भोजन करेगा, उसे यमराज का भय नहीं रहेगा। इसीलिए यह भैयादूज पर्व के नाम से जाना जाता है।

विशेष ध्यान देने की बात है कि आज हम सब इस भौतिक चकाचौंध से प्रभावित हो अंधे होकर लक्ष्मी के पीछे दौड़ रहे हैं। किंतु आज इसका खुला दुरुपयोग हो रहा है। आज धनार्द्धमं ततः सुखम्‌ यह आप्त वाक्य न रहकर विद्या विवादाय धनं मदायः शक्ति परेषेम पर पीडनायः का राज्य है। साथ ही यौवनं धनसम्पत्ति प्रभूत्वमविवेकताः का खुला तांडव नृत्य देखने में आ रहा है। ऐसा क्यों?

यह एक अति विचारणीय विषय है। इसका प्रमुख कारण देखा-देखी की होड़ और विचार शक्ति की कमी है। यदि इस होड़ की तरफ से ध्यान हटाकर शांतचित्त से विचार करें तो स्वतः हृदय में जागृति पैदा होगी कि विद्या विवाद के लिए नहीं, ज्ञान के लिए, धन संचय के लिए नहीं, दान के लिए है और शक्ति पर पीड़ा के लिए नहीं, रक्षण के लिए होनी चाहिए।

इस प्रकार यह दीपावली पर्व हम लोगों के लिए आनंद और उजास का पर्व है। यह लक्ष्मी प्राप्ति का पर्व है। अतस इस लक्ष्मी का सदुपयोग ही श्रेयस्कर है। नहीं तो लक्ष्मी का दूसरा नाम चंचला है। वह धन का दुरुपयोग होता देखकर उस स्थान को छोड़ने में जरा भी देर नहीं लगाती।

धनतेर स : त्रयोदशी जिसे धनतेरस कहते हैं, दीपावली से दो दिन पूर्व आती है। शास्त्रों की मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को देव वैद्य धन्वंतरि का जन्म दिवस है। अतः आयुर्वेदिक वैद्य, आयुर्वेद प्रवर्तक भगवान धन्वंतरि की पूजा कर धन्वंतरि जयंती मनाते हैं। इसी दिन यमराज के लिए दीप दान अपमृत्यु निवारण हेतु देते हैं। यथा-

कार्तिकस्या सिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे।
यमदीप बर्हिदद्यादपमृत्युर्विनष्यति॥
गोत्र रात्रि यमपंचकारंभे शुभाशुभे त्रयगुण करः ॥

त्रयोदशी की शाम को अपमृत्यु के निवारण के लिए दीपक जलाना चाहिए। कर्तव्य के अनुसार तीनों गुण युक्त शुभ और अशुभ फल लोग प्राप्त करते हैं।

दूसरे पक्ष में यह भी देखा जाता है कि लक्ष्मी आगमन का प्रारूपजन्य गृहकार्य में आने वाले नवीन बर्तन खरीदना अत्यावश्यक समझते हैं और खरीदते हैं। यद्यपि यह परंपरा प्राचीन नहीं है, फिर भी आजकल इसे आवश्यक मानकर कुछ न कुछ बर्तन अवश्य खरीदते हैं और मिष्ठान्ना आदि बनाते हैं। वास्तविकता यह है कि लक्ष्मी के सत्कार में दो दिन पहले से ही लोग घर-दरवाजे पर दीपक जलाकर उनका आह्वान करते हैं।

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