हँसने-खेलने और मस्ती करने की उम्र में बच्चों को लगातार अस्पतालों के, ब्लड बैंक के चक्कर काटने पड़ें तो सोचिए उनका और उनके परिजनों का क्या हाल होगा! सूखता चेहरा, लगातार बीमार रहना, वजन ना ब़ढ़ना और इसी तरह के कई लक्षण बच्चों में थेलेसीमिया रोग होने पर दिखाई देते हैं। माता-पिता से अनुवांशिकता के तौर पर मिलने वाली इस बीमारी की विडंबना है कि इसके कारणों का पता लगाकर इससे बचा नहीं जा सकता। विश्व थेलेसीमिया दिवस (8 मई) पर थेलेसीमिया के लक्षण और कारणों पर आधारित जानकारी -
क्या है थेलेसीमिया यह एक ऐसा रोग है जो बच्चों में जन्म से ही मौजूद रहता है। तीन माह की उम्र के बाद ही इसकी पहचान होती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसमें बच्चे के शरीर में खून की भारी कमी होने लगती है, जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून की जरूरत होती है। खून की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है एवं बार-बार खून चढ़ाने के कारण मरीज के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है, जो हृदय में पहुँचकर प्राणघातक साबित होता है।
लक्षण . बार-बार बीमारी होना . सर्दी, जुकाम बने रहना . कमजोरी और उदासी रहना . आयु के अनुसार शारीरिक विकास न होना . शरीर में पीलापन बना रहना व दाँत बाहर की ओर निकल आना . साँस लेने में तकलीफ होना . कई तरह के संक्रमण होना
बचाव और हिदायत . विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जाँच कराएँ . गर्भावस्था के दौरान इसकी जाँच कराएँ . मरीज की हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें . समय पर दवाइयाँ लें और इलाज पूरा लें।
कुछ अहम तथ्य . अस्थि मंजा ट्रांसप्लांटेशन (एक किस्म का ऑपरेशन) इसमें काफी हद तक फायदेमंद होता है, लेकिन इसका खर्च काफी ज्यादा होता है। . मप्र और छत्तीसग़ढ़ में थेलेसीमिया, सिकल सेल, सिकलथेल, हिमोफेलिया आदि से पीडि़त बच्चों की संख्या 30 हजार से ज्यादा . थेलेसीमिया से पीडि़त अधिकांश गरीब बच्चे 8-10 वर्ष से ज्यादा नहीं जी पाते . इंदौर में पीडि़त की संख्या 700 और आसपास के क्षेत्रों सहित 2 हजार से ज्यादा . बीमारी के कारण अब तक 400 से ज्यादा बच्चों की मौत . वर्ष 2008 में शहर में 76 थेलेसीमिया पीडि़त बच्चों ने जन्म लिया . 2009 में 30 से ज्यादा पीडि़त बच्चों की मौत . अन्य राज्यों की अपेक्षा थेलेसीमिया पीडि़त बच्चों के प्रति मप्र सरकार उदासीन, सरकारी योजनाओं की जरूरत ( आँक़ड़ों में संभावित संख्या रक्त रोग विशेषज्ञ व एनजीओ से प्राप्त)
थेलेसीमिया एक प्रकार का रक्त रोग है। इसके बारे में जानकारी देते हुए रक्त रोग विशेषज्ञ डॉ. गोपाल भागवत बताते हैं- यह दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थेलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थेलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। पालकों में से एक ही में माइनर थेलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता।
अतः जरूरी यह है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों अपनी जाँच करा लें। थेलेसीमिया पीडि़त के इलाज में काफी खून और दवाइयों की जरूरत होती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते, जिससे 12 से 15 वर्ष की आयु में बच्चों की मौत हो जाती है। सही इलाज करने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की उम्मीद होती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, खून की जरूरत भी बढ़ती जाती है।