इतने दुर्गुणों के बाद भी क्यों रावण को कहा जाता है महान

जानिए रावण के व्यक्तित्व के बारे में चौंकाने वाले तथ्य

WD Feature Desk
सोमवार, 7 अक्टूबर 2024 (11:07 IST)
Interesting Facts about Rawan

Interesting Facts about Rawan: रावण के बिना रामायण की कल्पना भी नहीं के जा सकती। रावण नाम का दुनिया में कोई और व्यक्ति कभी नहीं हुआ। इतने दुर्गुणों के कारण कोई अपने बच्चे का नाम रावण नहीं रखता है। लेकिन आज हम आपको रावण के व्यक्तित्व के बारे में ऐसा तथ्य बता रहे हैं जिससे रावण के जीवन के कुछ अनछुए पहलू उजागर होते हैं।

महान ग्रंथों का रचयिता था रावण : राक्षस कुल का होते हुए भी रावण भगवान् शिव का परम भक्त और महाज्ञानी था। रावण न कई ग्रंथों की रचना की थी।

रावण ने ही शिव तांडव स्त्रोत, रावण संहिता, दस शतकात्मक अर्कप्रकाश, दस पटलात्मक, उड्डीशतंत्र, कुमारतंत्र, नाड़ी परीक्षा नामक ग्रंथ लिखे थे। यह भी कहते हैं कि रावण ने ही अरुण संहिता, अंक प्रकाश, इंद्रजाल, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर और रावणीयम आदि पुस्तकों की रचना भी की थी।

अविष्कारों का जनक रावण : रावण हर समय खोज और अविष्‍कार को ही महत्व देता था। वह नए नए अस्त्र, शस्त्र और यंत्र बनवाता रहता था। कहते हैं कि वह स्वर्ग तक सीढ़ियां बनवान चाहता था। वह स्वर्ण में से सुगंध निकले इसके लिए भी प्रयास करता था। रावण की वेधशाला थी जहां तरह तरह के आविष्कार होते थे। खुद रावण ने उसकी वेधशाला में दिव्‍य-रथ का निर्माण किया था। कुंभकर्ण अपनी पत्नी वज्रज्वाला के साथ अपनी प्रयोगशाला में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र और यंत्र बनाने में ही लगे रहते थे जिसके चलते उनको खाने-पीने की सुध ही नहीं रहती थी। कुंभकर्ण की यंत्र मानव कला को ‘ग्रेट इंडियन' पुस्‍तक में ‘विजार्ड आर्ट' का दर्जा दिया गया है। इस कला में रावण की पत्‍नी धान्‍यमालिनी भी पारंगत थी। उल्लेखनीय है कि रावण की पहली पत्नी मंदोदरी ने ही शतरंज का अविष्कार किया था।
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कठोर तपस्वी था रावण : रावण तपस्वी था। यह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए तप करता रहता था। उसने तप के बल पर ही ब्रह्मा से वरदान मांगा था और उसने तप के ही बल पर सभी ग्रहों के देवों को बंधक बना लिया था। हनुमानजी ने ही शनिदेव को रावण के बंधन से मुक्त कराया था।

प्रकांड पंडित रावण : रावण कवि, संगीतज्ञ, वेदज्ञ होने के साथ साथ ही वह आयुर्वेद का जानकार भी था। रावण को रसायनों का भी अच्छा खासा ज्ञान था। माना जाता है कि रसायन शास्त्र के इस ज्ञान के बल पर उसने कई अचूक शक्तियां हासिल थीं और उसने इन शक्तियों के बल पर अनेक चमत्कारिक कार्य संपन्न कराए। हर व्यक्ति को जड़ी-बूटी और आयुर्वेद का ज्ञान रखना चाहिए क्योंकि जीवन में इसकी उपयोगिता बहुत होती है।

कहां तक था रावण के राज्य का विस्तार : रावण ने सुंबा और बालीद्वीप को जीतकर अपने शासन का विस्तार करते हुए अंगद्वीप, मलयद्वीप, वराहद्वीप, शंखद्वीप, कुशद्वीप, यवद्वीप और आंध्रालय पर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया। लंका पर कुबेर का राज्य था। आज के युग अनुसार रावण का राज्य विस्तार, इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, दक्षिण भारत के कुछ राज्य और श्रीलंका पर रावण का राज था।

दरअसल माली, सुमाली और माल्यवान नामक तीन दैत्यों द्वारा त्रिकुट सुबेल पर्वत पर बसाई लंकापुरी को देवों और यक्षों ने जीतकर कुबेर को लंकापति बना दिया था। रावण की माता कैकसी सुमाली की पुत्री थी। अपने नाना के उकसाने पर रावण ने अपनी सौतेली माता इलविल्ला के पुत्र कुबेर से युद्ध की ठानी, परंतु पिता ने लंका रावण को दिलासा दी तथा कुबेर को कैलाश पर्वत के आसपास के त्रिविष्टप (तिब्बत) क्षेत्र में रहने के लिए कह दिया। इसी तारतम्य में रावण ने कुबेर का पुष्पक विमान भी छीन लिया।

क्या रावण के सच में थे दस सिर : जैन शास्त्रों में उल्लेख है कि रावण के गले में बड़ी-बड़ी गोलाकार नौ मणियां होती थीं। उक्त नौ मणियों में उसका सिर दिखाई देता था जिसके कारण उसके दस सिर होने का भ्रम होता था।
रामायण में वाल्मीकिजी ने रावण के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग किया है- रावण, लंकेश, लंकेश्वर, दशानन, दशग्रीव, शकंधर, राक्षससिंह, रक्षपति, राक्षसाधिपम्, राक्षसशार्दूलम्, राक्षसेन्द्र; राक्षसाधिकम्, राक्षसेश्वरः, लंकेश, लंकेश्वर। कुछ गिनती के स्थानों पर ही वाल्मीकी ने रावण के लिए दस-सिर सूचक दशानन, दशग्रीव या दशकंधर जैसे शब्दों का प्रयोग किया है।

हालांकि रावण के बारे में एक अन्य प्रसंगानुसार जब रावण की घायल बहन शूर्पनखा रावण की राज्य सभा में जाती है, तो वाल्मीकि लिखते हैं कि रावण मंत्रियों से घिरा बैठा था। "उसके बीस भुजाएं और दस मस्तक थे।" विंशद्भुजं दशग्रीवं दर्शनीयपरिच्छदम् (वा.रा।) इसी तरह जब हनुमान को बंदी बनाकर रावण की मंत्री परिषद के सामने पेश किया जाता है, तब हनुमान देखते हैं कि रावण के दस सिर हैं- शिरोभिर्दशभिर्वीरं भ्राजमानं महौजसम् (वा. रा. 5/49/6)। किन्तु, यह बताना महत्वपूर्ण है कि इससे ठीक पहली रात को जब सीता की खोज कर रहे हनुमान रावण के अन्तःपुर में घुसते हैं, और रावण को पहली बार देखते हैं, तो वहां स्पष्ट रूप में, बिना किसी भ्रम के, शयन कक्ष में सो रहे रावण का एक सिर और दो हाथ ही देखते हैं (वा. रा. 5/10/15)।...अब यह शोध का विषय हो सकता है कि रावण के सचमुच में दस सिर थे या नहीं।

 
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