इन 2 कारणों से मनाया जाता है दशहरे का पर्व, जानिए 10 घटनाएं

अनिरुद्ध जोशी
प्रतिवर्ष आश्‍विन शुक्ल की दशमी के दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है। दशहरा मनाने की परंपरा पौराणिक काल से ही चली आ रही है। कालांतर में इस पर्व को मनाने के तरीके बदलते रहे हैं। यह पर्व हिन्दू धर्म के सभी समाज और जातियों का प्रमुख पर्व माना गया है। आओ जानते हैं कि दशहरा का पर्व कि प्रमुख 2 कारणों से मनाया जाता है परंतु इस दिन 10 प्रमुख घटनाएं भी घटी थी।
 
 
प्रमुख 2 कोरण : 
1. माता ने किया था महिषासुर का वध : इस दिन माता कात्यायनी दुर्गा ने देवताओं के अनुरोध पर महिषासुर का वध किया था तब इसी दिन विजय उत्सव मनाया गया था। इसी के कारण इसे विजया दशमी कहा जाने लगा।
 
2. श्रीराम ने किया था लंका प्रस्थान : वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम ने ऋष्यमूक पर्वत पर आश्‍विन प्रतिपदा से नवमी तक आदिशक्ति की उपासना की थी। इसके बाद भगवान श्रीराम इसी दिन किष्किंधा से लंका के लिए रवाना हुए थे। यह भी कहा जाता है कि रावण वध के कारण दशहरा मनाया जाता है। श्रीराम ने रावण का वध करने के पूर्व नीलकंठ को देखा था। नीलकंठ को शिवजी का रूप माना जाता है। अत: दशहरे के दिन इसे देखना बहुत ही शुभ होता है।
 
10 घटनाएं :
 
1. माता ने किया था महिषासुर का वध।
 
2. इसी दिन पांडवों को वनवास हुआ था। 
 
3. इसी दिन पांडवों ने कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। परंतु इसकी कोई पुष्टि नहीं है। 
 
4. इसी दिन अज्ञातवास समाप्त होते ही, पांडवों ने शक्तिपूजन कर शमी के वृक्ष में रखे अपने शस्त्र पुनः हाथों में लिए एवं विराट की गाएं चुराने वाली कौरव सेना पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की थी।
 
5. यह भी कहा जाता है कि इस दिन देवी सती अग्नि में समा गई थीं। 
 
6. इस दिन से वर्षा ऋ‍तु की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास भी समाप्त हो जाता है। 
 
7. माना जाता है कि दशहरे के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्रा देते हुए शमी की पत्तियों को सोने का बना दिया था, तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है।
 
8. एक ब्राह्मण ने एक राजा से दक्षिणा में 1 लाख स्वर्ण मुद्राएं मांग ली थी तो चिंतित राजा ने एक दिन की मौहलत मांगी। राजा को सपने में भगवान ने दर्शन देककर कहा कि शमी के पत्ते लेकर आओ मैं उसे स्वर्ण मुद्रा में बदल दूंगा। यह सपना देखते ही राजा की नींद खुल गई। उसने उठकर शमी के पत्ते लाने के लिए अपने सेवकों को साथ लिया और सुबह तक शमी के पत्ते एकत्रित कर लिए। तभी चमत्कार हुआ और सभी शमी के पत्ते स्वर्ण में बदल गए। तभी से इसी दिन शमी की पूजा का प्रचलन भी प्रारंभ हो गया।
 
9. वैसे देखा जाए, तो यह त्योहार प्राचीन काल से चला आ रहा है। आरंभ में यह एक कृषि संबंधी लोकोत्सव था। वर्षा ऋतु में बोई गई धान की पहली फसल जब किसान घर में लाते, तब यह उत्सव मनाते थे। इस दिन से वर्षा ऋ‍तु की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास भी समाप्त हो जाता है। वर्षा ऋतु में बोई गई धान की पहली फसल जब किसान घर में लाते, तब यह उत्सव मनाते थे। इस काल से सेहत बनाने का समय प्रारंभ होता है।
 
10. इस दिन शिरडी के साईं बाबा ने समाधि ली थी।
 

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