ईद से ज्यादा बच्चों को खुशी ईदी में

अजीज अंसारी
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ईद के दिन सब ख़ुश रहते हैं। लेकिन बच्चों की ख़ुशी का क्या कहना! उन्हें मेले में दोस्तों के साथ घूमना, अपनी पसन्द की चीज़ें ख़रीदना और ख़ूब मौज-मस्ती करना अच्छा लगता है। इन सब कामों के लिए पैसों की ज़रूरत होती है और ईद के दिन पैसों की कोई कमी होती नहीं है। ईद के दिन ईदी जो मिलती है। हर बड़ा अपने से छोटे को अपनी हैसियत के हिसाब से कुछ रुपए देता है, इसी रक़म को ईदी कहते हैं छोटे बड़ों के सामने जाते हैं, सलाम करते हैं और ईद मुबारक कहते हैं, बस! हो गई ईदी पक्की। कुछ बच्चे यहाँ ज़िद भी कर लेते हैं और अपनी मुँह माँगी रक़म हासिल कर लेते हैं।

ज़कात
इसलाम के पाँच ज़रूरी अरकान में से एक है ज़कात। जो ईद की नमाज़ से पहले अदा की जाती है। हर बालिग़(वयस्क) मुसलमान को अपने माल (धन-दौलत) का चालीसवाँ हिस्सा ग़रीबों, यतीमों, बेसहारा लोगों को देना होता है। हर वो शख़्स मालदार समझा जाता है जिसके पास साढ़े बावन तोला चाँदी या साढ़े सात तोला सोना हो या इनकी क़ीमत के बराबर रुपया हो और उसे उसके पास रहते एक साल का अरसा हो चुका हो। तो उसे उस दौलत का चालीसवाँ हिस्सा दान करना है।

इस तरह ज़कात समाज में बराबरी ख़ुशहाली का न सिर्फ़ पैग़ाम देती है बल्कि उस पर अमल करके भी दिखाती है।

सदक़ा-ए-फ़ित्र
जिस पर ज़कात का देना फर्ज़ है उस पर फ़ितरा देना भी वाजिब है। फ़जर की नमाज़ के बाद से ईद की नमाज़ से पहले तक फ़ितरा दे देना चाहिए। फ़ितरा अपनी तरफ़ से और अपनी नाबालिग़ औलाद की तरफ़ से दिया जाता है। एक फ़र्द की तरफ़ से पोने दो किलो गेहूँ या उसका आटा या इसकी क़ीमत के बराबर रुपया ग़रीबों और नादारों में तक़सीम किया जाता है। इसी को सदक़ा-ए-फ़ित्र या फ़ितरा कहा जाता है।

नगमा 'ईद आई ह ै'
रेहमतें बरसेंगी, रेहमत की घटा छाई है
सब के चेहरों पे मसर्रत की बहार आई है

तू न आएगा तो तेरा ही ख़्याल आएगा
ईद का दिन तेरी यादों में गुज़र जाएगा
दिल तमाशा है मेरा दिल ही तमाशाई है
रेहमतें बरसेंगी---------

आज तो फूल भी कहते हैं सभी खिल खिल के
ईद का जश्न मनाएँगे गले मिल मिल के
ईद जब आई है हर शै ने ग़ज़ल गाई है
रेहमतें बरसेंगी--------

अब वतन में कोई अदना है न आला होगा
अब ग़रीबी को अमीरी से न शिकवा होगा
ईद सब के लिए पैग़ाम-ए-वफ़ा लाई है
रेहमतें बरसेंगी---------

सलासी (छोटी नज़्म, त्रिवेणी)
1. क़िस्सा-ए-ग़म फ़िज़ूल होता है
ईद का दिन है आज तो प्यारे
रेहमतों का नुज़ूल होता है

2. हर तरफ़ रेहमतों की बारिश है
आज मअसरूर है जहाँ सारा
ईद है रेहेमतों की बारिश ह ै।

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