रूहानियत का सच्चा रास्ता है रोजा-13

प्रस्तुति : अज़हर हाशमी

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मगफिरत (मोक्ष) की बात दरअसल रूहानियत (आध्यात्मिकता) से, रूहानियत इबादत से, इबादत अल्लाह (ईश्वर) से ताल्लुक़ रखती हैं। रोजा, रूहानियत का रास्ता है। रोजा अल्लाह से वास्ता है। तक़्वा (संयम) रोजे की शर्त है। तरीके से रखा गया रोजा, रोजादार के लिए सवाब ही सवाब है। रोजा नेकी के मकान में मगफिरत का चिराग है।

रमजान के पवित्र माह का दूसरा अशरा (कालखंड) जैसा कि पहले जिक्र किया जा चुका है कि मगफिरत (मोक्ष) का अशरा है। रोजा जब अहकामे-शरीअत (धार्मिक आचार संहिता) की पाबंदी के साथ रखा जाता है तो अल्लाह की अदालत में रोज़ेदार के लिए मग़फ़िरत का वकील हो जाता है। पवित्र क़ुरआन के तीसवें पारे (आयत-30) की सूरह अल आ'ला की आयत नंबर चौदह और पंद्रह में ज़िक्र है-' बेशक वो मुराद को पहुँच गया जो पाक (पवित्र) हुआ और अपने परवरदिगार के नाम का जिक्र करता रहा और इबादत (आराधना) करता रहा।

कुरआने-पाक की इस आयत की रोशनी में रोजे को बेहतर तरीक़े से समझा जा सकता है (उद्धरण चिह्न)वो मुराद को पहुँच गया(उद्धरण चिह्न) में जो लफ़्ज़ 'मुराद' है दरअसल रूहानी लिहाज़ से मग़फ़िरत की मुराद पूरी होने का इशारा है।

लेकिन शर्त है 'जो पाक (पवित्र) हुआ और अपने परवरदिगार (अल्लाह) का जिक्र करता रहा और इबादत करता रहा' यानी पवित्र आचरण (नेक अमल) के साथ अल्लाह का जिक्र (नामस्मरण) करता रहा और नमाज़ पढ़ता रहा यानी इबादत करता रहा (आराधना करता रहा)। मुख़्तसर (संक्षेप) यह कि रोज़ा (उपवास) मगफिरत (मोक्ष) का चिराग तभी होगा जब रोजादार नेकी के मकान में रहे यानी किसी का दिल न दुखाए, गुस्सा नहीं करें, रिश्वत-घूस नहीं लें, बेईमानी नहीं करे, माँ-बाप की खिदमत करें, अल्लाह की इबादत करें।

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