'रोज़ा' अल्लाह का अदब भी है-8

और फ़जल की तलब भी है

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प्रस्तुति : अजहर हाशमी

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' रोजा' रोशनी की लकीर और नेकी की नजीर (मिसाल) है। रमजान का तो हर रोजा खुशहाली का खजाना और पाकीजगी का पैमाना है। रमजान की बरकतों की तहरीर का ये कारवाँ माशाअल्लाह आठवें रोजे तक पहुँच गया है। दरअसल, रोजा अल्लाह का अदब भी है और फ़जल की तलब भी है। सबूत के तौर पर इस बात को कुरआने-पाक की आयत के हवाले से बेहतरीन और आसान तरीके से समझा जा सकता है। पवित्र कुरआन की सूरह अलहश्र की आयत नंबर 18 (अठारह) में बयान है-'और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह को तुम्हारे कामों की ख़बर है।'

इस आयत की रोशनी में ये बात नुमाया (स्पष्ट) हो जाती है कि अल्लाह (ईश्वर) वसीअ (सर्वव्याप्त) है और अजीम (महान) और अलीम (जानकार) है। अल्लाह को चूँकि हर बात की ख़बर है इसलिए बंदे (भक्त) को यह सोचकर कि अल्लाह की नजर उसके हर काम (कार्य) पर है, अल्लाह से डरना चाहिए। अल्लाह से डरना ही अल्लाह का अदब है। यहाँ दो बातें खासतौर से समझना जरूरी हैं। यानी किसी का अदब हम दो ही वजहों से करते हैं या तो 'डर' से या 'मोहब्बत' से।

अल्लाह (ईश्वर) चूँकि महान और पवित्र (पाकीजा) है इसलिए अजीम (महान) और पाकीजा (पवित्र) से 'डरना' दरअसल 'मोहब्बत' करना ही है। इसलिए एक रोजादार जब रोजा रखता है तो उसके दिल में ख़ौफ़े-खुदा होता है, जो उसे रोजे के अहकाम और अदब से बाँधता है और चूँकि रोजा अल्लाह का ही रास्ता है। इसलिए रोजा अल्लाह से ख़ौफ़ और मोहब्बत का सबब तो है ही, अल्लाह का अदब भी है।

अर्श (आठवाँ आसमान) से जब अल्लाह के फ़जल की तलब की जाती है तो रहीम और करीम (दयालु-कृपालु) होने की वजह से अल्लाह रोजादार की दुआ सुनता है और मुराद पूरी करता है। किसी ने कहा भी है-'दरे-करीम से बंदे को क्या नहीं मिलता/जो माँगने का तरीक़ा है उस तरह माँगो।'

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