Amalaki Ekadashi 2024: आमलकी एकादशी आज, जानें महत्व, मुहूर्त, कथा, मंत्र, पारण समय और पूजा विधि

WD Feature Desk
HIGHLIGHTS
 
• आमलकी एकादशी व्रत कथा यहां पढ़ें।
• आमलकी एकादशी पूजन के शुभ मुहूर्त।
• रंगभरी एकादशी आज, जानें व्रत के बारे में।

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amalaki ekadashi in march 2024: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2024 में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 20 मार्च, दिन बुधवार को मनाई जा रही है। इसे आमलकी एकादशी तथा रंगभरी ग्यारस के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं इस एकादशी की पूजन विधि, मुहूर्त, कथा, मंत्र और महत्व के बारे में-
 
आमलकी एकादशी शुभ मुहूर्त-amalaki ekadashi date n muhurat 2024
 
फाल्गुन शुक्ल एकादशी तिथि का प्रारंभ- 19 मार्च 2024, मंगलवार को 03.51 पी एम से, 
एकादशी तिथि का समापन- 20 मार्च 2024, बुधवार को 05.52 पी एम पर होगा।
उदया तिथिनुसार एकादशी व्रत 20 मार्च, बुधवार को रखा जाएगा।
 
20 मार्च, बुधवार- दिन का चौघड़िया
लाभ- 05.33 ए एम से 07.04 ए एम
अमृत- 07.04 ए एम से 08.35 ए एम
शुभ- 10.05 ए एम से 11.36 ए एम
चर- 02.38 पी एम से 04.09 पी एम
लाभ- 04.09 पी एम से 05.39 पी एम
 
रात्रि का चौघड़िया
शुभ- 07.09 पी एम से 08.38 पी एम
अमृत- 08.38 पी एम से 10.07 पी एम
चर -10.07 पी एम से 11.36 पी एम
लाभ- 02.35 ए एम से 21 मार्च 04.04 ए एम तक।
 
शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त- 03.58 ए एम से 04.45 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 04.22 ए एम से 05.33 ए एम
अभिजित समय- आज कोई अभिजित मुहूर्त नहीं है
विजय मुहूर्त- 01.37 पी एम से 02.26 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05.37 पी एम से 06.01 पी एम
सायाह्न सन्ध्या 05.39 पी एम से 06.51 पी एम
अमृत काल- 07.05 ए एम से 08.50 ए एम
निशिता मुहूर्त- 11.12 पी एम से 12.00 पी एम
रवि योग- 05.33 ए एम से 02.08 पी एम तक।
 
आमलकी एकादशी पारण समय 2024
 
21 मार्च 2024, दिन गुरुवार पारण/ व्रत तोड़ने का समय- 05.33 ए एम से 07.58 ए एम तक।
पारण के दिन द्वादशी तिथि का समापन- 08.14 पी एम पर।
 
आमलकी एकादशी का महत्व- amalaki ekadashi importance
प्रतिवर्ष आने वाली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी कहते हैं। आमलकी यानी आंवला, इसे शास्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। पौराणिक जानकारी के अनुसार विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया, उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया।

आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया तथा उसके हर अंग में ईश्वर का स्थान बताया गया है। आमलकी एकादशी की महिमा के बारे में भगवान श्री विष्णु कहते हैं कि जो व्यक्ति स्वर्ग तथा मोक्ष की कामना रखते हैं, उनके लिए फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष के पुष्य नक्षत्र में आने वाली एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस दिन आंवला पूजन का विशेष महत्व है। आमलकी एकादशी व्रत के पूर्व दिन व्रतधारी को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
 
पूजा विधि- amalaki ekadashi Puja Vidhi
 
• आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें।
• तत्पश्चात 'मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपपातकदुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति कामनायै आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये' इस मंत्र को पढ़कर व्रत का संकल्प लें। 
• तपश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें।
• भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। 
• सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें।
• पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। 
• इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। 
• कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। 
• इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। 
• कलश पर श्रीखंड और चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।
• अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें। 
• रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। 
• द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवाएं, दान-दक्षिणा दें, साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। 
• तत्पश्चात पारण करके अन्न-जल ग्रहण करें।
 
मंत्र- amalaki ekadashi mantras
* ॐ हूं विष्णवे नम:।
* ॐ नारायणाय नम:।
* ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
* श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
* ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
* ॐ विष्णवे नम:।
 
आमलकी एकादशी की पौराणिक कथा-amalaki ekadashi katha
 
प्राचीन काल में चैतरथ नाम का चंद्रवंशी राजा राज्य करता था। वह अत्यंत विद्वान तथा धर्मी था। उस नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र व कंजूस नहीं था। सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और राज्य के सभी लोग एकादशी का व्रत किया करते थे। एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई। उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल-वृद्ध सबने हर्षपूर्वक व्रत किया। 
 
राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से धात्री (आंवले) का पूजन करने लगे और इस प्रकार स्तुति करने लगे- हे धात्री! तुम ब्रह्मस्वरूप हो, तुम ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न हुए हो और समस्त पापों का नाश करने वाले हो, तुमको नमस्कार है। अब तुम मेरा अर्घ्य स्वीकार करो। तुम श्री रामचंद्र जी द्वारा सम्मानित हो, मैं आपकी प्रार्थना करता हूं, अत: आप मेरे समस्त पापों का नाश करो। उस मंदिर में सब ने रात्रि को जागरण किया। 
 
रात के समय वहां एक बहेलिया आया, जो अत्यंत पापी और दुराचारी था। वह अपने कुटुंब का पालन जीव-हत्या करके किया करता था। भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल वह बहेलिया इस जागरण को देखने के लिए मंदिर के एक कोने में बैठ गया और विष्णु भगवान तथा एकादशी माहात्म्य की कथा सुनने लगा। इस प्रकार अन्य मनुष्यों की भांति उसने भी सारी रात जागकर बिता दी।
 
प्रात:काल होते ही सब लोग अपने घर चले गए तो बहेलिया भी अपने घर चला गया। घर जाकर उसने भोजन किया। कुछ समय बीतने के पश्चात उस बहेलिए की मृत्यु हो गई। मगर उस आमलकी एकादशी के व्रत तथा जागरण से उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ रखा गया। युवा होने पर वह चतुरंगिनी सेना के सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर 10 हजार ग्रामों का पालन करने लगा। वह तेज में सूर्य के समान, कांति में चंद्रमा के समान, वीरता में भगवान विष्णु के समान और क्षमा में पृथ्वी के समान था। वह अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी, कर्मवीर और विष्णु भक्त था। 
 
वह प्रजा का समान भाव से पालन करता था। दान देना उसका नित्य कर्तव्य था। एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए गया। दैवयोग से वह मार्ग भूल गया और दिशा ज्ञान न रहने के कारण उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद पहाड़ी म्लेच्छ वहां पर आ गए और राजा को अकेला देखकर 'मारो, मारो' शब्द करते हुए राजा की ओर दौड़े। म्लेच्छ कहने लगे कि इसी दुष्ट राजा ने हमारे माता, पिता, पुत्र, पौत्र आदि अनेक संबंधियों को मारा है तथा देश से निकाल दिया है। अत: इसको अवश्य मारना चाहिए। ऐसा कहकर वे म्लेच्छ उस राजा को मारने दौड़े और अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र उसके ऊपर फेंके। वे सब अस्त्र-शस्त्र राजा के शरीर पर गिरते ही नष्ट हो जाते और उनका वार पुष्प के समान प्रतीत होता।
 
अब उन म्लेच्छों के अस्त्र-शस्त्र उलटा उन्हीं पर प्रहार करने लगे जिससे वे मूर्छित होकर गिरने लगे। उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई। वह स्त्री अत्यंत सुंदर होते हुए भी उसकी भृकुटी टेढ़ी थी, उसकी आंखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी, जिससे वह दूसरे काल के समान प्रतीत होती थी। वह स्त्री म्लेच्छों को मारने दौड़ी और थोड़ी ही देर में उसने सब म्लेच्छों को काल के गाल में पहुंचा दिया। 
 
जब राजा सोकर उठा तो उसने म्लेच्छों को मरा हुआ देखकर कहा कि इन शत्रुओं को किसने मारा है? इस वन में मेरा कौन हितैषी रहता है? वह ऐसा विचार कर ही रहा था कि आकाशवाणी हुई- 'हे राजा! इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन तेरी सहायता कर सकता है।' इस आकाशवाणी को सुनकर राजा अपने राज्य में आ गया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा।
 
अत: इस एकादशी व्रत कथा की महिमा के अनुसार जो मनुष्य इस आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं, वे प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अंत में विष्णुलोक को जाते हैं। पुष्य नक्षत्र के दिन आने वाली यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायिनी है तथा इसका व्रत करने वालों के जन्म-जन्मांतर के सभी पाप नष्ट होते हैं। 
 
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