अगहन/मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। वर्ष 2020 में यह एकादशी 11 दिसंबर, शुक्रवार को मनाई जा रही है। इस व्रत को वैतरणी एकादशी भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था इसीलिए इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। वैतरणी एकादशी को व्रत-उपवास रखने से शीघ्र ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अगहन मास भगवान कृष्ण और विष्णु की भक्ति का मास है। इस दिन श्रीविष्णु के शरीर से माता एकादशी उत्पन्न हुई थी अत: इस दिन कथा श्रवण का विशेष महत्व माना गया है। हेमंत ऋतु में आने वाली इस एकादशी को उत्पत्तिका, उत्पन्ना और वैतरणी एकादशी कहा जाता है।
वैतरणी एकादशी/उत्पन्ना एकादशी के बारे में जब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा तो उन्होंने इस कथा को बताया-
वैतरणी एकादशी की इस कथा के अनुसार सतयुग में एक मुर नामक दैत्य था जिसने इन्द्र सहित सभी देवताओं को जीत लिया। भयभीत देवता भगवान शिव से मिले तो शिवजी ने देवताओं को श्रीहरि विष्णु के पास जाने को कहा।
क्षीरसागर के जल में शयन कर रहे श्रीहरि इन्द्र सहित सभी देवताओं की प्रार्थना पर उठे और मुर दैत्य को मारने चन्द्रावतीपुरी नगर गए। सुदर्शन चक्र से उन्होंने अनगिनत दैत्यों का वध किया। फिर वे बद्रिका आश्रम की सिंहावती नामक 12 योजन लंबी गुफा में सो गए। मुर ने उन्हें जैसे ही मारने का विचार किया, वैसे ही श्रीहरि विष्णु के शरीर से एक कन्या निकली और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया।
गने पर श्रीहरि को उस कन्या ने, जिसका नाम एकादशी था, बताया कि मुर को श्रीहरि के आशीर्वाद से उसने ही मारा है। खुश होकर श्रीहरि ने एकादशी को सभी तीर्थों में प्रधान होने का वरदान दिया। इस तरह श्रीविष्णु के शरीर से माता एकादशी के उत्पन्न होने की यह कथा पुराणों में वर्णित है।
इस एकादशी के दिन त्रिस्पृशा यानी कि जिसमें एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि भी हो, वह बड़ी शुभ मानी जाती है। इस दिन एकादशी का व्रत रखने से एक सौ एकादशी व्रत करने का फल मिलता है।
प्रस्तुति एवं संकलन- आरके.