मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा

WD Feature Desk
गुरुवार, 28 नवंबर 2024 (16:11 IST)
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Mokshada Ekadashi 2024 Katha: वर्ष 2024 में 11 दिसंबर, दिन बुधवार को मोक्षदा एकादशी मनाई जाएगी। मोक्षदा एकादशी को दूसरे नाम यानि गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार इस ग्यारस के दिन भगवान दामोदर का पूजन किया जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार यह एकादशी बहुत ही पुण्यफलदायिनी हैं, अत: इस एकादशी की कथा पढ़ने या सुनने मात्र से मनुष्य का यश विश्व में फैलता है। 
 
Highlights
आइए यहां जानते हैं मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा के बारे में... 
 
मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा के अनुसार गोकुल नामक एक नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था, वहां उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे तथा राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। 
 
एक रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। वह प्रात:काल विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और उन्हें अपना स्वप्न सुनाया। और कहा कि मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है तथा उन्होंने मुझसे कहा कि, हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं। यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ।

जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत ही बेचैन हूं। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूं? राजा ने आगे कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है।

अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सकें। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। 
 
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ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। वे आपकी समस्या का हल अवश्य ही करेंगे। यह सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया, तो मुनि ने राजा से कुशलता के समाचार लिए। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। 
 
ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले- हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसी पाप कर्म के कारण तुम्हारे पिता को नरक में जाना पड़ा। राजा ने कहा- ऋषिवर इसका कोई उपाय बताइए। 
 
मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य ही नरक से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहे वचनानुसार परिवारसहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया।

इस एकादशी के प्रभाव से राजन के पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे, हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर वे स्वर्ग चले गए। अत: मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की इस एकादशी का व्रत करने मात्र से समस्त पापों का नाश होता हैं। तथा इस कथा को पढ़ने या सुनने से ही वायपेय यज्ञ का फल प्राप्त हो ता है। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। यह एकादशी सभी कामनाओं को पूर्ण करने का सामर्थ्य रखनेवाली शक्ति है तथा अंत में मोक्ष देती है। 

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