मोक्षदा एकादशी पर पूजा कब और कैसे करें, जानिए महत्व और व्रत कथा

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मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाली पवित्र तिथि है। नाम से ही स्पष्ट है कि इस एकादशी का संबंध मोक्ष से है। मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती एक दिन ही आती है। इस दिन श्रीकृष्ण ने वीर अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। 
 
इस वर्ष मोक्षदा एकादशी 14 दिसंबर को है। मोक्षदा एकादशी व्रत के प्रभाव से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई जन्मों के पापों का नाश होता है और शुभ फल की प्रप्ति होती है। 
 
-प्रत्येक माह की 11वीं तिथि को एकादशी कहते हैं। 
 
-एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित दिन माना जाता है। 
 
एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी आती हैं, एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की।
 
एक वर्ष में कम से कम 24 एकादशी हो सकती हैं, लेकिन अधिक मास (अतिरिक्त महीने) के मामले में यह संख्या 26 भी हो सकती है।
 
मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। 
 
मोक्ष की प्रार्थना के लिए यह एकादशी मनाई जाती है। 
 
मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती एक दिन आती है। इस दिन भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था। 
 
भगवान कृष्ण की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और पूर्वजों को स्वर्ग तक पहुंचने में मदद मिलती है। 
 
मोक्षदा एकादशी की तुलना मणि चिंतामणि से की जाती है, जो सभी मनोकामनाएं पूरी करती है।
 
 
 
मोक्षदा एकादशी का मुहूर्त 
 
एकादशी तिथि प्रारंभ:  13 दिसंबर, रात्रि 9: 32 मिनट से 
एकदाशी तिथि समाप्त: 14 दिसंबर रात्रि 11:35 मिनट पर
व्रत का पारण:  15 दिसंबर प्रातः 07: 5 मिनट से प्रातः 09: 09 मिनट तक
एकादशी पारण मुहूर्त- 
 
मार्गशीर्ष शुक्ल एकदशी तिथि का प्रारंभ, दिन सोमवार 13 दिसंबर 2021 को रात्रि 9.32 मिनट से हो रहा है और मंगलवार, 14 दिसंबर 2021 को रात्रि 11.35 मिनट पर एकदाशी तिथि समाप्त होगी।  
 
व्रत पारण टाइम- बुधवार, 15 दिसंबर को प्रातः 07.5 मिनट से प्रातः 09.09 मिनट तक रहेगा। 
मोक्षदा एकादशी व्रत-पूजा विधि- mokshada ekadashi pooja vidhi 
 
- एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत होकर व्रत शुरू करने का संकल्प लें।
 
- तत्पश्चात घर के मंदिर की साफ-सफाई करें। 
 
- फिर पूरे घर में गंगा जल का छिड़क दें। 
 
- अब भगवान को गंगा जल से स्नान करवाकर वस्त्र अर्पित करें। 
 
- प्रतिमा को रोली अथवा सिंदूर का टीका लगाएं।
 
- तुलसी के पत्ते और पुष्प चढ़ाएं।
 
- पूजन के शुरुआत में श्री गणेश की आरती करें। 
 
- भगवान श्री विष्णु का विधि-विधान से पूजन करें।
 
- फिर एकादशी की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
 
- शुद्ध देशी घी का दीप प्रज्ज्वलित करें। 
 
- लक्ष्मी देवी के साथ श्रीहरि विष्णु जी की आरती करें। 
 
* भगवान को प्रसाद के रूप में फल और मेवे अर्पित करें। 
 
मोक्षदा एकादशी कथा- Mokshada ekadashi Katha 
 
गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि- हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं। यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। 
 
मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूं? राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सकें। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। 
 
ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे। यह सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से कुशलता के समाचार लिए। 
 
राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसी पाप कर्म के कारण तुम्हारे पिता को नरक में जाना पड़ा। तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। 
 
मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य ही नरक से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुंब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया।
 
इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है। यह व्रत चिंतामणी के समान सब कामनाएं पूर्ण करने वाला तथा मोक्ष देता है। 
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