श्रीकृष्ण के मुख से सुनें परमा/पुरुषोत्तमी एकादशी की पौराणिक व्रत कथा

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Purushottami Ekadashi Katha : इस वर्ष परमा, पुरुषोत्तमी एकादशी यानी श्रावण अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 12 अगस्त 2023, शनिवार के दिन मनाई जा रही है। यह एकादशी जनमानस में पद्मा एकादशी के नाम से भी जानी जाती हैं। वैसे तो हर साल में 24 एकादशियां आती हैं, लेकिन जब भी अधिक मास या मलमास आता है, तब एकादशी की 2 और संख्या बढ़कर 26 एकादशियां हो जाती है। 

यह एकादशी परमा, पुरुषोत्तमी या कमला एकादशी कहीं जाती है। इस दिन भगवान श्रीहरि नारायण का पूजन किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस एकादशी व्रत की कथा सुनाई थी, वो इस प्रकार है। 
 
आइए यहां जानते हैं इस कथा के बारे में- 
 
धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले- हे जनार्दन! अधिकमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
 
काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। ब्राह्मण बहुत धर्मात्मा था और उसकी पत्नी पतिव्रता स्त्री थी। यह परिवार बहुत सेवाभावी था। दोनों स्वयं भूखे रह जाते, परंतु अतिथियों की सेवा हृदय से करते थे। धनाभाव के कारण एक दिन ब्राह्मण ने अपनी पत्नी कहा- धनोपार्जन के लिए मुझे परदेस जाना चाहिए, क्योंकि इतने कम धनोपार्जन से परिवार चलाना अति कठिन काम है।
 
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा- मनुष्य जो कुछ पाता है, वह अपने भाग्य से ही पाता है। हमें पूर्व जन्म के कर्मानुसार उसके फलस्वरूप ही यह गरीबी मिली है अत: यहीं रहकर कर्म कीजिए, जो प्रभु की इच्छा होगी वही होगा।
 
पत्नी की बात ब्राह्मण को जंच गई और उसने परदेस जाने का विचार त्याग दिया। एक दिन संयोगवश कौण्डिल्य ऋषि उधर से गुजर रहे थे, जो ब्राह्मण के घर पधारे। ऋषि कौण्डिल्य को अपने घर पाकर दोनों अति प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषि की खूब आवभगत की।
 
उनका सेवाभाव देखकर ऋषि काफी खुश हुए और पति-पत्नी द्वारा गरीबी दूर करने का प्रश्न पूछने पर ऋषि ने उन्हें मलमास के कृष्ण पक्ष में आने वाली पुरुषोत्तमी एकादशी करने की प्रेरणा दी। उन्होंने बताया कि व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए।
 
ऋषि ने ब्राह्मण और सकी उपत्नी से कहा कि इस एकादशी का व्रत दोनों रखें। यह एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली होती है। धनाधिपति कुबेर ने भी इस एकादशी व्रत का पालन किया था, जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया।
 
ऋषि की बात सुनकर दोनों आनंदित हो उठे और समय आने पर सुमेधा और उनकी पत्नी ने विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत रखा, जिससे उनकी गरीबी दूर हो गई और पृथ्वी पर काफी वर्षों तक सुख भोगने के पश्चात वे पति-पत्नी श्री विष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गए।

अत: जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, भगवान श्रीहरि विष्णु निश्‍चित ही कल्याण करते हैं। यह एकादशी धन, वैभव तथा उत्तम गति देती है। ऐसी इस परमा/पुरुषोत्तमी एकादशी महिमा है। 

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