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Rama Ekadashi Katha 2025: राजा मुचुकुंद का धर्मपरायण शासन और एकादशी व्रत कथा

WD Feature Desk
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025 (09:00 IST)
Rama Ekadashi vrat katha in Hindi: रमा एकादशी का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। यह एकादशी भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी (जिनका एक नाम 'रमा' भी है) को समर्पित है, इसलिए इसे अत्यंत पुण्यदायिनी माना जाता है।ALSO READ: Diwali pushya nakshatra 2025: दिवाली के पहले पुष्य नक्षत्र कब है, 14 या 15 अक्टूबर 2025?
 
इस व्रत की कथा का वर्णन स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था, जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। यह कथा बताती है कि एकादशी व्रत में श्रद्धा और नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति को मृत्यु के बाद भी उत्तम गति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
 
राजा मुचुकुंद और चंद्रभागा की कथा:
 
प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम के एक धर्मात्मा और सत्यनिष्ठ राजा थे। उनकी मित्रता इंद्र, यम, कुबेर, वरुण और विभीषण जैसे देवताओं और महापुरुषों से थी। राजा मुचुकुंद स्वयं एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा से करते थे और अपने राज्य की प्रजा के लिए भी एकादशी का व्रत करना अनिवार्य किया हुआ था।
 
उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन से किया। जब पहली बार एकादशी का व्रत आया, तो चंद्रभागा के पति शोभन ने भी एकादशी का व्रत रखा। परंतु शोभन शारीरिक रूप से दुर्बल थे और वह एकादशी की कठोरता सहन नहीं कर पाए। व्रत की निर्जला प्रकृति के कारण अत्यधिक भूख और प्यास से व्याकुल होकर उनकी मृत्यु हो गई।ALSO READ: Diwali 2025 date: दिवाली पर बन रहे हैं अति दुर्लभ योग मुहूर्त, लक्ष्मी पूजा का मिलेगा दोगुना फल
 
पति की मृत्यु से चंद्रभागा बहुत दुखी हुईं। राजा मुचुकुंद ने भी शोक किया, लेकिन उन्होंने अपनी पुत्री को सांत्वना दी कि शोभन को एकादशी व्रत के पुण्य से सद्गति प्राप्त हुई होगी। इस घटना के बाद, शोभन ने एकादशी व्रत के प्रभाव से मंदराचल पर्वत पर देवताओं की नगरी प्राप्त की, जहां वह अप्सराओं से घिरे वैभवशाली जीवन में रहने लगे।
 
एक बार, राजा मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पर पहुंचे, जहां उन्होंने अपने मृत दामाद शोभन को दिव्य शरीर में जीवित देखा। यह देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ। शोभन ने उन्हें बताया कि यह सब एकादशी व्रत के पुण्य का फल है, लेकिन उनकी यह नगरी अस्थिर है। राजा ने वापस आकर यह बात चंद्रभागा को बताई। 
 
चंद्रभागा अपने पति के पास जाने के लिए उत्सुक हो उठीं। वह ऋषि वामदेव के आश्रम गईं, जिन्होंने चंद्रभागा की व्रत निष्ठा को देखकर उनका अभिषेक किया। जब चंद्रभागा मंदराचल पर्वत पर अपने पति के पास पहुंची, तो उन्होंने अपने पति से कहा, 'हे प्राणनाथ! मैंने जब से होश संभाला है, आठ वर्ष की आयु से ही श्रद्धापूर्वक रमा एकादशी का व्रत किया है। आप मेरे उन सभी पुण्यों को ग्रहण कीजिए।'

चंद्रभागा के पुण्यों को प्राप्त करते ही शोभन की अस्थिर नगरी तुरंत स्थिर और अटूट हो गई। इस प्रकार, रमा एकादशी के व्रत के प्रभाव से शोभन को उनका दिव्य जीवन और चंद्रभागा को उनका सौभाग्य वापस मिला।
 
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