ताकि माटी साँस ले सके...

माटी को बचाने की मुहिम

Webdunia
ND
इंदौर। अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सरंक्षण संगठन ग्रीनपीस ने मिट्टी की उर्वरता को बचाने की मुहिम शुरू की है। 'जीवि त माट ी' नाम से जारी अभियान के तहत खेती में रासायनिक कीटनाशक और उर्वरकों के प्रयोग दुष्परिणामों के बारे में किसानों को बताया जाएगा।

इंदौर आए ग्रीनपीस कार्यकर्ताओं ने बताया कि संगठन इस मुद्दे पर देवास की बागली तहसील में 8 अक्टूबर को जनसुनवाई करेगा। इस मुहिम में स्थानीय एनजीओ समाज प्रगति सहयोग भी भागीदार है। सुनवाई से पहले रासायनिक खाद के प्रयोग से मिट्टी पर पड़ रहे दुष्प्रभावों के बारे में क्षेत्रवार सर्वेक्षण किया जा रहा है। इस प्राप्त तथ्यों को जनसुनवाई में रखा जाएगा।

ग्रीनपीस के कपिल मिश्रा के अनुसार रसायनों व कीटनाशकों के प्रयोग से देशभर के खेतों की मिट्टी बेजान हो गई है। मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव और लाभदायक जीवाणु खत्म हो रहे हैं। इसका सीधा असर खेती के उत्पादन नजर आ रहा है। केंद्र सरकार रासायनिक खाद के लिए सालाना 50 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी दे रही है। जो खेती में रसायनों के प्रयोग को प्रेरित करते हुए मिट्टी का स्वास्थ्य खराब कर रही है। सरकार को जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए।

PR
कपिल के अनुसार, 'देश की 70 प्रतिश‍त मिट्टी कमजोर हो गई है। इससे उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। सरकारी नीतियों पर विशेषज्ञों की राय है कि इसमें माटी की सेहत को पूरी तरह से उपेक्षित किया गया है। नीतियों का क्रियान्वयन इतना पक्षपातपूर्ण है कि खास किस्म के किसानों को ही इनका फायदा मिल रहा है। वर्ष 2009 के बजट भाषण के दौरान केन्द्रीय ‍वित्त मंत्री ने केमिकल खाद के बढ़ते उपयोग के संदर्भ में गिरते कृषि उत्पादन पर चिंता जाहिर की थी। यह ‍विडंबना है कि सरकार की सब्सिडी नीति के कारण ही मिट्टी और जलवायु पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

किसानों की मिट्टी को लेकर समझ क्या है इसे जानने की भी ग्रीनपीस द्वारा कोशिश की गई। जिससे यह स्पष्ट हुआ कि वास्तविक किसानों को इस बात का अहसास तक नहीं है कि सरकार की उन्हें लेकर नीतियाँ क्या है और उनकी मिट्टी रासायनिक खाद के प्रयोग से दिन-प्रतिदिन बीमार हो रही है।

केमिकल फर्टिलाइजर कभी भी किसानों की पसंद नहीं थी लेकिन केन्द्र सरकार के बढ़ावा देने से इसका प्रयोग बढ़ा है। कपिल ने बताया कि आगामी 15 अक्टूबर को भोपाल में इसकी विस्तृत रिपोर्ट जारी की जाएगी। ग्रीनपीस का यह अभियान निश्चित तौर पर प्रशंसनीय है। हम जल और पेड़ बचाने के लिए जागरूक होते जा रहे हैं, समय हमें सचेत कर रहा है कि अपनी माटी की घुटती साँस पर भी एक गहरी नजर डालें ताकि देश की अर्थव्यवस्था का दारोमदार वह अपने कंधों पर उठा सकें। देश की माटी साँस ले सके उसके लिए मिलजुल कर प्रयास करना जरूरी है।

Show comments

गर्भवती महिलाओं को क्यों नहीं खाना चाहिए बैंगन? जानिए क्या कहता है आयुर्वेद

हल्दी वाला दूध या इसका पानी, क्या पीना है ज्यादा फायदेमंद?

ज़रा में फूल जाती है सांस? डाइट में शामिल ये 5 हेल्दी फूड

गर्मियों में तरबूज या खरबूजा क्या खाना है ज्यादा फायदेमंद?

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

मेडिटेशन करते समय भटकता है ध्यान? इन 9 टिप्स की मदद से करें फोकस

इन 5 Exercise Myths को जॉन अब्राहम भी मानते हैं गलत

क्या आपका बच्चा भी हकलाता है? तो ट्राई करें ये 7 टिप्स

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

Metamorphosis: फ्रांत्स काफ़्का पूरा नाम है, लेकिन मुझे काफ़्का ही पूरा लगता है.