पर्यावरण, तापमान के कारण अकाल मृत्यु की ओर बढ़ती धरती, जानिए 4 खतरे

अनिरुद्ध जोशी
कोई भी पर्यावरण के बारे में कुछ भी पढ़ना और जानना नहीं चाहता है, क्योंकि यह उसके इंटरेस्ट की बात नहीं है, क्योंकि वह यह नहीं जानता है कि मेरे बच्चे मुझसे भी खतरनाक स्थिति में जीएंगे। अपनी को कट गई लेकिन कोई भी अपने बच्चों के बारे में नहीं सोचता है। सभी चाहते हैं पानी, लेकिन पानी बचाना कोई नहीं चाहता और पानी के लिए कोई किसी को जाग्रत नहीं करना चाहता। खैर, यहां ऐसी बाते बताई जाएगी जो संभवत: आप अभी नहीं जानते होंगे।
 
 
एक व्यक्ति की प्राकृतिक उम्र होती है 120 वर्ष, लेकिन उचित व उत्तम भोजन, स्वच्छ व निर्मल जल और प्रदूषण मुक्त वायु नहीं मिलने के कारण वह 70 के आसपास दुनिया को छोड़ रहा है। इस पर भी यदि उसकी जीवन शैली गलत है तो वह 50 से 60 के बीच मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। परंतु, एक और स्थिति है वह यह है कि देश में सिर्फ एक राज्य में ही सालाना अधिकतम 10 हजार लोग दुर्घाटना में मारे जा रहे हैं, अर्थात अकाल मृत्यु।
 
 
हमारी धरती और उसके पर्यावरण की हालत भी यही है अर्थात अकाल मृत्यु की ओर धरती के कदम बढ़ने लगे हैं। कैसे? आओ जानते हैं कि कैसे....
 
 
1.ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ता समुद्री जल स्तर और बढ़ता तापमान
‍वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारी धरती अपनी धुरी से 1 डिग्री तक खिसक गई है और ग्लोबल वार्मिंग शुरू हो चुकी है। अब जल्द ही इसके प्रति सामूहिक प्रयास नहीं किए तो 'महाविनाश' के लिए तैयार रहें। लगातार मौसम बदलता जा रहा है। तापमान बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन हो रहा है।
 
 
हिमालयी ग्लेशियरों को लेकर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने एक अध्ययन कराया था। इस अध्ययन ने साफतौर पर चेतावनी दी थी कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय क्षेत्र की 15,000 हिमनद (ग्लेशियर) और 9,000 हिमताल (ग्लेशियर लेक) में आधे वर्ष 2050 और अधिकतर वर्ष 2100 तक समाप्त हो जाएंगे। इस बात की पुष्टि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने भी की है।
 
 
यह क्यों हो रहा है? वैज्ञानिक कहते हैं कि वायु प्रदूषण (ग्रीन हाउस गैसों) के कारण यह सब हो रहा है। प्रदूषण कई तरह का होता है। हमारे वाहनों से निकलने वाला धुंआ, कोयले के प्लांट से निकलने वाला धुआं, कारखनों से निकलने वाला धुआं और अन्य कई कारणों से धरती के वातावरण में कार्बन डाई-आकसाइड की मात्रा बढ़ती जा रही है जिसके चलते धरती का तापमान लगभग एक डिग्री से ज्यादा बढ़ गया है और ऑक्सिजन की मात्रा कम होती जा रही है। अब तो गर्मी में एशिया के अधिक शहरों का अधिकतम तापमान 50 डीग्री रहने लगा है।
 
 
पहले 100 या 200 साल के बीच में अगर तापमान में एक सेल्सियस की बढ़ोतरी हो जाती थी तो उसे ग्लोबल वॉर्मिंग की श्रेणी में रखा जाता था। लेकिन पिछले 100 साल में अब तक 0.4 सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है जो बहुत खतरनाक है। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग एक वृहत्तर विषय है लेकिन यहां इतना समझने से ही समझ में आ जाता है कि मुख्‍य कारण क्या है।
 
 
प्राकृतिक तौर पर पृथ्वी की जलवायु को एक डिग्री ठंडा या गर्म होने के लिए हजारों साल लग सकते हैं। हिम-युग चक्र में पृथ्वी की जलावायु में जो बदलाव होते हैं वो ज्वालामुखी गतिविधि के कारण होती है जैसे वन जीवन में बदलाव, सूर्य के रेडियेशन में बदलाव तथा और प्राकृतिक परिवर्तन, ये सब कुदरत का जलवायु चक्र है, लेकिन पिछले सालों में मानव की गतिविधियां अधिक बढ़ने के कारण यह परिवर्तन देखने को मिला है जो कि मानव अस्तित्व के लिए खतरनाक है।
 
 
इस ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक ओर जहां पीने के पानी का संकट गहराएगा वहीं मौसम में तेजी से बदलावा होगा और तापमान बढ़ने से ठंड के दिनों में भी गर्मी लेगेगी। ऐसे में यह सोचा जा सकता है कि यह कितना खतरनाक होगा।
 
 
2.खनन-उत्खनन-खुदाई से खोखली होती धरती
खनन, उत्खनन या खुदाई का अर्थ है धरती के शरीर पर फावड़ा चलाना, उसके शरीर को छलनी करना। खनन वैध हो या अवैश वह खनन तो खनन ही है। खनन पांच जगहों पर हो रहा है- 1.नदी के पास खनन, 2.पहाड़ की कटाई, 3.खनीज, धतु, हीरा क्षेत्रों में खनन, 4.समुद्री इलाकों में खनन और 5.पानी के लिए धरती के हर क्षेत्र में किए जा रहा बोरिंग।
 
 
रेत, गिट्टी, खनीज पदार्थों, हीरा, कोयला, तेल, पेट्रोल, धातु और पानी के लिए संपूर्ण धरती को खोद दिया गया है। कहीं हजार फीट तो कहीं पांच हजार फीट नीचे से पानी निकाला जा रहा है। मनुष्‍य उपरी जल को छोड़कर धरती के भीतरी जल को तेजी से पीकर जल स्तर को कम करता जा रहा है जिसके चलते भूमि तेजी से बहुत नीचे तक खोखली हो रही है। खोखली भूमि भविष्य में जब तेजी से दरकने लगेगी तब मानव के लिए इस स्थिति को रोकना मुश्‍किल हो जाएगा। वर्तमान में धीरे धीरे समुद्र के तटवर्ती शहर जमिदोष होते जा रहे हैं। समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है। यह बात सिर्फ समुद्र के तटवर्ती शहरों पर लागू नहीं होती। दरअसल, दुनिया के सैकड़ों शहरों में भूमि का जल स्तर एक हजार फीट से नीचे चला गया है। अप गणना नहीं कर सकते हैं कि कितने बोरिंग लगे हुए हैं जिनमें से पानी निकाला जा रहा है और लाखों सूख गए हैं। भविष्य में हमें अपने शहर के भूमि में धंसने के लिए तैयार रहना चाहिए।
 
 
3.ओजोन परत धरती के लिए सबसे बड़ा खतरा
वायु प्रदूषण से हर वर्ष 20 लाख लोग मारे जाते हैं। यह प्रदूषण जल्द ही नहीं रोका गया तो प्रतिवर्ष इस कारण 4 लाख 70 हजार लोगों की मौत होने का आंकड़ा बढ़ता जाएगा। 'एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स' के शोध से पता चला कि मानवीय कारणों से फैल रहे प्रदूषण के कारण ओजोन परत का छिद्र बढ़ता जा रहा है।
 
 
इस प्रदूषण के कारण ही कैंसर जैसे घातक रोग बढ़ते जा रहे हैं। इसके अलावा अनजान रोगों से लोगों की मृत्यु की आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं। मानवीय कारणों से 'फाइन पार्टिकुलेट मैटर' में भी वृद्धि होती है, जिससे सालाना करीब 21 लाख लोगों की मौत हो जाती है। शोधकर्ताओं ने वर्ष 1850 में औद्योगीकरण शुरू होने से वर्ष 2000 तक ओजोन पर भी ध्यान केंद्रित किया।
 
 
लाखों वर्ष की प्रक्रिया के बाद ओजोन परत का निर्माण हुआ जिसने पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के साथ मिलकर पृथ्वी पर आने वाले हानिकारक सौर विकरण को रोककर इसको जीवन उत्पत्ति और प्राणियों के रहने लायक वातावरण बनाया। लेकिन आधुनिक मानव ने मात्र 200 साल की अपनी गतिविधि से इस ओजोन परत को इस कदर क्षतिग्रस्त कर दिया है।
 
 
ओजोन परत पृथ्वी और पर्यावरण के लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करती है तथा इसे सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी (अल्ट्रा वायलेट) किरणों से बचाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार धरती शीर्ष से पतली होती जा रही है, क्योंकि इसके ओजोन लेयर में छेद नजर आने लगे हैं। सभी वैज्ञानिकों का कहना है कि यह विडंबना ही है कि जीवन का समापन co2 की कमी से होगा।
 
 
ओजोन परत सूरज की गर्मी से रक्षा करती है लेकिन अब वैज्ञानिकों ने 4 दिनों पहले सूरज की सतह पर एक सनस्पॉट देखा। वो सनस्पॉट धरती की सतह से 25 गुना बड़ा था। जब भी सनस्पॉट बनता है सूरज से उठती है चुंबकीय आंधियां, जो धरती की ओर बढ़ती हैं और इंसानी सभ्यता को ठप करने की ताकत रखती हैं। वैज्ञानिकों को डर है कि आने वाले दिनों में सूरज से उठने वाले कई आंधियां धरती पर पहुंचेंगी।
 
 
महाभारत के वनपर्व में उल्लेख मिलता है कि कलियुग के अंत में सूर्य का तेज इतना बढ़ जाएगा कि सातों समुद्र और नदियां सूख जाएंगी। संवर्तक नाम की अग्रि धरती को पाताल तक भस्म कर देगी। वर्षा पूरी तरह बंद हो जाएगी। सब कुछ जल जाएगा, इसके बाद फिर बारह वर्षों तक लगातार बारिश होगी जिससे सारी धरती जलमग्र हो जाएगी।
 
 
4.कटते वृक्ष और पहाड़ से घटता जीवन
वृक्ष धरती की आत्मा की तरह है। इन्हें ईश्‍वर का प्रतिनिधि कहा गया है। ब्राजिल, अफ्रिका, भारत, चीन, रशिया और अमेरिका के वनों को तेजी से काटा जा रहा है। खासकर वर्षावन के कट जाने से धरती का वातावरण बदल रहा है। वायुमंडल से कार्बनडाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, सीएफसी जैसी जहरीली गैसों को सोखकर धरती पर रह रहे असंख्य जीवधारियों को प्राणवायु ‘आक्सीजन’ देने वाले जंगल आज खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
 
 
वर्तमान समय में किसी वयस्क व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए जितनी ऑक्सीजन की जरूरत है, वह उसे 16 बड़े-बड़े पेड़ों से मिल सकती है। लेकिन पेड़ों की अंधाधुँध कटाई से उनकी संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है।  भारत में पेड़ों की उपलब्धता की स्थिति काफी चिंताजनक है। उनके अनुसार ‘भारत में प्रति 36 लोगों के लिए एक पेड़ है। कोलकाता जैसे महानगर में 15 हजार लोगों के लिए एक पेड़ है। वर्ष 1988 में पटना शहर में जहाँ प्रति ढाई हजार लोगों के लिए एक पेड़ था, वहीं अब चार हजार व्यक्तियों पर एक पेड़ है। हालात दिन पर दिन गंभीर हो रहे हैं। इसी स्थिति से आप दुनिया का अनुमान लगा सकते हैं।
 
 
जंगल का सिर्फ यही रोल नहीं है। जंगल है तो पशु-पक्षी हैं, जीव जंतु और अन्य प्रजातियां हैं। अब भारत और अफ्रिका के जंगलों में शेर, हिरण, नीलगाय, हाथी, गेंडा आदि सैंकड़ों जानवरों की संख्या कम हो गई है। कई प्रजातियां तो लुप्त हो चली है और अभी कई लुप्त होने की कतार में हैं। वृक्षों के कटने से पक्षियों के बसेरे उजड़ गए तो फिर पक्षियों की सुकूनदायक चहचहाहट भी अब शहर से गायब हो गई है। नदियों की घाटी के जंगलों की लगातार कटाई से कई दुर्लभ वनस्पतियां अब दुर्लभ भी नहीं रहीं।
 
 
इसके अलावा नदी‍ किनारे के और पहाड़ों के वृक्ष कट गए हैं। भारत के बहुत से पहाड़ खतरे में हैं। विंध्याचल की पर्वत श्रेणियों का अस्तित्व अब खतरे में हैं। बहुत से शहर जहां पर पर्वत, पहाड़ी या टेकरी हुआ करते थे अब वहां खनन कंपनियों ने सपाट मैदान कर दिए है। पर्वतों के हटने से मौसम बदलने लगा है। गर्म, आवारा और दक्षिणावर्ती हवाएं अब ज्यादा परेशान करती है। हवाओं का रुख भी अब समझ में नहीं आता कि कब किधर चलकर कहर ढहाएगा। यही कारण है कि बादल नहीं रहे संगठित तो बारिश भी अब बिखर गई है।
 
 
यही चलता रहा तो भविष्य में रहेगा सिर्फ रेगिस्तान और समुद्र। भविष्य में धरती पर दो ही तत्वों का साम्राज्य रहेगा- रेगिस्तान और समुद्र। समुद्र में जीव-जंतु होंगे और रेगिस्तान में सिर्फ रेत। जहां तक सवाल बर्फ का है तो यह पीघलकर समुद्र में समा जाएगी। सहारा और थार रेगिस्तान की लाखों वर्ग मील की भूमि पर पर्यावरणवादियों ने बहुत वर्ष शोध करने के बाद पाया कि आखिर क्यों धरती के इतने बड़े भू-भाग पर रेगिस्तान निर्मित हो गए। उनके अध्ययन से पता चला कि यह क्षेत्र कभी हराभरा था, लेकिन लोगों ने इसे उजाड़ दिया। प्रकृति ने इसका बदला लिया, उसने तेज हवा, धूल, सूर्य की सीधी धूप और अत्यधिक उमस के माध्यम से उपजाऊ भूमि को रेत में बदल दिया और धरती के गर्भ से पानी को सूखा दिया।
 

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