पर्यावरण संवाद सप्ताह : इंदौर में जैव प्रजातियों का लुप्त होना बड़ा खतरा

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विश्व पर्यावरण दिवस 2020 पर जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट द्वारा ऑनलाइन आयोजित पर्यावरण संवाद सप्ताह के पांचवे दिन वनस्पति विशेषज्ञ जयश्री सिक्का और जैव विवधता संरक्षक देव वासुदेवन ने अपने विचार रखे।
 
 इंदौर क्षेत्र की जैव विविधता को लेकर देव कुमार वासुदेवन ने कहा कि हम इंसान  पेड़-पौधे, पशु और पक्षी सभी आपस में जुड़े हुए हैं, सह अस्तित्व ही इसकी मूल भावना है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण जंगली जानवरों और मानव में टकराहट की स्थिति बन रही हैं। 
 
जब कोई तेंदुआ रिहायशी इलाके में आता है और मारा जाता है तो हमें सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ? हमारा शहर वन्य जीवों और वनों के मामले में बेहतर रहा लेकिन अब हर वन्य जीव की संख्या में कमी आई है चाहे वह गीदड़, लोमड़ी, लक्कड़बग्गा, नेवला, जंगली बिल्ला, सिवेट कैट, नीलगाय, चैसिंघा, जंगली खरगोश हों या बाघ। 
 
यह सब जंगलों के घटने से हो रहा है। आज एक वायरस से पूरी दुनिया परेशान है लेकिन यह भी सच है कि कई वायरस जंगलों के कटने के कारण ही जानवरों से इंसान में आए हैं। इंदौर में अब भी जहरीले सांपों की चारों प्रजाति कोबरा, रसल वाइपर, कॉमन क्रेट और सॉस्केलड वाइपर मिलती हैं लेकिन ये भी खतरे में हैं। सैंड बोआ या दो मुंह वाले सांप की तो तस्करी होती है। 
 
'द नेचर वालंटियर्स' के अनुसार इंदौर जिले में 233 प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं और प्रवासी पक्षी इस संख्या से अलग हैं। रासायनिक खेती, अवैध शिकार और जंगलो के कटने का दुष्प्रभाव यह हो रहा है कि कई पक्षियों की प्रजातियां अब लुप्त होने की कगार पर हैं। 
 
जलक्षेत्रों के कछुओं और मछलियों की संख्या भी कम हो रही है। मानवजाति हर जीव के क्षेत्र पर अतिक्रमण जारी रखे हुए है जिससे जैवविविधता घट रही है। पूरे विश्व में जंगल में जो स्तनधारी हैं वे सारे स्तनधारी जानवरों के महज 4 प्रतिशत बायोमास बचे हैं। 
 
मानव 36 प्रतिशत है और हमारे पालतू जानवर जैसे गाय, भैंस, बकरी, भेड़ 60 प्रतिशत हैं।
 
मुझे खुशी है कि अपने इंदौर में कई लोग सही तरीके से गाय, भैंस को रख रहे हैं। इनमें अपनी जनक पलटा दीदी, अनुराग एवं अर्चना शुक्ला, निक्की सुरेका के नाम और काम से हम सब परिचित हैं। ऐसी कोशिशों से ही आगे का रास्ता दिखेगा। जैवविविधता जीवित रहे इसकी जिम्मेदारी मानव पर है क्योंकि उसे सबसे समझदार प्राणी होने का गौरव हासिल है लेकिन दिख तो यही रहा है कि मानव अपने हाथों अपना भविष्य नष्ट कर रहा है।  
 
संवाद कार्यक्रम की दूसरी वक्ता वनस्पति शास्त्री डॉक्टर जयश्री सिक्का ने कहा कि विश्व की कुल जैव विविधता का  22% पौधों के रूप में है। इसका 8.1% हिस्सा भारत में है। भारत की पादप विविधता लगभग 45000 प्रजातियों से है। जैव विविधता का महत्व इस प्रकार समझा जा सकता है कि ईको सिस्टम की स्थिरता और उत्पादकता इसी पर निर्भर करती है। जिस देश में जितनी अधिक जैव विविधता है वह उतना ही अधिक समृद्ध होता है। 
 
उस देश के ईको सिस्टम्स उतने ही स्वस्थ होते हैं। प्रदेश की बायो डायवर्सिटी को देखें तो यहां पेड़ों की लगभग 216 प्रजातियां हैं। वन विभाग के आकलन के अनुसार इसमें से 40 के आसपास प्रजातियां संकट में हैं या विलुप्ति की कगार पर हैं। अंजन, श्योनक, पाडर, चारोली, खिरनी, पलाश, इमली, अर्जुन, शिरीष, जंगली खजूर, हरफर रेवड़ी, करौंदा, केवड़ा, शीशम जैसी अनेक प्रजातियां पिछले कुछ दशकों में हमारे आसपास दिखाई देना कम हो गई हैं। 
 
कई शाकीय वह औषधीय महत्व की प्रजातियां भी धीरे धीरे हमसे दूर हो चुकी हैं। भृंगराज, ब्राह्मी, मचमचिया , जंगली प्याज, मकोय,नाग दामिनी, छोटा चिरायता आदि लगभग 40 से अधिक प्रजातियां अब आसानी से नहीं मिलती। यहां तक कि पूरे क्षेत्र में आसानी से पाई जाने वाली मेंहदी जैसी झाड़ियां भी अब कम दिखाई देती हैं। 
 
जैव विविधता में ह्रास के प्रमुख कारणों में पौधों के प्राकृतिक आवास का विनाश, शहरीकरण, बड़ी परियोजनाएं, उत्खनन, अनियोजित विकास आदि हैं। जैव मंडल में प्रत्येक प्रजाति का एक विशिष्ट स्थान और महत्व है। जैव विविधता के संरक्षण के लिए उपभोक्तावादी सोच और विकास की परिभाषा बदलनी होगी। एक समग्र विकास मॉडल अपनाना होगा जिसमें हर प्रजाति के लिए स्थान व सम्मान हो । 
 
सस्टेनेबिलिटी पर आधारित मॉडल नहीं अपनाए गए तो हम प्रकृति का संतुलन बिगाड़ देंगे। अकेले अमेरिका हर साल जंगलों से लगभग 450 मिलियन डॉलर मूल्य की औषधियां प्राप्त करता है। पौधों की लगभग 25000 प्रजातियां हमारी पारंपरिक औषधियां बनाने में उपयोग होती हैं तथा अकेले छत्तीसगढ़ में धान के लगभग 45000  प्रकार पाए जाते हैं। ये सब हमारे लिए अमूल्य जीन-पूल बनाते हैं। 
 
इसी विविधता से हमारा अस्तित्व भी है। हमें इसे हर कीमत पर बचाना होगा। इनके प्राकृतिक आवास का संरक्षण, टिशु-कल्चर, बॉटनिकल गार्डन, जीन-बैंक, बीज-बैंक आदि तकनीकों से ही हम अब विविधता बचा सकते हैं। सेंटर की डायरेक्टर डॉक्टर जनक पलटा ने कहा कि लोगों में जैव विविधता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुद्दे उठा कर और हमारी युवा पीढ़ी में इसके प्रति जरूरी सोच एवं समझ विकसित कर ही हम इसका संरक्षण कर पाएंगे जो अब दुनिया की बड़ी जरुरत है।

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