मैं हूँ जिंदा पेड़

गायत्री शर्मा
Praveen BarnaleND
मैं हूँ एक जिंदा पेड़
जिंदा हूँ आती-जाती
साँसों के आरोह-अवरोह के कारण
कृपा है उस ऊर्जा-पुंज की
जो मेरी तरह अब
बूढ़ा हो चला है
क्या दोष दूँ मैं उसे



कभी सुकून देता था
उसका आसमान पर छाना
लेकिन अब उसकी गर्मी में
मैं झुलस-झुलस जाता हूँ
क्या करूँ उससे शिकायत
जिसको मैं खुद सा
लाचार खड़ा पाता हूँ

जो बच्चे खेले थे मेरी गोद में
और झूलते थे झूला मेरी बाँहों में
आज वो आरी से मेरा
नामो-निशान ही मिटा जाते हैं
विकास की राह पर हर बार
हरे-भरे पेड़ ही बलि चढ़ाए जाते हैं
विकास की राह पर ....

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