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5G In India: इंटरनेट की स्‍पीड तो बढ़ेगी, इस ‘रफ्तार’ से क्‍या कोई खतरा भी है, पिछले दिनों क्‍यों उठा था 5G को लेकर दुनिया में विवाद?

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नवीन रांगियाल

इन दिनों भारत में 5जी नेटवर्क तकनीक की चर्चा हो रही है। वहज है, भारत सरकार के केन्‍द्रीय कैबिनेट से इसे मंजूरी मिल चुकी है और 26 जुलाई को 5 स्‍पेक्‍ट्रम की नीलामी होगी। इसके बाद भारत में 5जी स्‍पीड के साथ इंटरनेट चलेगा। इस स्‍पीड के आने से नेटवर्क कंजेशन और बफरिंग जैसी समस्‍या खत्‍म हो जाएगी। यानी भारत में इंटरनेट की स्‍पीड 10 गुना हो जाएगी। देश के 13 शहरों में सबसे पहले इस नेटवर्क की सौगात मिलेगी। हालांकि पिछले दिनों दुनिया में इसे लेकर विवाद भी रहा है। विमान सेवाएं देने वाली कंपनियों का दावा था कि इससे विमान की उड़ान को खतरा हो सकता है।

आइए जानते हैं, आखि‍र होता क्‍या है 5जी और यह कैसे काम करता है और पूर्व में टेलिकॉम और विमान कंपनियों के बीच इसे लेकर क्‍या विवाद रहा है।

अभी हम इंटरनेट स्‍पीड के लिए 4जी तकनीक का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। इसके पहले 3जी था। और अब हम इंटरनेट सेवाओं को और ज्‍यादा ताकतवर या यूं कहें कि उसे रफ्तार देने के लि‍ए 5जी की ओर बढ़ रहे हैं। जाहिर है, आज दुनिया इंटरनेट पर ही चल रही है। ऐसे में इंटरनेट सेवाओं, तकनीक और इसकी रफ्तार को लेकर समय समय पर अपग्रेडेशन होते रहेंगे। भारत के कई शहरों में अब 5जी तकनीक का इस्‍तेमाल होगा। इसके बाद इंटरनेट की स्‍पीड कई गुना बढ़ जाएगी।
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कैसे 5G तकनीक से होगा फायदा?
5G नेटवर्क पर 4G के मुकाबले 100 गुना ज्यादा इंटरनेट स्पीड मिलेगी। सिर्फ इंटरनेट ही नहीं कॉल और नेटवर्क कनेक्टिविटी भी बढ जाएगी। फिलहाल 2G या 3G नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे यूजर्स को कॉल ड्रॉप और कनेक्टिविटी से जुड़ी कई तरह की समस्‍याएं आती हैं। जबकि 4G नेटवर्क का इस्‍तेताल करने वाले यूजर्स को अच्‍छी क्वालिटी मिलती है। ऐसे में 5G आने के बाद यूजर्स को बेहतर कॉल और कनेक्टिविटी मिलेगी।
4G नेटवर्क पर यूजर्स को जहां 100Mbps की स्पीड मिलती है। वहीं 5G नेटवर्क पर 10Gbps तक की स्पीड मिलेगी। हालांकि, 10Gbps की स्पीड बहुत ज्‍यादा होती है। इसका मतलब होता है कि इस स्पीड पर कुछ ही सेकंड में एक पूरी फिल्‍म डाउनलोड हो सकती है।
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कैसे काम करता है 5G?
दरअसल 5जी में सी बैंड का रेंज 3.7 से 3.98GHz होता है और ये अल्टीमीटर 4.2 से 4.4GHZ की रेंज में काम करते हैं। ऐसे में 5जी के बैंड की फ्रीक्वेंसी और अल्टीमीटर रेडियो की फ्रीक्वेंसी काफी करीब हो रही है। जिससे अच्‍छी स्‍पीड मिलती है।

भारत में इन शहरों को 5G की सौगात
5जी शुरू होने के बाद भारत में सबसे जिन शहरों को इसकी सौगात अहमदाबाद, गांधीनगर, पुणे, मुंबई, बेंगलुरू, चंडीगढ, गुरुग्राम, हैदराबाद,  जामनगर, कोलकाता, चैन्‍नई, लखनऊ और दिल्‍ली कों मिलेगी।
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क्‍या था विवाद: विमान कंपनियों का डर’?
दूसरी तरफ अमेरिकी उड्डयन नियामक फैडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (एफएए) ने पिछले दिनों कहा था कि 5जी नेटवर्क की वजह से विमान के रेडियो अल्टीमीटर इंजन और ब्रेक सिस्टम में बाधा उत्पन्न हो सकती है। जिस का सीधा असर विमान के लैंड करने पर होगा। रनवे पर विमान को लैंडिंग में प्रॉब्लम आ सकती है। यहां तक कि लैंडिंग और टेक-ऑफ के वक्‍त पायलट को गलत सूचनाएं मिल सकती हैं। इसके चलते कई फ्लाइट ने अमेरिकी रूट से गुजरने से मना कर दिया था।

कैसे है विमान को खतरा’?
एटीएंडटी और वेरिजोन कंपनियां अपने 5जी वायरलेस सर्विस के लिए अल्टीमीटर में इस्तेमाल होने वाले रेडियो स्पेक्ट्रम के काफी करीब वाले स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करती हैं। बता दें कि अल्टीमीटर की मदद से विमान और धरती के बीच की दूरी मापी जाती है। ऐसे में विमान और धरती की सटीक ऊंचाई मापने में दिक्कत हो सकती है।

क्‍या कहना है टेलीकॉम कंपनियां का?
एटीएंडटी और वेरीजोन ने कहा था कि सुरक्षा को लेकर कोई खतरा नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका में वायरलेस संचार उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले (सीटीआईए) ने कहा है कि दुनिया के 40 देशों ने सी बैंड को 5जी के लिए उपलब्ध कराया है, लेकिन वहां की विमानन कंपनियों ने इस तरह की शिकायत नहीं की है। एटीएंटडी के सीईओ जॉन स्टैंकी और वेरिजोन के सीईओ हांस वेस्टबर्ग ने यह जरूर कहा है कि वे एयरपोर्ट के पास 5जी नेटवर्क की ताकत को कम करेंगे। इससे पहले फ्रांस ने भी इसी तरह का प्रयोग किया है।
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क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट?
हमें अपग्रेडेशन एडॉप्‍ट करना ही चाहिए
इंटरनेट और इसकी तकनीक में जो भी अपग्रेडेशन होगा, उसे हमें एडॉप्‍ट करना ही होगा। यह वेब 3.O का समय यानी इंटरनेट का तीसरा दशक चल रहा है। इस दौर में इंटरनेट यूजर्स के हाथों में होगा, क्‍योंकि यह यूजर्स का ही जमाना है। 5जी स्‍पेट्रम डेवलेप हो रहा है तो उसे रोकना नहीं चाहिए। इससे कोई नुकसान नहीं होना है, क्‍योंकि अभी चल रहे 4जी से यह अलग नहीं है, दोनों में सिर्फ वायर का अंतर है। यदि स्‍पेक्‍ट्रम की सीमा में रहकर इसे लागू करेंगे तो कोई समस्‍या नहीं है।
सिद्धार्थ राजहंस, पॉलिसी एक्‍सपर्ट, यूएन

कितने तरह का होता है 5G?
5G नेटवर्क मुख्य तौर पर चार तरह की टेक्नोलॉजी Non-standalone 5G (NSA-5G), standalone 5G (SA-5G), Sub-6 GHz और mmWave पर काम करता है। किसी भी रीजन में इन चार टेक्नोलॉजी के जरिए से ही 5G नेटवर्क को यूजर्स के डिवाइस तक पहुंचाया जाता है।

Non-standalone 5G
इसे बेसिक 5G नेटवर्क बैंड कहा जाता है और शुरुआत में किसी भी रीजन में नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर्स इसी बैंड के आधार पर यूजर्स को 5G नेटवर्क उपलब्ध करवाती हैं। इसमें 4G LTE के लिए उपलब्ध इंफ्रास्ट्रक्चर को इस्तेमाल करके 5G नेटवर्क को डिप्लॉय किया जाता है। किसी भी रीजन में नेटवर्क की टेस्टिंग के लिए टेलिकॉम कंपनियां इसी स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करती हैं।

Standalone 5G
ये नेटवर्क बैंड पुराने 4G LTE नेटवर्क पर रिलाई नहीं करता है। ये खुद के क्लाउड नेटिव नेटवर्क कोर पर काम करता है। दुनिया के कई देशों में इस स्पेक्ट्रम को अडोप्ट किया है और वहां ये काम कर रहा है।

Sub-6 GHz
इसे मिड बैंड 5G स्पेक्ट्रम फ्रिक्वेंसी कहा जाता है। इसमें नेटवर्क की फ्रिक्वेंसी 6GHz से कम होती है और इसका इस्तेमाल लो बैंड टेलिकम्युनिकेशन्स के लिए किया जाता है। चीन समेत कई देशों में इस नेटवर्क स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल किया जाता है।

mmWave
इसे हाई बैंड 5G नेटवर्क फ्रिक्वेंसी कहा जाता है। इसमें 24GHz से ऊपर की फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें ज्यादा बैंडविथ मिलता है। इसमें डाटा की स्पीड 1Gbps तक की होती है। mmWave को डिप्लॉय करने के लिए कई छोटे और लोअर रेंज के सेलफोन टॉवर का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि कवरेज को पूरा किया जा सके।

डायनैमिक नेटवर्क शेयरिंग
4G से 5G में नेटवर्क को अपग्रेड करने के लिए टेलिकॉम कंपनियां डायनैमिक नेटवर्क शेयरिंग का इस्तेमाल करती हैं। ये तकनीक NSA 5G स्पेक्ट्रम के साथ ही संभव है, क्योंकि इसमें 5G नेटवर्क एक साथ दो रेडियो फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल कर सकती है। जिसकी मदद से डाटा की स्पीड बढ़ जाएगी और डिवाइस 4G LTE के मुकाबले ज्यादा तेजी से नेटवर्क को एक्सेस कर सकेंगे। sub-6 GHz फ्रिक्वेंसी का फायदा ये है कि ये फ्रिक्वेंसी किसी भी सॉलिड ऑब्जेक्ट जैसे कि बिल्डिंग आदि को पेनिट्रेट करके 5G नेटवर्क कनेक्टिविटी को बरकरार रखती है। इसकी वजह से इंडोर में भी आपको नेटवर्क कनेक्टिविटी मिलती रहगी।

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