कृषि कानूनों के समर्थक किसान समूहों ने तोमर से की मुलाकात, अधिनियम वापस नहीं लेने की अपील

Webdunia
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020 (01:06 IST)
नई दिल्ली। केंद्र के तीन कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए उत्तर प्रदेश के दो किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने गुरुवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की और उनसे आग्रह किया कि इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाए। वहीं कई किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमा पर करीब एक महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं।

किसान मजदूर संघ (केएमएस) और किसान सेना (केएस) ने केंद्रीय मंत्री से मुलाकात की और अनुबंध खेती से जुड़ी विवाद निस्तारण प्रणाली को मजबूत करने सहित कई मांग रखी। इसके साथ ही अबतक करीब 12 किसान समूह इन कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। इससे पहले उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और अन्य स्थानों के संगठनों ने इन कानूनों का समर्थन किया था।

बागपत जिले से आए केएमएस के प्रतिनिधिमंडल के साथ हुई बैठक के दौरान भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीयमंत्री सत्यपाल सिंह भी मौजूद थे। बैठक के बाद सिंह ने कहा कि केवल पंजाब के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि बिना कर मंडियों से बाहर कृषि उत्पादों को बेचने की अनुमति देने से कमीशन एजेंट को अपना कारोबार खत्म होने का भय है।

उन्होंने दावा किया कि देश में 16 करोड़ किसान है लेकिन पंजाब के केवल 11 लाख किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। सिंह ने कहा कि इसकी वजह कमीशन एजेंटों का कारोबार खत्म होने का भय है। उन्होंने कहा कि पंजाब सबसे अधिक 8.5 प्रतिशत मंडी कर लगाता है जबकि उत्तर प्रदेश केवल 1.5 प्रतिशत कर लगाता है।

जब उनसे पूछा गया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसान नेता भी इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं तो सिंह ने कहा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोई कानून का विरोध नहीं कर रहा है। केवल 100-150 लोग राकेश टिकैत (किसान नेता) के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं।

जब संसद में कानून पारित हुआ तो वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने तुरंत प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया। उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने वर्ष 1993 में इसी तरह की आजादी (किसानों के लिए) मांगी थी।केएमएस अध्यक्ष चौधरी प्रकाश तोमर ने मंत्री को सौंपे ज्ञापन में कहा, दीनबंधु छोटू राम ने किसानों और मजदूरों को साहूकारों से मुक्त कराया था, चौधरी चरण सिंह ने हमे जमींदारों से मुक्त कराया और आजादी के 70 साल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमे बिचौलियों और कमीशन एजेंट से मुक्त कराया है।

हम इन तीनों कृषि कानूनों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं।केएमएस ने नए कानूनों का समर्थन करने के साथ सरकार से मांग की कि उसे गांव के स्तर पर अधिकरण बनाने पर विचार करना चाहिए जिसमें सरकार, न्यायपालिका और किसान संगठन के प्रतिनिधि हो ताकि अनुबंधित खेती को लेकर उपजे विवाद का पारदर्शी तरीके से समाधान हो सके।

केएमएस ने गन्ना किसानों का बकाया देने में कथित तौर पर देरी करने पर उत्तर प्रदेश के किन्नौरी, मोदीनगर और मलकपुर इलाके की चीनी मिलों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। आगरा के संगठन किसान सेना के प्रतिनिधिमंडल ने भी कृषि कानूनों का समर्थन किया है।

किसान सेना के अध्यक्ष गौरी शंकर सिंह ने कहा, प्रदर्शनकारी संगठन पहले संशोधन की मांग कर रहे थे लेकिन अब वे कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं। हमने सरकार से मांग की है कि वह सुनिश्चित करे कि कानून लागू हो।उन्होंने कहा कि नया कानून किसानों को अपने उत्पाद देश में कहीं भी बेचने की आजादी देता है और यहां तक किसान उत्पादक संगठन सीधे कंपनियों को अपने उत्पाद बेच सकते हैं।

किसान सेना ने मंत्री को दिए अपने ज्ञापन में सरकार से केंद्र के स्तर पर ‘किसान आयोग’ गठित करने पर विचार करने का अनुरोध किया है जो अनुबंधित खेती संबंधी विवादों का समाधान कर सके।

कानून समर्थक किसानों ने कृषि मंत्री से की मुलाकात : केंद्र के तीन कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए उत्तरप्रदेश के दो किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने गुरुवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की और उनसे आग्रह किया कि इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाए। वहीं, कई किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमा पर करीब एक महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं।

किसान मजदूर संघ (केएमएस) और किसान सेना (केएस) ने केंद्रीय मंत्री से मुलाकात की और अनुबंध खेती से जुड़ी विवाद निस्तारण प्रणाली को मजबूत करने सहित कई मांग रखी। इसके साथ ही अब तक करीब 12 किसान समूह इन कानूनों का समर्थन कर चुके हैं।

इससे पहले उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और अन्य स्थानों के संगठनों ने इन कानूनों का समर्थन किया था। बागपत जिले से आए केएमएस के प्रतिनिधिमंडल के साथ हुई बैठक के दौरान भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीयमंत्री सत्यपाल सिंह भी मौजूद थे।

बैठक के बाद सिंह ने कहा कि केवल पंजाब के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि बिना कर मंडियों से बाहर कृषि उत्पादों को बेचने की अनुमति देने से कमीशन एजेंट को अपना कारोबार खत्म होने का भय है। उन्होंने दावा किया कि देश में 16 करोड़ किसान है लेकिन पंजाब के केवल 11 लाख किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। सिंह ने कहा कि इसकी वजह कमीशन एजेंटों का कारोबार खत्म होने का भय है।

उन्होंने कहा कि पंजाब सबसे अधिक 8.5 प्रतिशत मंडी कर लगाता है जबकि उत्तर प्रदेश केवल 1.5 प्रतिशत कर लगाता है। जब उनसे पूछा गया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसान नेता भी इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं तो सिंह ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोई कानून का विरोध नहीं कर रहा है।

केवल 100-150 लोग राकेश टिकैत (किसान नेता) के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं। जब संसद में कानून पारित हुआ तो वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने तुरंत प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया। उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने वर्ष 1993 में इसी तरह की आजादी (किसानों के लिए) मांगी थी।

केएमएस अध्यक्ष चौधरी प्रकाश तोमर ने मंत्री को सौंपे ज्ञापन में कहा कि दीनबंधु छोटू राम ने किसानों और मजदूरों को साहूकारों से मुक्त कराया था, चौधरी चरण सिंह ने हमे जमींदारों से मुक्त कराया और आजादी के 70 साल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमे बिचौलियों और कमीशन एजेंट से मुक्त कराया है। हम इन तीनों कृषि कानूनों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं।

केएमएस ने नए कानूनों का समर्थन करने के साथ सरकार से मांग की कि उसे गांव के स्तर पर अधिकरण बनाने पर विचार करना चाहिए जिसमें सरकार, न्यायपालिका और किसान संगठन के प्रतिनिधि हो ताकि अनुबंधित खेती को लेकर उपजे विवाद का पारदर्शी तरीके से समाधान हो सके।

केएमएस ने गन्ना किसानों का बकाया देने में कथित तौर पर देरी करने पर उत्तर प्रदेश के किन्नौरी, मोदीनगर और मलकपुर इलाके की चीनी मिलों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। आगरा के संगठन किसान सेना के प्रतिनिधिमंडल ने भी कृषि कानूनों का समर्थन किया है।

किसान सेना के अध्यक्ष गौरी शंकर सिंह ने कहा कि प्रदर्शनकारी संगठन पहले संशोधन की मांग कर रहे थे लेकिन अब वे कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं। हमने सरकार से मांग की है कि वह सुनिश्चित करे कि कानून लागू हो।

उन्होंने कहा कि नया कानून किसानों को अपने उत्पाद देश में कहीं भी बेचने की आजादी देता है और यहां तक किसान उत्पादक संगठन सीधे कंपनियों को अपने उत्पाद बेच सकते हैं। किसान सेना ने मंत्री को दिए अपने ज्ञापन में सरकार से केंद्र के स्तर पर ‘किसान आयोग’ गठित करने पर विचार करने का अनुरोध किया है जो अनुबंधित खेती संबंधी विवादों का समाधान कर सके।(भाषा)

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