‘भारत बंद’ एक घि‍सीपि‍टी अवधारणा है, यह काम आपके एक ट्वीट से भी हो सकता है

नवीन रांगियाल

‘भारत बंद’ एक बहुत बड़ा शब्‍द है, सुनने में लगता है कि गलियों में मौन पसर जाएगा, सरकार के कान पर जूं रेगेंगी और देश में क्रांति आ जाएगी, लेकिन हकीकत यह है कि आधुनिक दुनिया में ‘बंद’ एक घि‍सीपि‍टी अवधारणा है, इस ‘बंद’ में इंटरनेट की मदद से भारत और भी तेज गति से चलता है। खैर, आप चाहो तो आपके विरोध का यह काम एक छोटे से ट्वीट से भी हो सकता है।

भारत में आंदोलन का इतिहास बेहद पुराना है। आजादी के लिए गांधी ने कई तरह के आंदोलन किए, उनमें सत्‍याग्रह और असहयोग जैसे आंदोलन सामने आए। इनका उदेश्‍य था अंग्रेज सरकार को भारत की सरजमीं से उखाड़ फेंकना और गुलाम भारत को आजाद करवाना।

ऐसे आंदोलनों के परिणाम भी आए और अंग्रेज शासन को भारत से खदेडने में मदद भी मिली। लेकिन आज के दौर में आंदोलन या खासतौर से ‘भारत बंद’ जैसी अवधारणा कितनी कारगर या प्रासंगिक है यह जानना बेहद जरूरी है। 8 दिसंबर को सरकार द्वारा लाए गए किसान बि‍ल के विरोध में देशभर के किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया गया है। ऐसे में जानना जरूरी है कि आज के समय में यह कितना प्रभावी या प्रासंगि‍क है।

दुनिया जहां पूरी तरह से इंटरनेट से लेस हो चुकी है, आधुनि‍क भारत में भी इंटरनेट एक बड़ा माध्‍यम है। जिंदगी के तमाम काम-काज इसी के ईर्द-गि‍र्द घूमते नजर आते हैं।

मसलन, खाना ऑर्डर करना हो, शॉपिंग करना हो, मोबाइल रिचार्ज करना हो यह सारा काम-काज इंटरनेट के माध्‍यम से होता है। यानि इसके लिए किसी को कहीं जाने की या घर से बाहर निकलने की जरूरत नहीं होती है। ऐसे में अगर मोबाइल की दुकानें, शॉपिंग सेंटर, मॉल्‍स आदि बंद भी कर दिए जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्‍योंकि सबकुछ ऑनलाइन है।

ठीक इसी तरह कोरोना वायरस के कहर के बाद स्‍कूल-कॉलेज और ऑफि‍स का कल्‍चर पूरी तरह से बदल गया है। यानि स्‍कूल और कॉलेज की क्‍लासेस ऑनलाइन ली जा रही है। ज्‍यादातर कंपनियों ने अपने ऑफिस बंद कर के वर्क फ्रॉम होम का कॉन्‍सेप्‍ट चुन लिया है। ऐसे में आज किसी को ऑफिस जाने की जरूरत नहीं है।

यानि जिंदगी से जुड़ी तकरीबन हर चीज इंटरनेट के माध्‍यम से की जा रही है तो फि‍र ‘भारत बंद’ जैसे आंदोलन कोई बहुत ज्‍यादा असर नहीं छोड सकते हैं। जैसा कि किसान अभी कर रहे हैं। ऐसे में इस तरह के आंदोलन निरर्थक ही साबि‍त होंगे।

ऐसे में दुखद बात यह है कि ऐसे बंद का असर उन्‍हीं आम लोगों पर पड़ेगा जो दिहाड़ी वर्ग के लोग हैं या खुद किसान हैं। आम लोगों को दूध नहीं मिलेगा, सब्‍जी नहीं मिलेगी, फलफ्रूट नहीं मिलेंगे। इन सारी चीजों का उत्‍पादन तो किसी न किसी तरह से खुद किसान या मजदूर वर्ग का आदमी ही करता हैं, तो ऐसे में किसान ही प्रभावित होंगे। हो सकता है कुछ हद तक एक दिन के लिए आम लोग परिवहन को लेकर परेशान हो सकते हैं।

मुद्दा यह है कि आधुनिक दुनिया में फि‍र विरोध कैसे जताया जाए। कैसे सरकार तक अपनी बात रखी जाए या पहुंचाई जाए। ऐसे में सोशल मीडि‍या की भूमिका याद आती है। आपको याद होगा, कुछ ही समय पहले अमेरिका में जॉर्ज फ्लायड की हत्‍या के बाद वहां ब्‍लैक लाइव्‍स मैटर नाम से एक कैंपेन चला। यह अभि‍यान पूरी तरह से फेसबुक और ट्व‍िटर पर चलाया गया और इसका असर पूरी दुनिया में हुआ। इसके लिए किसी तरह से देश या शहर बंद करने या तोड़फोड़ करने की जरुरत नहीं पड़ी।

ठीक इसी तरह हाल ही में भारत में अभि‍नेता सुशांत सिं‍ह राजपूत की संदि‍ग्‍ध मौत के बाद सोशल मीडिया में जमकर और कई दिनों तक हैशटैग और अभियान चलाए गए, जिसका असर दुनिया के कई हिस्‍सों में और मीडि‍या में हुआ।

नतीजन यह कहा जा सकता है कि आंदोलन करने के पुराने तरीके अब कारगर नहीं रहे। जितना असर आपके सडक पर उतरने से नहीं होता, उससे कहीं ज्‍यादा प्रभाव आपके एक ट्वीट से हो सकता है। क्‍योंकि आपके सड़क पर उतरकर देश की संपत्‍त‍ि को नुकसान पहुंचाने से ज्‍यादा फायदेमंद और कारगर ट्व‍िटर पर किया गया आपका एक ट्वीट हो सकता है।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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