गुमनामी में डूबा शाहपुर की रानी का किला, 1857 में था अंग्रेजों के खिलाफ गुरल्ला युद्ध का केंद्र

अवनीश कुमार
गुरुवार, 11 अगस्त 2022 (14:18 IST)
कानपुर देहात। देश को आजाद हुए 15 अगस्त से 75 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं और हम सभी देशवासी हर्षोल्लास के साथ जश्न मना रहे हैं। 75 वर्ष में हम सब बदले, हमारा रहन-सहन बदला लेकिन आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों से जुड़े स्थानों को संजोकर नहीं रख पाए। इसके चलते बहुत सारे किले आज गुमनामी के अंधेरे में खोने को तैयार है। ऐसा ही एक किला कानपुर देहात के अकबरपुर में मौजूद है। जो 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ गुरल्लिा युद्ध का केंद्र रहा था।

खंडहर में बदल चुके अवशेष अभी भी इस किले की वीरता की कहानी बयां करते हैं। इस किले का आजादी के लडाई में बेहद बड़ा योगदान रहा है पर आज वह जर्जर अवस्था में अपने अस्तित्व को खोता चला जा रहा है।
 
गुमनामी के अंधेरे में डूबा किला -  कानपुर देहात के इतिहास को संजोने वाले प्रोफेसर लक्ष्मीकांत त्रिपाठी की किताब और सूचना विभाग की पुस्तिका में भी शाहपुर की रानी के इतिहास का जिक्र है। इसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि कानपुर देहात के अकबरपुर कस्बे में स्थित शाहपुर की रानी का किला आजादी की लड़ाई का गढ़ रहा है।
 
1857 में क्रांतिकारियों ने यहां डेरा डालकर अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए थे। शाहपुर की रानी के सैनिकों ने 10 अगस्त 1857 को तात्या टोपे की फौज के 6 हजार सिपाहियों व 18 तोपों संग मिलकर कालपी से आगे आने पर कालपी रोड पर अंग्रेजों के खिलाफ मार्चा लिया था। इसके बाद 16 व 17 अगस्त 1857 को यहां एकत्र हुए क्रांतिकारियों, रियासतदारों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोलकर सचेंडी तक अंग्रेजों को खदेड़कर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था।
 
कर्नल हैवलाक ने अकबरपुर स्थित क्रांति के गढ़ रहे इस किले को ध्वस्त कर यहां तहसील व कोतवाली संचालित कराई थी। वर्ष 1998 तक इसी जगह तहसील कायम रही। 28 अगस्त 1999 को माती रोड पर बने भवन में तहसील का संचालन हो रहा है। लेकिन अभी भी यहां पुलिस चौकी कायम है। क्रांतिकारियों का गढ़ रहा शाहपुर की रानी का किला मौजूदा समय में खंडहर में तब्दील होने के साथ ही गुमनामी के अंधेरे में डूबा है।
 
अस्तित्व की लड़ाई लड़ता किला - कानपुर देहात के अकबरपुर कस्बे में स्थित शाहपुर की रानी का किला आजादी की लड़ाई का गढ़ रहा है और एक समय यह किले गुरल्लिा युद्ध का केंद्र भी रहा था। इस किले से हमारे देश के क्रांतिकारियों की बहुत सारी याद व कांति की सैकड़ों कहानियां भी जुड़ी हुई है।
 
लेकिन आज जहां हम सभी भारतवर्ष आजादी के 75 वर्ष का जश्न मना रहे हैं तो वही यह किला अपने अस्तित्व की लड़ाई आज अकेला ही लड़ा रहा है और धीरे धीरे यह किला खंडहर में तब्दील होने के साथ ही गुमनामी के अंधेरे में डूब रहा है।

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