यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी

फ्रेंडशिप डे स्पेशल

Webdunia
दोस्त तो जिंदगी के हर पड़ाव पर बनते हैं, लेकिन कॉलेज लाइफ का दोस्त हमेशा याद रहता है। वजह यह कि कॉलेज में गुजरे दिन हर किसी की जिंदगी का स्वर्णिम काल होता है। यहां ढेर सारी मस्ती होती हैं, शरारतें होती हैं और सबसे खास बात जिंदगी का मुकाम भी यहीं आकर तय होता है।

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फ्रेंडशिप डे पर हमने कुछ ऐसे चुनिंदा स्टूडेंट्स से बातचीत की है, जो राज्यों और शहरों की सीमा लांघकर पढ़ने के लिए मेट्रो में अकेले आए, लेकिन कुछ ही दिनों में सहपाठियों से ऐसे घुल-मिल गए, जैसे कि वे उन्हें बहुत पहले से जानते हों। उनका कहना है कि भले ही वे दूसरे चीजों को भूल जाएँ, लेकिन ये दोस्ती न कभी न भूलेंगें।

बहन की तरह रहती हैं
मुंबई की ज्योति दुलानी मेडिकल कॉलेज में फर्स्ट इयर की छात्रा है। शुरू में वे हॉस्टल में रहीं। अब कुछ दिनों से वे बिलासपुर की कंकनी पॉल सिंह के साथ रहती हैं। दोनों के बीच दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हो गई है कि वे पल भर भी एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकती। दोनों बहन की तरह रहती हैं। कंकनी आगे की पढ़ाई पुणे में करना चाहती है। ज्योति का कहना है कि वे यहां की पढ़ाई बीच में ही खत्म करके पुणे में एडमिशन लेंगी। लेकिन दोस्ती फिर भी कायम रहेंगी।

खाना-पीना साथ है
गांव के अभय पांडे, अंबिकापुर के मनीष दुबे और कांकेर के सितेश पात्र दिशा कॉलेज के छात्र हैं। तीनों शंकरनगर में रुम लेकर रहते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी दोस्ती इसी वर्ष हुई है। घुलने-मिलने में उन्हें कुछ समय लगा। अब वे इतने अच्छे दोस्त हैं कि एक-दूसरे के बिना खाना नहीं खाते। अभय ने बताया कि वे तीनों दोस्त हर समय एक-दूसरे के मदद की लिए तैयार रहते हैं। मनीष का कहना है कि दोस्ती ही हमारी पूंजी है। हम इसे किसी भी कीमत पर नहीं गवाएंगे।

तेरा-मेरा साथ रहे
डिग्री गर्ल्स कॉलेज की छात्रा रंजना साहू कहती हैं कि वह परिवार से दूर होकर यहां पढ़ने आई तो लगा कि उसका सब कुछ छिन गया है। मां के हाथ का खाना, पिता का दुलार और भाई का स्नेह, लेकिन कविता जैसी दोस्त रूममेट पाकर उसे ऐसा लगा कि जैसे सब कुछ मिल गया है। वे उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती। इसी प्रकार छात्रा संजना कहती हैं कि दोस्त तो हर मोड़ पर बनते हैं, लेकिन कॉलेज में हुई दोस्ती की बात ही अलग होती है। उनका मानना है कि कॉलेज लाइफ की दोस्त जिंदगी भर याद रहती हैं।

दोस्त ईश्वर की नेमत है
बिलासपुर की सुमन साहू को बड़े शहर में आए तीन महीनें हुए हैं। वह इंजीनियरिंग की छात्रा है। सुमन कहती हैं कि दोस्त हौसले की मिसाल है। पराए शहर में एक अच्छा दोस्त ईश्वर की बहुत बड़ी नेमत है। जब वे घर से बड़े शहर के लिए रवाना हुई तो बहुत निराशा थीं। उसे लग रहा था कि अच्छे दोस्त मिलेंगे या नहीं? वहां जाकर कैसे अपने आप को एडजेस्ट करेंगी? स्वाती सोनी जैसी दोस्त पाकर उसके सारे सवालों का जवाब मिल गया। दोनों अच्छे दोस्त हैं।

वे एक-दूसरे की छोटी-छोटी जरूरतों का हमेशा ख्याल रखते हैं। स्वाती कहती हैं कि सुमन जब भी अपने घर जाती हैं तो वह अपने आपको तन्हा महसूस करती है।

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