रेलों के लिए के.वाय.टी. (Know Your Train)

एमके सांघी
जबसे इन्दौर-पटना ट्रेन कानपुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हुई है और उसमें लगभग 150 लोग मृत तथा 300 से अधिक घायल हुए है, मेरा मन रेल यात्रा के नाम से उसी तरह से कंपकंपाने लगा है जैसा कि 8 नवंबर की रात कालेधन के जमाखोरों का 500-1000 के नोटों के बंद होने की सूचना पर कंपकंपाया था।


 

ऐसा भी नहीं कि दुर्घटना के कारणों का पता चल जाने पर रेल मंत्रालय उन कारणों को तुरत-फुरत इस तरह से दूर कर देगा जैसे कि मां बच्चे द्वारा गीला कर देने पर तुरंत नेपी बदल देती है। सोशल मीडिया के अपुष्ट समाचारों के अनुसार रेल मंत्रालय ने शून्य दुर्घटना मिशन के तहत सरकार से पूरी रेल सुरक्षा प्रणाली की ओवरहालिंग, जिसमें पुराने पुलों की मरम्मत, रेल पथ के नवीनीकरण तथा मानव रहित समपारों की व्यवस्था शामिल है, के लिए एक लाख करोड़ रुपयों की मांग की है पर सरकार के पास देने के लिए शायद इतना बजट नहीं है या फिर सरकार एक लाख करोड़ खर्च कर पहले अपना बुलेट ट्रेन का सपना साकार करना चाहती होगी। रेल यात्रा सबसे सस्ती होती है अत: उसके साथ कुट्टी भी नहीं की जा सकती है। 
 
इसलिए बस एक ही रास्ता नजर आया कि यात्रा के पूर्व रेलवे से उसकी ट्रेन के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर ली जाए। इसे आसान भाषा में कहा जाए तो रेलवे को मजबूर किया जाए कि वह अपनी हर ट्रेन का के.वाय.टी. (Know Your Train) करवाएं, ठीक उसी तरह जैसे बैंक अपने ग्राहक से के.वाय.सी. करवाने के लिए मजबूर करता है। के.वाय.टी. सर्टिफिकेट रेलवे को अपनी हर ट्रेन की हर बोगी में चस्पा करना होगा। इसमें रेलवे यात्रियों को यह जानकारी देगा कि उसकी इस ट्रेन के डिब्बे अंग्रेजों के या फिर किस प्रधानमंत्री के काल के हैं। ट्रेन डीज़ल या बिजली काहे से चलती है। डिब्बे पुरानी आय.सी.एफ. तकनीकि के हैं या नई एल.एच.बी. तकनीकि के। यदि ट्रेन में स्लीपिंग स्लाइड कंट्रोल हुआ तो यात्री मोबाइल और पर्स तकिए में दबाकर चैन से सो सकेंगे। ट्रेन का अंतिम मेंटेनेंस किस दिनांक को हुआ था। कितने कर्मचारियों ने किया था। ऐसा तो नहीं कि ज्यास्ती लोग उस दिन छुट्टी पर थे (या किसी दुर्घटना की जांच के लिए बाहर गए हों अथवा नोट बदलवाने बैंक की लाइन में लगे हों) और चलतऊ मेंटेनेंस कर दिया हो। ट्रेन के जो पुर्जे समय-समय पर बदले जाने चाहिए वे बदले गए हैं या नहीं। ट्रेन के ब्रेक सई-साट हैं या नहीं। हर बोगी के बारे में यह जानकारी देनी होगी कि उक्त बोगी को कितने ट्रेन हादसों का अनुभव है। ट्रेन के केप्टन-द्वय को कितने घंटों की उड़ान (संचालन) का अनुभव है यह जानकारी यात्रियों को आश्वस्त करेगी। रेलवे यह भी बताए कि समय-समय पर अपने द्वारा बनाई गई समितियों द्वारा सुझाए गए कितने सुरक्षा तथा आधुनिकीकरण के सुझावों का उसने अमलीकरण कर दिया है और कितने धूल में सने पड़े हैं ताकि यात्री अपनी यात्रा के खतरों का मूल्यांकन कर सके। रेलवे को रेल में पब्लिक अनाऊसमेंट सिस्टम भी लगाना चाहिए। जिस तरह से वायुयान में उद्‍घोषणा की जाती है कि ‘यात्री गण कृपया अपने सीट बेल्ट बांध लें आगे मौसम खराब है, उसी प्रकार रेल के कैप्टन भी घोषणा कर सकेंगे कि यात्रीगण कृपया जागकर सतर्क बैठ जाएं क्योंकि आगे ट्रेन पुराने जर्जर पुल से गुजरने वाली है। ऐसे जर्जर पुलों से कई बार बोगियां नदी में गिर जाती हैं। हर स्टेशन पर लाइफ जैकेट किराए पर दी जानी चाहिए जो गंतव्य स्टेशन पर वापस ले ली जाएं। अब बजट की कमी से विभाग वायुयान की तरह हर सीट के नीचे लाइफ जैकेट तो दे नहीं सकेगा। कुछ खंडों में रेलवे ट्रेक आधुनिक और सुरक्षित होते हैं। ऐसे खंडों से गुजरने पर कैप्टन यह उद्घोषणा करें कि आगे की यात्रा सुरक्षित है और यात्रीगण अब अपने सीट पर हाथ-पैर फैला कर निश्चिंत अपनी पारिवारिक, राजनीतिक और देश-विदेश की समस्याओं पर एक-दूसरे को अपना ज्ञान बांट सकते हैं। ट्रेन के हर कोच में सीसीटीवी स्क्रीन भी होनी चाहिए जिससे यात्री देख सकें कि इंजिन में कैप्टन सो तो नहीं रहे हैं। 
 
हर कोच में रेलवे और सरकार को जानकारी दे देनी चाहिए कि दुर्घटना की स्थिति में कितना मुआवजा मिलेगा। किसी को मुआवजा कम लगे तो उसे ऑनलाइन यात्रा बीमा करवाने की सुविधा मिलनी चाहिए। सरकार चाहे तो सुरक्षित रूट की सुरक्षित ट्रेन का अधिक किराया वसूल कर सकती है। यदि कोई यात्री घबरा कर अपनी यात्रा बीच में ही स्थगित करना चाहे तो उसके पास यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपना टिकिट आर.ए.सी. या वेटिंग वाले यात्री को बेच सके। पुराने जमाने की बसों में लिखा होता था कि ‘ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें’। भारतीय रेल के हर कोच में भी लिख दिया जाना चाहिए कि ‘भारतीय रेल से अब तक न जाने कितने मरे, ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें’। 
 
अब आप यह न कहना कि इतनी जानकारी देना सिर खपाऊ और वक्त खाऊ होगी। जब सरकार बात-बात पर आम जनता से लंबे-लंबे फार्म भरवाती है, उसे भी तो यह सजा मिलनी चाहिए। सरकार इस खिच-खिच से बच सकती है यदि नोट बंदी की कमाई से रेल के आधुनिकीकरण के लिए दरकार राशि रेलवे को दे दें।  
 
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