गणेश उत्सव हमारे देश का महत्त्वपूर्ण उत्सव है। प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी के दिन घर-घर में गणेशजी की पूजन व स्थापना होती है तदुपरान्त अनन्त-चतुर्दशी को गणेशजी का विसर्जन होता है।
आज जब कोरोना महामारी के चलते आवागमन प्रतिबन्धित है तब हम वेबदुनिया के पाठकों के लिए लाए हैं गणेश-विसर्जन की सम्पूर्ण सरल पूजन विधि जिससे वे स्वयं गणेशजी का विधिवत् विसर्जन-पूजन कर सकते हैं।
पूजन सामग्री- गणेश जी की प्रतिमा (मिट्टी,स्वर्ण,रजत,पीतल,पारद), हल्दी, कुमकुम, अक्षत (बिना टूटे हुए चावल), सुपारी, सिन्दूर, गुलाल, अष्टगंध, जनेऊ जोड़ा, वस्त्र, मौली, सुपारी, लौंग, ईलायची, पान, दूर्वा, पंचमेवा, पंचामृत, गौदुग्ध, दही, शहद, गाय का घी,शकर, गुड़, मोदक, फ़ल, नर्मदाजल/गंगाजल, पुष्प, माला, कलश, सर्वोषधि, आम के पत्ते, केले के पत्ते, गुलाबजल, इत्र, धूपबत्ती, दीपक-बाती, सिक्का, श्रीफल (नारियल)
सम्पूर्ण पूजन विधि- अनन्त चतुर्दशी वाले दिन शुभ चौघड़िये के अनुसार उक्त सामग्री का प्रबंध कर अपने पूजागृह में एकत्र करें। पूजा करते समय आपका मुख उत्तर या पूर्व की रखें। घी का दीपक प्रज्जवलित करें।
पवित्रीकरण-किसी भी पूजा को करने से पूर्व पवित्र व शुद्ध होना अनिवार्य है। पवित्रीकरण के लिए अपने बाएं में जल लेकर दाहिने से उसे ढंके और निम्न मंत्र के साथ अपने ऊपर एवं सम्पूर्ण पूजा सामग्री के ऊपर उसका मार्जन करें (छिड़कें) ।
मंत्र- ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यान्तर शुचि:॥
अब आचमनी से लेकर तीन बार जल का निम्नलिखित मंत्र बोलकर आचमन करें।
ॐ केशवाय नम:
ॐ नारायणाय नम:
ॐ माधवाय नम:
हस्त प्रक्षालन के लिए "ॐ गोविन्दाय नमो नम:" तीन बार "पुण्डरीकाक्षं पुनातु:" बोलकर अपने हाथ धो लें। हस्त प्रक्षालन के पश्चात अपने भाल पर कुमकुम या चन्दन का तिलक धारण करें।
दीपक का पूजन-
दीपक के पूजन हेतु एक पुष्प में जल व अष्टगंध सहित हल्दी, कुमकुम, सिन्दूर लगाकर निम्न मन्त्र के साथ दीपक के समक्ष अर्पण करें-
"शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखसम्पदाम्।
शत्रुबुद्धिविनाशाय च दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते।
दीपो ज्योति: परब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:।
दीपो हरतु मे पापं दीप ज्योति नमोऽस्तुते॥
संकल्प-
संकल्प हेतु अपने बाएं हाथ में पुष्प, अक्षत, सुपारी व सिक्का लेकर उसमें एक आचमनी जल डालें और निम्न संकल्प बोलें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमदभगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्रि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत्मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे “अमुक” (अमुक के स्थान पर अपने निवासरत नगर का उच्चारण करें) नगरे/ग्राम 2077 वैक्रमाब्दे प्रमादी नाम संवत्सरे भाद्रपद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्दशी तिथौ अमुकवासरे प्रात:/अपरान्ह/मध्यान्ह/सायंकाले “अमुक” (अमुक के स्थान पर अपने गोत्र का उच्चारण करें) गोत्र:....शर्मा/वर्मा/गुप्त: श्रीगणेश देवता प्रीत्यर्थं विसर्जन पूजनं कर्म अहं करिष्ये।
उक्त संकल्प बोलकर हाथ की समस्त सामग्री गणेश के सम्मुख उनके चरणों में अर्पित करे दें और उस पर एक आचमनी जल चढ़ा दें।
ध्यान-
गणेशजी के ध्यान हेतु अपने दाएं में पुष्प लेकर दोनों हाथ जोड़ें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें और पुष्प गणेशजी के सम्मुख अर्पण करें-
"गजाननं भूतगणादिसेवतं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्॥
गौरीजी के ध्यान हेतु अपने दाएं में पुष्प लेकर दोनों हाथ जोड़ें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें और पुष्प गौरीजी के सम्मुख अर्पण करें-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्।
ध्यान के उपरान्त अपने बाएं हाथ में अक्षत लेकर उसमें हरिद्रा (हल्दी) मिश्रित कर लें तत्पश्चात् उन पीतवर्णीय अक्षतों में से एक-एक अक्षत अपने दायें हाथ से उठाकर श्रीगणेशजी के सम्मुख निम्न मंत्र के साथ अर्पण करें-
1. श्रीमन्महागणाधिपतये नम:
2. लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:
3. उमा-महेश्वराभ्यां नम:
4. वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:
5. शचीपुरन्दाराभ्यां नम:
6. मातृपितृचरणकमेलेभ्यो नम:
7. इष्टदेवताभ्यो नम:
8. कुलदेवताभ्यो नम:
9. ग्रामदेवताभ्यो नम:
10. वास्तुदेवताभ्यो नम:
11. स्थानदेवताभ्यो नम:
12. सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:
13. सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:
14. ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नम:
पाद्य-
श्रीगणेशजी व गौरीजी के पादप्रक्षालन हेतु एक आचमनी जल गणेशजी व गौरीजी के सम्मुख अर्पण करें।
अब हाथ में पुष्प व अक्षत लेकर पूजा में हुई त्रुटि के विनम्र भाव से क्षमा प्रार्थना करें-
मंत्र-गणेशपूजनं कर्म यन्यूनमधिकं कृतम्।
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽतु सदा मम॥
उक्त मंत्र बोलकर हाथ में रखे पुष्प व अक्षत गणेशजी के सम्मुख अर्पण कर साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करें।
अब एक आचमनी जल अपने आसन के नीचे छोड़कर उस जल को अपने नेत्रों से लगाकर पूजा सम्पन्न करें।
विसर्जन-
विसर्जन हेतु अपने हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र बोलकर श्रीगणेशजी के सम्मुख अर्पण करें और गणेश प्रतिमा को अपने आसन से हाथों से थोड़ा हिला दें, तत्पश्चात् गणेश प्रतिमा को अपनी सुविधानुसार किसी पवित्र नदी/तालाब/कुण्ड में विसर्जित करें।