Gangaur Puja 2024: हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार चैत्र माह शुक पक्ष तृतीया को गणगौर के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्यत: हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में ज्यादा प्रचलित है। गणगौर पूजा को लेकर संपूर्ण क्षेत्र में बहुत उत्साह रहता है। आओ जानते हैं कि गणगौर पर किस देवी की पूजा करते हैं और इस दिन क्या खास किया जाता है।
चैत्र कृष्ण एकादशी से प्रारंभ होता है गणगौर पर्व
चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर व्रत मनाया जाता है
शुक्ल तृतीया को मिट्टी के शिव पार्वती का पूजन कर कथा सुनते हैं
इसी दिन समारोह पूर्वक शिव पार्वती को जलाशय के किनारे ले जाते हैं
इसी दिन जलाशय के किनारे शिव पार्वती का पूजन करते हैं।
पूजन के बाद शाम को विसर्जन और विसर्जन व्रत को छोड़ते हैं
मां पार्वती : गणगौर के नाम में गण का अर्थ भगवान शिव एवं गौर का अर्थ माता पार्वती से है। इस दिन महिलाएं शिवजी एवं माता पार्वती जी की पूजा करती हैं।
महत्व : माता पार्वती को गौरी और महागौरी भी कहा जाता है। कई क्षेत्रों में भगवान शिव को ईसर जी एवं देवी पार्वती को गौरा और गवरजा जी माता के रूप में पूजा जाता है। इस व्रत का पालन करने से अविवाहित कन्याओं को इच्छित वर की प्राप्ति होती है तथा विवाहिताओं के पति और संतान दीर्घायु रहते हैं। मान्यता के अनुसार गणगौर व्रत करने से सुख-सौभाग्य, समृद्धि, संतान, ऐश्वर्य में वृद्धि होती है और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है तथा जीवन में खुशहाली आती है।
चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके व्रत एवं पूजा करती हैं।
बालू अथवा मिट्टी की गौरा जी का निर्माण करके उनका सम्पूर्ण श्रृंगार किया जाता हैं।
इसके बाद विधि-विधान से पूजन करते हुए लोकगीतों को गाया जाता है।
इस दिन भोजन में मात्र एक समय दुग्ध का सेवन करके व्रत करते हैं।
कथा के अनुसार इस व्रत की को पति से छुपाकर किया जाता है। पति को प्रसाद भी नहीं दिया जाता है।
महिलाएं सन्ध्याकाल में गणगौर व्रत की कथा को पढ़ती या सुनती हैं।
इस दिन नदी, कुंड, ताल या सरोवर के नजदीक बालू से निर्मित माता गौरा की मूर्ति को जल पिलाते हैं।
इस पूजन के अगले दिन देवी का विसर्जन किया जाता है। इसके बाद पारण करते हैं।
gangaur teej 2024
गणगौर पूजा विधि- Gangaur Vrat Puja Vidhi 2024
चैत्र कृष्ण एकादशी के दिन गणगौर का पर्व प्रारंभ होता है।
एकादशी के दिन प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोएं जाते हैं।
चैत्र कृष्ण एकादशी के दिन से विसर्जन तक व्रतधारी को एकासना यानी एक समय भोजन करना चाहिए।
इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है।
गौरी जी का विसर्जन जब तक नहीं हो जाता तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधिपूर्वक पूजा करके उन्हें भोग लगाते हैं।
गौरी जी की इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं, कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं।
पूजन में चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन करके सुहाग सामग्री को माता गौरी को अर्पण किया जाता है।
इसके पश्चात गौरी जी को भोग लगाया जाता है। भोग के बाद गौरी जी की कथा कही जाती है।
कथा सुनने के बाद गौरी जी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहिताएं अपनी मांग भरती है।
कुंआरी कन्याएं भी इन दिनों गौरी जी को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
गणगौर पूजन में मां गौरी के 10 रूपों की पूजा की जाती है।
मां गौरी के 10 रूप 'गौरी, उमा, लतिका, सुभागा, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, सौभाग्यवर्धिनी और अम्बिका' है।
तत्पश्चात चैत्र शुक्ल द्वितीया/ सिंजारे को गौरी जी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराते हैं।
चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्र, आभूषण आदि पहना कर डोल या पालने में बिठाते हैं।
इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएं और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करने के बाद शाम को उपवास छोड़ते हैं।