दयारानी को पूरा यकीन है कि इस बार उनका जीतना तय था। उनका कहना है कि गाजियाबाद में 16 हजार तो किन्नर ही हैं। फिर इस बार जाटव समाज के लोगों ने भी मुझसे कहा था कि मायावती को बहुत बार वोट दिया, उसने कुछ नहीं किया, इस बार जरूर तुम्हें देंगे। डीएम एसवीएस रंगाराव का जिक्र छिड़ते ही उनके मुंह से गालियों और बद्दुआओं का फव्वारा सा छूट पड़ता है।
एक दूसरा हिजड़ा कहता है- '' इन अफसरों के घर में एक न एक लड़का जरूर 'खराब' होता है। हमारी मुट्ठी में सबके राज हैं। अगर बोलने पर आएंगी तो ये भागते फिरेंगे।'' दयारानी कहती हैं कि अगर 16 ही प्रत्याशी रखने थे तो किसी और का नाम काट देते। मुझ हिजड़े की बद्दुआ क्यों ले रहे हैं।
वैसे यह बात भी सच है कि इस बार कई जगह से ऐसे लोगों के नामांकन रद्द हुए हैं, जो मजे के लिए चुनाव लड़ते हैं। पटना से धरतीपकड़ का नामांकन भी लगभग अबूझ कारणों से रद्द किया गया है। दयारानी किन्नर का नामांकन भी ऐसे कारण से रद्द हुआ, जो कारण था नहीं, बनाया गया।
बहरहाल दया रानी को 'भारतीय नौजवान इंकलाब पार्टी' की असलियत भी समझ में आ गई है और उनकी बद्दुआओं की बौछार उस पार्टी पर भी हो रही है, जिसने उन्हें उम्मीदवार बनाकर (फंसा कर) लाखों रुपया खर्च करा दिया।
एक और दिलचस्प खबर यहां से यह है कि बड़ी पार्टियों के किसी भी उम्मीदवार ने प्रशासन से सुरक्षा नहीं मांगी है। मगर तीन निर्दलियों ने कहा है कि उन्हें सुरक्षा दी जाए। नियम है कि नामांकन भरने वाले को सुरक्षा दी जाती है, बशर्ते कि वो सुरक्षा मांगे और ये सुरक्षा मुफ्त होती है। निर्दलीय सोच रहे हैं कि जब जमानत के पैसे वापस नहीं मिलने वाले, तो यही 'वीआईपीपन' भोग लिया जाए। बहरहाल दया रानी दुखी हैं। अगली बार कोई भी चुनाव हो, वे जरूर लड़ेंगी।