- अथर्व पंवार
आज ही के दिन 20 मई को 1498 में पुर्तगाली नाविक व्यापारी वास्को डी गामा भारत आया था। वह समुद्र के रास्ते से भारत आया था। उन्होंने भारत के कालीकट बंदरगाह से भारत पर पहला कदम रखा था।
हम सभी ने यह पढ़ा है कि भारत को समुद्री रास्ते से खोजने वाला प्रथम नागरिक वास्को डी गामा था। पर एक भारतीय होने के नाते हमें एक और बात ज्ञात होनी चाहिए और वह है 'भारत आने के लिए वास्को डी गामा ने एक भारतीय की सहायता ली थी और उस भारतीय का नाम था - कांजी मालम। इस बात से अवगत होकर सभी भारतीयों को गर्व करना चाहिए।
जानिए 'कांजी मालम' के बारे में -
जब वास्कोडिगामा अफ्रीका के मालिन्दी बंदरगाह पहुंचा था तो उसकी भेंट कच्छ के रहने वाले व्यापारी कांजी मालम से हुई थी। कान्हा जी उस समुद्री रास्ते से निरंतर यात्रा करते थे। वह काली मिर्च , हाथी दन्त , लौंग , कपडे , सोना इत्यादि का व्यापार अफ्रीकी देशों में करते थे।
2010 में कच्छ मांडवी में इतिहासकारों का 'GUJRAT AND THE SEA' नाम से तीन दिवसीय सम्मलेन हुआ था जिसमें इतिहासकार मकरंद मेहता ने कांजी भाई के बारे में उल्लेख कर के बताया था कि उन्हें समुद्री परिस्थितियों और मार्गों का अद्भुत अभाव था और वास्को डी गामा को वह ही भारत लेकर आए थे।
कोच्चि के आईएनएस द्रोणाचार्य में बने नाविक संग्रहालय में भी कांजी मालम की जानकारी मिलती है। लिस्बन( पुर्तगाल ) में जब भारत के प्रधानमंत्री ने वहां रह रहे भारतीय समुदाय को उद्बोधन दिया था तो उसमें भी कांजी मालम का उल्लेख करना वह नहीं भूले थे। 24 जून 2017 को यह भाषण की प्रति प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा इंटरनेट पर अपलोड कर दी गई है।
भारत अनेक वर्ष पुर्तगाली और अंग्रेजी शक्तियों के अधीन रहा। जिस कारण हमें भारतीय तथ्यों से दूर रखा गया। गुलामी विचारों से पनपती है इसीलिए हमें गुलाम रखने के लिए हमारे भव्य इतिहास को उलट हममें निराशा और गुलामी का विचार भर दिया गया। पर भारत के विज्ञान और संस्कृति को पढ़ने पर यह निराशा समाप्त हो जाती है और स्वाभिमान से भारतीय मस्तक ऊंचा हो जाता है। इतिहास में मार्कोपोलो और अनेक यात्री भारत आए। उनके द्वारा लिखा हुआ वर्णन पढ़ने को मिलता है जिसमें भारतीयों के समुद्री ज्ञान और तकनीक की भूरी भूरी प्रशंसा की गई है। इसके अलावा विज्ञान और कला के दूसरे क्षेत्रों में भी भारत का प्राचीन समय में आदर से नाम लिया जाता था। इसलिए ही तो भारत को कहा जाता था 'विश्वगुरु'।