कैसे पहुंचती है हम तक रेडियो जॉकी की आवाज?

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रेडियो हम में से अधिकांश की दिनचर्या का एक खास हिस्सा है। किसी को काम करते हुए रेडियो पर गाने सुनना पसंद है तो किसी को पढ़ते हुए। कोई अपने तनाव को कम करने के लिए रेडियो सुनता है तो कोई थकान मिटाने और रिलेक्स होने के लिए। हम भले किसी भी मकसद से रेडियो का इस्तेमाल करें लेकिन इसका उपयोग जरूर करते हैं।

पर क्या आप जानते हैं कि रेडियो स्टेशन पर बैठे रेडियो जॉकी की आवाज या फिर गाने हम तक कैसे पहुंचते हैं? दरअसल जब रेडियो जॉकी रेडियो स्टेशन पर माइक्रोफोन पर बोलता है तब माइक्रोफोन उसकी आवाज को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल देता है, लेकिन यह सिग्नल काफी कमजोर होता है और ज्यादा लंबी दूरी तय नहीं कर सकता इसलिए इसे ट्रांसमीटर में भेजा जाता है।

ट्रांसमीटर इस सिग्नल को कुछ स्ट्रांग सिग्नल्स के साथ मिला देता है। यह स्ट्रांग सिग्नल्स कैरियर वेव्स होती हैं।
अब इन मिली हुईं वेव्स को एक खास एनटीना की मदद से प्रकाश की गति से बाहर भेजा जाता है और जब ये वेव्स आपके रेडियो के एंटीना तक पहुंचते हैं तब एंटीना उन्हें कैच कर रेडियो के एम्प्लीफायर तक पहुंचाता है और एम्प्लीफायर इसे और स्ट्रांग कर स्पीकर तक पहुंचाती है। सिग्नल्स पाकर स्पीकर वाइब्रेट होता है।

आपके कान इन वाइब्रेशन को कैच करते हैं और आपका ब्रेन इन्हें रेडियो जॉकी की आवाज में ट्रांसलेट कर देता है, इस तरह आप रेडियो स्टेशन पर बैठे रेडियो जॉकी की आवाज सुन पाते हैं और आपको लगता है जैसे वह आपसे रूबरू बात कर रहा है।

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