ग़ालिब का ख़त-21

Webdunia
लो साहिब,
खिचड़ी खाई दिन बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए

Aziz AnsariWD
आठ जनवरी माह-ओ-साल-ए-हाल दो शंबे के दिन ग़ज़ब़-ए-इलाही की तरह अपने घर पर नाज़िल हुआ। तुम्हारा ख़त मय मज़ामीन-ए-दर्दनाक से भरा हुआ रामपुर में मैंने पाया। जवाब लिखने की फुरसत न मिली कि मुरादाबाद में पहुँचकर बीमार हो गया। पाँच दिन सदर-उल-सदूर साहिब के यहाँ पड़ा रहा। उन्होंने बीमारदारी और ग़मख़ारी बहुत की।

क्यों तर्क-ए-लिबास करते हो? पहनने को तुम्हारे पास है क्या जिसको उतार फेंकोगे? तर्क-ए-लिबास से क़ैद-ए-हस्ती मिट न जाएगी। बग़ैर खाए-पिए गुज़ारा न होगा। सख्ती व सुस्ती रंज-ओ-आराम को हमवार कर दो जिस तरह हो उसी सूरत से, ब-हर-सूरत गुज़रने दो-
ताब लाए हो बनेगी ग़ालिब
वा‍क़िआ़ सख्त है और जान अज़ीज़।

इस खत की रसीद का ता़लिब,
ग़ालिब
--------------------------------

मुंशी हरगोपाल, अर्जी मिर्जा़ तफ़्ता,

तुमने रुपया भी खोया और अपनी फ़िक्र को और मेरी इस्लाह को भी डुबोया, हाय क्या बड़ी कापी है। अपने अशआ़र की और इस कापी की मिसाल जब तुम पर खुलती कि तुम यहाँ होते और बेगमात-ए-क़िला को चलते-फिरते देखते। सूरत माह-ए-हफ्ता की सी और कपड़े मैले। पांयचे लीर-लीर। जूती टूटी। यह मुबालग़ा नहीं, बल्कि बेतकल्लुफ़ 'संबुलिस्तान' एक माशूक़ ख़ूबरू है। बदलिबास है। बहरहाल, दोनों लड़कों को दोनों जिल्दें दे दीं और मुअ़लम को हुक्म दे दिया कि इसका सबक़ दे। चुनांचे आज से शुरू हो गया।

9 माहै अप्रैल 1861 ई.

ग़ालिब

Show comments

क्या होता है DNA टेस्ट, जिससे अहमदाबाद हादसे में होगी झुलसे शवों की पहचान, क्या आग लगने के बाद भी बचता है DNA?

क्या होता है फ्लाइट का DFDR? क्या इस बॉक्स में छुपा होता है हवाई हादसों का रहस्य

खाली पेट ये 6 फूड्स खाने से नेचुरली स्टेबल होगा आपका ब्लड शुगर लेवल

कैंसर से बचाते हैं ये 5 सबसे सस्ते फूड, रोज की डाइट में करें शामिल

विवाह करने के पहले कर लें ये 10 काम तो सुखी रहेगा वैवाहिक जीवन

हनुमंत सदा सहायते... पढ़िए भक्तिभाव से भरे हनुमान जी पर शक्तिशाली कोट्स

21 जून योग दिवस 2025: अनुलोम विलोम प्राणायाम करने के 10 फायदे

मातृ दिवस और पितृ दिवस: कैलेंडर पर टंगे शब्द

हिन्दी कविता : पिता, एक अनकहा संवाद