चैत्र की शुक्ल प्रतिपदा : गुड़ी पड़वा

Webdunia
पूज्य पांडुरंग शास्त्री आठवल े
NDND
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा कहते हैं। वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में गुड़ी पड़वा की गिनती होती है। शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिटककर उसको सजीव बनाया और उसकी मदद से प्रभावी शत्रुओं का पराभव किया।

इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ। शालिवाहन ने मिट्टी की सेना में प्राणों का संचार किया, यह एक लाक्षणिक कथन है। उसके समय में लोग बिलकुल चैतन्यहीन, पौरुषहीन और पराक्रमहीन बन गए थे। इसलिए वे शत्रु को जीत नहीं सकते थे। मिट्टी के मुर्दों को विजयश्री कैसे प्राप्त होगी? लेकिन शालिवाहन ने ऐसे लोगों में चैतन्य भर दिया। मिट्टी के मुर्दों में, पत्थर के पुतलों में पौरुष और पराक्रम जाग पड़ा और शत्रु की पराजय हुई।

आज हम भी दीन, हीन, बनकर जड़वाद के सामने लड़ने में असमर्थ बने हैं। मनु की संतान- मनुष्य को ऐसा क्षुद्र और मृतवत्‌ बना हुआ देखकर सृष्टि-सर्जक को कितनी व्यथा होती होगी! 'अमृतस्य पुत्राः'। ऐसा कहकर वेद जिसकी सराहना करते हैं, ऐसे सिंहतुत के समान मानव को बेचारा बनकर घूमता हुआ देखकर प्रभु को न जाने क्या लगता होगा?

सोते हुए के कानों में सांस्कृतिक शंख ध्वनि फूँकने और मृत मानव के शरीर में जीवन संचार करने के लिए आज भी ऐसे शालिवाहनों की जरूरत है। मानव मात्र में ईश्वर दत्त विशिष्ट शक्तियाँ हुई हैं। आवश्यकता है मात्र उन्हें जगाने की। समुद्र लाँघने के समय सिर पर हाथ रखकर बैठे हुए हनुमान को जरूरत है पीठ पर हाथ फेरकर विश्वास देने वाले जांबवंत की। शस्त्र त्यागकर बैठे हुए अर्जुन को जरूरत है उत्साहप्रेरक मार्गदर्शक कृष्ण की। संस्कृति के सपूत और गीता के युवकों का सत्कार करने के लिए आज का समाज भी तैयार है। आज के दिन पुरुषार्थी और पराक्रमी सांस्कृतिक वीर बनने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए।

NDND
ऐसी कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन श्री रामचंद्रजी ने बाली के जुल्म से दक्षिण की प्रजा को मुक्त किया था। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर गुड़ियाँ (ध्वजाएँ) फहराईं। आज भी घर के आँगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को 'गुड़ी पड़वा' नाम मिला है। घर के आँगन में जो 'गुड़ी' खड़ी की जाती है, वह विजय का संदेश देती है। घर में बाली का (आसुरी संपत्ति का राम यानी देवी संपत्ति ने) नाश किया है, ऐसा उसमें सूचक है।

गुड़ी यानी विजय पताका। भोग पर योग की विजय, वैभव पर विभूति की विजय और विकास पर विचार की विजय। मंगलता और पवित्रता को वातावरण में सतत प्रसारित करने वाली इस गुड़ी को फहराने वाले को आत्मनिरीक्षण करके यह देखना चाहिए कि मेरा मन शांत, स्थिर और सात्विक बना या नहीं?

मालाबार में यह उत्सव विशिष्ट ढंग से मनाया जाता है। घर के देवगृह में घर की सर्व सम्पत्ति और शोभायमान चीजों को व्यवस्थित ढंग से रखा जाता है। संवत्सर प्रतिपदा के दिन सुबह उठकर अपनी आँखें खोलकर गृहलक्ष्मी के साथ प्रभु के दर्शन करते हैं। घर का मुख्य व्यक्ति संपत्ति और ऐश्वर्य से सुशोभित देव की आरती उतारता है।
Show comments

श्री बदरीनाथ अष्टकम स्तोत्र सर्वकार्य सिद्धि हेतु पढ़ें | Shri Badrinath Ashtakam

तिरुपति बालाजी मंदिर जा रहे हैं तो जानिए 5 खास बातें

Apara ekadashi 2024: अपरा एकादशी कब है, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व

Neem Puja vidhi: कैसे करें नीम के पेड़ की पूजा कि होगा मंगल दोष दूर

lakshmi puja for wealth : लक्ष्मी पूजा का है ये सही तरीका, तभी माता होंगी प्रसन्न

Aaj Ka Rashifal: क्या लाया है 25 मई का दिन हम सभी के लिए, पढ़ें 12 राशियां

अकेलापन कैसे दूर करें? गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

25 मई 2024 : आपका जन्मदिन

25 मई 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

Surya Gochar: 25 मई को सूर्य के नक्षत्र परिवर्तन से इन 4 राशियों का चमकेगा सितारा बुलंदी पर