शुभकृत्त संवत्सर का फल शुभ होगा

शुक्र राजा हो तो अन्न बहुत उपजे

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
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कल्पादि से गत वर्ष 1972949110, सृष्टि संवत्‌ 1955885110, श्री विक्रम संवत्‌ 2066 शके 1931 श्री कृष्ण जन्म संवत्‌ 5245, कलियुग संवत्‌ 5110, वर्षारम्भ में गुरुमान से विष्णु विशांति का शुभकृत्त नाम संवत्सर है। इसका फल शासक वर्ग में शक्ति परीक्षा की भावना प्रबल रहती है। जगह-जगह अनेक प्रकार के उत्सव होते हैं। आतंकवाद व अनैतिक कृत्यों में वृद्धि होती है।

इस संवत्‌ का राजा शुक्र, मन्त्री चन्द्र, सस्येश गुरु, धान्येश मंगल, मेघेश सूर्य, रसेश शनि, नीरसेश गुरु, फलेश सूर्य, धनेश बुध एंव दुर्गेश सूर्य है। इन का प्रभाव अलग अलग होता है। यद्यपि वर्ष के इन दशाधिक ारियों का फल सर्वत्र होता है। किन्तु विशेषतः राजा का फल कश्मीर, अफगानिस्तान एंव बराड़ देश में, मन्त्री का फल आंध्र, वाल्हीक, उज्जैन एवं मालवा में, सस्येश का फल विर्दभ में, धान्येश का गुजरात, नर्मदा के तटवर्ती प्रदेश एंव मध्यप्रदेश में मेघेश का फल मगध एंव बंगाल में, रसेश का कोंकण एंव गोवा में, फलेश, दुर्गेश व राजा का फल सब जगह होता है।

शुक्र राजा हो तो खेती अनाज उगले नदियों में बड़े वेग से पानी खूब बहे वृक्षों में फल खूब लगें। मन्त्री चन्द्र हो तो वर्षा उत्तम हो अन्न भी खूब हो।

जनता सुखी हो व सभी सुख हों। सस्येश गुरु का फल भी उत्तम हो वेद विहित प्रचार बढें। वर्षा, अन्न, रस, दूध-दही अधिक हों। धान्येश मंगल का फल चावल, घी, तेल, ईख आदि महँगे होते हैं। मेघेश का फल जौ, चनें ईख अधिक उत्पन्न होते हैं। रसेश शनि का फल बकरी, गाय, हाथी, घोड़े, गधे, ऊँट आदि कम हो मनुष्यों में नीरसता बढ़े।

नीरसेश गुरु का फल बल्दी, पीले वस्त्र, पीली वस्तुएँ सस्ते हों यथा स ोनें में उतार देखने को मिल सकता है। फलेश सूर्य हो तो वृक्ष फ ल- पुष्प से भरा एवं धरा प्रसन्न हो। धनेश बुध हो तो ज प- तप में रुचि बढ़ें । कई प्रकार की वस्तुओं का संग्रह करने से लाभ हो। दुर्गेश सूर्य हो तो न्यायपालिका सख्त हो शासन वर्ग भी सचेत रहे। कुल मिलाकर शुभकृत्त संवत्सर का फल इस वर्ष शुभ ही रहेगा।

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