अहमदाबाद। गुजरात में जातिगत आंदोलन के उभर कर सामने आने के बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के मूल में जाति व्यवस्था के बने रहने की संभावना है क्योंकि भाजपा और कांग्रेस सहित बड़े दलों ने इसी समीकरण को ध्यान में रख कर टिकटों का बंटवारा किया है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने जातीय समीकरण को ध्यान में रख कर इस महीने होने वाले विधान सभा चुनावों के लिए टिकटें बांटी है। पाटीदार और अन्य पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को दोनो दलों ने अधिकतर सीटों पर मैदान में उतारा है।
राज्य में सत्तारूढ भाजपा ने इस बार 50 पाटीदार उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस के 41 उम्मीदवार इस समुदाय से हैं। भाजपा ने अन्य पिछड़े वर्ग के 58 उम्मीदवारों को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस के इस वर्ग से 62 प्रत्याशी मैदान में हैं।
गुजरात में मुख्य विपक्षी दल ने चुनावों के लिए 14 दलितों को टिकट दिया है तो कांग्रेस ने 13 ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं। राजनीतिक पंडितों की माने तो जिस पार्टी को अतिरिक्त चार से पांच फीसदी मत मिलेगा वही दल राज्य में इस राजनीतिक लड़ाई को जीतेगा।
भाजपा इस चुनाव में हारना नहीं चाहती है और जबकि कांग्रेस उन जातियों को अपनी आकर्षित करने का भरसक प्रयास कर रही है जो नाराज हैं और वोट शेयर के अंतर को कम कर सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक अच्युत याग्निक के अनुसार केवल चार से पांच फीसदी वोट की अदला बदली कांग्रेस के लिए गेम चेंजर साबित होगी ।
याग्निक कहते हैं कि अगर आप 2002, 2007 तथा 2012 के चुनावों में वोट की हिस्सेदारी पर नजर डालें तो हर बार कांग्रेस को तकरीबन 40 फीसदी जबकि भाजपा को 49 प्रतिशत वोट मिले हैं। इस बार अगर चार से पांच फीसदी वोटों की स्वैपिंग होती है तो इससे कांग्रेस को बड़ा फायदा होगा।
उन्होंने कहा कि गुजरात की राजनीति के मूल में जातिगत व्यवस्था अभी भी बरकरार है और इसी के आधार पर टिकटों का बंटवारा भी किया गया है। (भाषा)