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चाणक्य के अनुसार कौन होता है सच्चा गुरु? क्या हैं गुरु के गुण?

WD Feature Desk
मंगलवार, 8 जुलाई 2025 (16:40 IST)
guru purnima chanakya: भारतवर्ष की संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है। 'गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाय' जैसी पंक्तियां इस बात को दर्शाती हैं कि गुरु का स्थान हमारे जीवन में कितना अहम है। हर साल आषाढ़ पूर्णिमा को 'गुरु पूर्णिमा' के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उन सभी गुरुओं के सम्मान में समर्पित होता है जिन्होंने हमें जीवन के मार्ग पर चलना सिखाया।
 
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कैसा होना चाहिए एक सच्चा गुरु? इस सवाल का उत्तर हमें चाणक्य जैसे महान आचार्य की शिक्षाओं में मिलता है। चाणक्य न केवल मौर्य साम्राज्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले रणनीतिकार थे, बल्कि एक महान शिक्षक और तत्त्वज्ञानी भी थे। उनके द्वारा रचित 'चाणक्य नीति' में गुरु के महत्व और गुणों को बड़े सुंदर और गूढ़ रूप में समझाया गया है। आइए इस गुरु पूर्णिमा पर जानते हैं कि चाणक्य ने गुरु के कौन से गुण बताएं हैं और उनके विचार आज के समय में कैसे हमारे लिए मार्गदर्शक बन सकते हैं।
 
चाणक्य के अनुसार गुरु के गुण
चाणक्य के अनुसार गुरु वो नहीं होता जो केवल किताबों का ज्ञान दे, बल्कि गुरु वह होता है जो शिष्य को आत्मबोध कराए, उसे सही और गलत में फर्क करना सिखाए, और चरित्र निर्माण में मार्गदर्शन दे। चाणक्य कहते हैं – "न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।" यानी "इस संसार में ज्ञान के समान कोई पवित्र वस्तु नहीं है।" और यही पवित्र ज्ञान गुरु के द्वारा ही संभव है।
 
चाणक्य नीति के अनुसार एक अच्छा गुरु वह है जो सत्य का मार्ग दिखाए, अपने शिष्य की क्षमताओं को पहचान कर उन्हें निखारे, स्वार्थ से रहित होकर केवल शिष्य के हित में कार्य करे, स्वयं अनुशासन में रहे और दूसरों को भी अनुशासित करे और सिर्फ ज्ञान ही नहीं, बल्कि व्यवहार और सोच में भी निपुण बनाए।
 
गुरु और चेला
चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य का रिश्ता एक आदर्श गुरु-शिष्य संबंध का उदाहरण है। चंद्रगुप्त साधारण परिवार से थे, लेकिन चाणक्य ने उनमें राजा बनने की संभावनाएं देखीं और उन्हें शिक्षा, नीति, युद्ध-कौशल और शासन की बारीकियां सिखाईं। परिणामस्वरूप चंद्रगुप्त एक महान सम्राट बने। इस उदाहरण से चाणक्य यह सिखाते हैं कि सच्चा गुरु शिष्य की सामाजिक स्थिति नहीं देखता, वह उसकी क्षमता, निष्ठा और सीखने की जिज्ञासा को प्राथमिकता देता है।
 
आज के युग में चाणक्य नीति की प्रासंगिकता
आज के डिजिटल और तेज़ी से बदलते युग में जब शिक्षा केवल डिग्री तक सीमित होती जा रही है, चाणक्य की शिक्षाएं फिर से हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमारे शिक्षक सिर्फ किताबें पढ़ा रहे हैं या हमें जीवन जीने की कला भी सिखा रहे हैं? एक ऐसा गुरु जो केवल करियर नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण में योगदान दे, वही चाणक्य की परिभाषा में 'सच्चा गुरु' है। आज जब युवाओं को दिशाहीनता, मानसिक तनाव और मूल्यहीनता का सामना करना पड़ रहा है, तो ऐसे में एक चाणक्य जैसे गुरु की आवश्यकता और बढ़ जाती है।
 
गुरु पूर्णिमा पर संकल्प
इस गुरु पूर्णिमा 2025 पर हमें केवल अपने शिक्षकों को स्मरण नहीं करना चाहिए, बल्कि चाणक्य की नीतियों को आत्मसात करते हुए अपने जीवन में एक ऐसे गुरु को पहचानना चाहिए जो हमें हर मोड़ पर सही दिशा दिखा सके। चाहे वह हमारे माता-पिता हों, शिक्षक हों, जीवन के अनुभव हों या फिर आत्मचिंतन के माध्यम से मिला ज्ञान, हमें उन्हें 'गुरु' मानकर कृतज्ञता जतानी चाहिए। 


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